लखनऊ, उत्तर प्रदेश। जब मैं लखनऊ और बाराबंकी जिलों की सीमा पर स्थित कुनौरा गाँव के स्कूल गई, तो मैंने देखा कि निर्मला मिसरा स्कूल की गैलरी में लकड़ी की कुर्सी पर बैठी रजिस्टर के पन्ने पलट रही थीं।
यहीं पर निर्मला मिसरा और उनके पति डॉ. एस बी मिसरा ने 51 साल पहले अपनी शादी के दो महीने बाद एक छप्पर की झोपड़ी के साथ भारतीय ग्रामीण विद्यालय की शुरुआत की थी।
पाँच दशकों से अधिक समय तक अनगिनत बच्चों के जीवन को बदलने के बाद, निर्मला मिसरा का कल, 25 सितंबर को निधन हो गया।
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मेरी माँ निर्मला मिश्रा आज ईश्वर से मिलने चली गईं।
अपना पूरा जीवन उत्तर प्रदेश के एक गाँव के बच्चों का जीवन सुधारने को समर्पित कर दिया। दुनिया ने पूछा नहीं लेकिन उनको यश, पुरस्कार, किसी की चिंता नहीं थी। आख़िरी दिनों में भी स्कूल का ख़याल था। pic.twitter.com/3SVH0eiuSR— Neelesh Misra (@neeleshmisra) September 25, 2023
वह अपने पति के लिए शक्ति, समर्पण और असीम प्रेम का स्रोत थीं और उनकी दृढ़ साथी थीं। वह न सिर्फ भारतीय ग्रामीण विद्यालय शुरू करने के लिए हर मुश्किल वक़्त में उनके साथ खड़ी रहीं, बल्कि स्कूल को एक मॉडल स्कूल बनाने के लिए भी काफी मेहनत की। साथ ही घर की ज़िम्मेदारियों को भी उतनी ही शिद्दत के साथ पूरा करती रहीं। उन्होंने अपने जुड़वां बेटों, नीलेश मिसरा (संस्थापक, गाँव कनेक्शन) और शैलेश मिसरा (एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर) को बेहतर परवरिश दी।
निर्मला मिसरा से मेरी पहली मुलाकात 2 दिसंबर, 2018 को हुई थी। उस समय गाँव कनेक्शन भारतीय ग्रामीण विद्यालय के परिसर में आयोजित एक विशाल मेले में अपना छठा स्थापना दिवस मना रहा था। वह स्कूल के गलियारे में अपनी लकड़ी की कुर्सी पर बैठी थीं। एक चमकदार साड़ी पहने निर्मला जी के लंबे भूरे बाल जूड़े में बंधे थे। उनके माथे पर एक बड़ी मैरून बिंदी लगी थी। उन्हें हमेशा से लोगों का प्यार और सम्मान मिला था।
मुझे पता चला कि कैसे एक संपन्न जमींदार परिवार की एक युवा महिला एक भूविज्ञानी वैज्ञानिक से शादी करने के बाद अपने गाँव में एक स्कूल स्थापित करने के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने बेहद मुश्किल और चुनौतीपूर्ण जीवन जीने की राह चुनी।
जिस स्कूल की स्थापना उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर 51 साल पहले की थी, वह आज 12वीं तक की कक्षाओं, साइंस लैब, एक स्किल सेंटर, एक वर्चुअल क्लास के साथ बड़ी मजबूती के साथ खड़ा है। यहाँ दुनिया भर के वॉलियंटर छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाते हैं।
उन्होंने न सिर्फ पढ़ाया, बल्कि गाँवों में पैदल घूम-घूम कर महिलाओं को सिलाई जैसी अनेक तरह की स्किल से भी जोड़ा। ताकि ये महिलाएँ खुद का कुछ शुरू कर सकें और कुछ पैसे कमा सकें।
स्कूल के प्रति उनके प्रेम का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने जीवन के आखिरी कुछ साल स्कूल के एक साधारण कमरे में बिताए ताकि वह छात्रों और स्कूल स्टाफ के करीब रह सकें।
मैं उनसे आखिरी बार इस साल मई में मिली थी। उनका वजन काफी कम हो गया था और वह कमज़ोर हो गई थी। लेकिन वह कभी हार मानने वालों में से नहीं थीं। वह अभी भी आत्मविश्वास के साथ बोलती थी और अपनी खराब सेहत के बावजूद स्कूल देखती रहीं।
निर्मला मिसरा के साथ खाने का समय काफी यादगार रहा, जब उन्होंने हमें स्कूल और उसके शुरुआती वर्षों की कहानियों से रूबरू कराया। उन्होंने स्कूल परिसर के अंदर एक बड़े बरगद के पेड़ की ओर इशारा किया और कहा कि 50 साल से भी पहले जब स्कूल की स्थापना हुई थी तब यह एक नन्हा सा पौधा था।
यह 14 मई की बात है, जब मैं मुंबई के लिए अपनी फ्लाइट पकड़ने से पहले उनसे विदा ली थी। उस दिन उनकी 51वीं शादी की सालगिरह थी। जैसे ही मैं उनके पैर छूने के लिए झुकी, वह उठी और मुझे गले लगा लिया।
यह विश्वास करना मुश्किल है कि निर्मला मिसरा फिर कभी गलियारों में नहीं चलेंगी या अपनी लकड़ी की कुर्सी पर नहीं बैठेंगी। एक खालीपन हमेशा बना रहेगा, लेकिन उनकी विरासत हमेशा ज़िंदा रहेगी।
हम गाँव कनेक्शन में उनके दिखाए रास्ते पर चलते रहेंगे और ग्रामीण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे। हमारे टीचर कनेक्शन प्रोजेक्ट का उद्देश्य भी यही है। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर लॉन्च होने वाले और चेंजमेकर्स प्रोजेक्ट का सार भी यही है। इस प्रोजेक्ट में हम निर्मला मिसरा जैसे चेंजमेकर्स के जीवन के अनुभव और कहानियों को दर्ज करेंगे और उनकी उपलब्धियों का जश्न मनाएंगे। ऐसे चेंजमेकर्स जो चुपचाप सैकड़ों हज़ारों लोगों के जीवन को बदल देने में लगे हैं।
प्रणाम ताईजी।