अनाज के मामले में जब हमारा देश परावलंबी था, हम भूखमरी टालनें के लिए पी एल 480 (अमेरिका के साथ हुआ समझौता) जैसे मानहानि कारक करार करके पूरी तरह अमेरिका से बेकार गेहूँ और जवार के विशाल आयात पर निर्भर थे, जो किसी भी देश के लिए आत्मसम्मान की बात नहीं हो सकती है तब खाद्यान्न के उत्पादन में स्वावलंबी बनने के लिए हमारे देश ने डॉ एम एस स्वामीनाथन के नेतृत्व में हरित क्रांति को स्वीकार करके उसपर अमल किया।
आज हम गेहूँ और चावल के उत्पादन में आत्मनिर्भर हैं और निर्यात भी कर रहे हैं। यह भारत सरकार, डॉ एम एस स्वामीनाथन और उनके सभी कृषि वैज्ञानिकों का ऐतिहासिक कार्य है । उसके लिए उन्हें बड़े आदर के साथ हमारे सुभाष पालेकर कृषि जन आंदोलन की तरफ से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
डॉ एम एस स्वामीनाथन की मृत्यु के बाद हरित क्रांति पर अब जरूर पुनर्विचार करना चाहिए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को हरित क्रांति का ऐसा सक्षम विकल्प देश को अब देना होगा जो वैश्विक तापमान वृद्धि और जल वायु परिवर्तन के बावज़ूद फसल उत्पादन में कोई बाधा न आने दे।
हरित क्रांति के जनक कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का 98 वर्ष की उम्र में हुआ निधन#MSSwaminathan #GreenRevolution
पढ़ें: https://t.co/beIH3YXnCO pic.twitter.com/if9520yrdf
— GaonConnection (@GaonConnection) September 28, 2023
भारत हर साल लाखों टन खाने का तेल, दालें, फल, रासायनिक खाद, दवाएँ, अवजार और तकनीक का विशाल मात्रा में आयात करता है उसे पूरी तरह बंद करना होगा। किसानों की आत्महत्याओं पर लगाम लग सके इस तरफ भी सोचना होगा। जीव, ज़मीन, पानी, पर्यावरण और जैवविविधता के विनाश को बंद करने के साथ किसानों और युवा शक्ति का गाँवों से होने वाले पलायन रोकना होगा।
जहरीले भोजन से होने वाले कोरोना,कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दिल की बिमारियों से लड़ना बड़ी चुनौती है। हर साल इससे इंसान दम तोड़ देते हैं इसे रोकना होगा।
प्राकृतिक आपदाओं से फसलों की होने वाली बर्बादी कैसे रुके इस ओर सरकार काम कर रही है। प्रधानमंत्री की तरफ से किसानों की आय दोगुनी करना और देश को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास सराहनीय है। भारत इन दोनों सपनों को पूरा कर सके यही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की डॉ एम एस स्वामीनाथन को सही श्रद्धांजलि होगी।