14 सितम्बर 2020 को उत्तर प्रदेश के हाथरस की घटना के ठीक दो साल बाद उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले के निघासन थाने क्षेत्र में 14 सितम्बर 2022 बुधवार की शाम को दो दलित नाबालिक लड़कियों का शव गन्ने के खेत में पेड़ से लटका मिला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि गला घोंटकर हत्या करने से पहले बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उन्हें पेड़ से लटका दिया गया था।
ऐसी घटनाओं के रोकथाम के लिए 2012 निर्भया मामले के बाद निर्भया फंड की शुरुआत की गयी थी, क्योंकि कानून व्य राज्य सरकार द्वारा संचालित किया जाता है इसीलिए केंद्र सरकार द्वारा भारत की राज्य सरकारों को उनके क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से निर्भया फंड्स से हिस्सा दिया जाता है।
बलात्कार पीड़ित महिलाओं के जीवन निर्वाह व पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार ने 2013 में ‘निर्भया फंड’ की स्थापना की गई थी। इस फंड का उद्देश्य महिला सशक्तीकरण और महिला सुरक्षा से संबंधित कई योजनाओं का क्रियान्वयन करना था, जिसमें आपातकालीन फोन हेल्पलाइन सहायता, पीड़ितों को मुआवज़ा, महिलाओं के विरूद्ध अपराध रोकथाम और महिला पुलिस वालंटियर जैसी योजनाएं शामिल थीं। लेकिन आज की तारीख में देखें तो केंद्र सरकार की इस बेहद महत्वपूर्ण योजना की जमीनी हालात सही नहीं हैं और यह बात खुद स्वीकार भी करती है।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 3 अगस्त, 2022 के एक प्रेस बयान में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, निर्भया फाइंड से आवंटित 6,712.85 करोड़ रुपये में से वित्तीय वर्ष 2022-23 तक, 4,480.30 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। सरकार की ओर से। जारी किए गए फंड में से लगभग 66.7 प्रतिशत का उपयोग किया जा चुका है। शेष 2,232.55 करोड़ रुपये (33.25 प्रतिशत) खर्च क्यों नहीं किए जा सके।
29 जुलाई को लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जूबिन इरानी ने निर्भया फंड का उपयोग करने और न करने वाले राज्यों की सूची दी है। इसके शीर्ष पांच राज्यों में सबसे पहले नंबर पर दिल्ली – 97.68% के साथ शीर्ष स्थान पर है, उसके बाद तमिल नाडु (92.3%), लक्षद्वीप (91.8%), पश्चिम बंगाल (91%) और गुजरात (81.47%) के साथ पांचवे स्थान पर है। इसी क्रम में अगर हम पांच ऐसे राज्यों की बात करें जिसने निर्भया फंड्स का न्यूनतम उपयोग किया है, तो उसमे सबसे पहला स्थान आंध्र प्रदेश (33.79%), बिहार (38.80%), अरुणाचल प्रदेश (40.97%), मेघालय (42.18%), सिक्किम (43.4%)। अगर हम अकेले उत्तर प्रदेश की बात करें तो इस राज्य में भी निर्भया फंड्स का सिर्फ 62 प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग किया गया है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2021 में भारत में 2021 में रेप के कुल 31,677 मामले सामने आए हैं। इसमें से 12 फीसदी (3,870) से अधिक मामले ‘एससी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार’ के थे। अनुसूचित जाति समुदायों के बच्चों के बीच बलात्कार के 1,285 मामले भी दर्ज किए गए। देश में दर्ज हुए कुल मामलों में अनुसूचित जाति के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले 12.22 प्रतिशत हैं और इस तरह का हर तीसरा बलात्कार नाबालिग लड़की का होता है।
जबकि डेटा बताता है कि देश में बलात्कार के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है और अनुसूचित जाति की महिलाओं के खिलाफ हिंसा और बलात्कार में वृद्धि हुई है, निर्भया फंड के तहत पहले आवंटन के बाद से फंड आधा हो गया है।
वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 के बीच उत्तर प्रदेश को निर्भया फंड के तहत 492.40 रुपये मिले हैं, लेकिन 62 फीसदी (305.33 करोड़ रुपये) का ही उपयोग किया है।
हालांकि उत्तर प्रदेश निर्भया फंड के तहत शीर्ष 10 राज्यों में शामिल है, लेकिन 33.28 प्रतिशत नहीं प्रयोग हुआ है। खासकर, जब राज्य में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जैसा कि एनसीआरबी की रिपोर्ट में देखा गया है।