जैसलमेर (राजस्थान)। बीते 16 मई को जैसलमेर के अमरसागर पँचायत में पाकिस्तान से शरणार्थी बनकर आईं मामेती भील अपने ही झोपड़े को आँखों के सामने ख़ाक होते देख रही थीं। लेकिन बेबस थीं।
उस दिन ज़िला कलेक्टर टीना डाबी के एक फरमान के बाद 139 भील आदिवासियों के घरों पर बुलडोजर चला दिया गया था। जिसके बाद इन्हें अपने बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे गुज़र करने को मज़बूर होना पड़ा।
लेकिन इस दौरान एक झोपड़ा ऐसा था जिसे तोड़ा नहीं गया बल्कि आग के हवाले कर दिया गया।
इस घटना के बाद इन बेघर शरणार्थियों ने जैसलमेर कलेक्ट्रेट के आगे जमकर विरोध प्रदर्शन किया, तब इस घटना ने देश भर का ध्यान अपनी ओर खींचा। जिस प्रशासन ने ये कहकर इनको वहाँ से हटा दिया था कि वो अवैध कब्ज़ा करके रह रहे हैं, उन्हें जैसलमेर से करीब 15 किलोमीटर दूर मूलसागर इलाके में रहने के लिए ज़मीन मुहैया कराया। बावज़ूद इसके इस घटना ने इन्हें झकझोर कर रख दिया है।
गाँव कनेक्शन की टीम जब ग्राउंड रिपोर्ट के लिए वहाँ पहुँची तो विस्थापित हिंदुओं का दर्द उनके आँखों में छलक आया।
नाथूराम भील जो साल 1988 में धार्मिक यात्रा का वीज़ा लेकर भारत आए थे का कहना है, “90 के दशक में भारत में राम मंदिर आंदोलन के समय पाकिस्तान में हिंदुओं के लिए हालत ठीक नहीं थे,वहाँ के नौजवानों द्वारा गाली – गलौच,मारपीट और धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले बयान तेज़ी से बढ़ गए थे। वहाँ हर दिन ख़तरा था।”
वे कहते हैं, “हमने इसकी शिकायत प्रशासन से की तो हम पर धर्म परिवर्तन का दबाव आने लगा, तो धर्म परिवर्तन की बजाय हमें भारत आना ज़्यादा मुनासिब लगा।” जैसलमेर में बसने की वजह के सवाल पर वे कहते हैं, “हमारी रिश्तेदारियाँ इसी इलाके में हैं और बँटवारे के समय हमारे पूर्वज इसी इलाके से पाकिस्तान गए थे।” 65 साल के नाथूराम भील को साल 2005 में भारत की नागरिकता भी मिल चुकी है।
पाकिस्तानी विस्थापितों के लिए काम करने वाले ‘सीमांत लोग संगठन’ के सँस्थापक हिंदू सिंह सोढा गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदुओं का पलायन मोटे तौर 1965 के भारत पाक युद्ध के बाद से शुरू हुआ। बाद में 1971 की लड़ाई और 90 के दशक का राम मंदिर आंदोलन पाकिस्तान से हिंदुओं के भारत पलायन का मुख्य कारण रहा।” वे आगे वे कहते हैं, “1971 में राजपूत, ब्राह्मण, माहेश्वरी और भोजक आदि जाति के लोगों का ज़्यादा पलायन हुआ।”
1988 के बाद से भील जनजातियाँ भारत आने लगी हैं। पाकिस्तान से भारत शरणार्थी कैसे आते हैं के सवाल पर सोढा कहते हैं, “ज़्यादातर लोग धार्मिक वीज़ा लेकर भारत आते हैं और फिर यहीं बस जाते हैं।” हिंदू सिंह सोढा साल 1971 में भारत आए थे तब उनकी उम्र 15 साल की थी, अब 55 साल के हैं। पिछले 30 साल से वे पाकिस्तानी विस्थापितों के लिए काम कर रहे हैं।
अपनो के बीच ज़मीन तलाशते पाकिस्तानी हिंदू भील आदिवासी
पाकिस्तान से आए भील जनजातियों की पहली बस्ती जैसलमेर शहर में साल 1988 में भील बस्ती के नाम से बसी। इस बस्ती से दो -दो बार पार्षद रह चुके नाथूराम भील गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “इस बस्ती में कुल 1300 लोग रहते हैं जो सभी पाकिस्तान से पलायन किए हुए हैं।”
जैसलमेर के गफूर भट्टा इलाके में रहने वाले भूरचंद भील कहते हैं, “जैसलमेर के 15 किलोमीटर में भील आदिवासी शरणार्थी बसे हैं, जिसमें भील बस्ती , गफूर भट्टा, किशनघाट, संतूराम की ढाणी, बड़ा बाघ, अमरसागर, पुलिस लाईन, कच्ची बस्ती, बबर मगरा मुख्य है। यहाँ करीब 5 हज़ार लोग रहते हैं। वे कहते हैं, “आज भी रोज 15 -20 हिन्दू भील परिवार के लोग पाकिस्तान से जैसलमेर आते हैं और ये उन्ही जगहों पर जाकर बसते हैं जहाँ पहले से इनके परिवार के लोग रह रहे हो।”
हाल ही में पाकिस्तान से जैसलमेर आकर बसे मानाराम भील उन लोगों में से हैं जिनके घर नगर सुधार न्यास (यूआईटी) की कार्रवाई में तोड़े गए थे। मानाराम पिछले 8 दिनों से रैन बसेरे में रह रहे हैं। हर शाम वे अमरसागर पँचायत के अपने तोड़े गए मकान के पास लगे पौधों को पानी देने और पालतू कुत्ते को खाना खिलाने जाते हैं।
पाकिस्तान से जैसलमेर आने के पीछे मानाराम वहाँ की महँगाई और बेरोज़गारी को बड़ी वजह मानते हैं। गाँव कनेक्शन से भावुक होते हुए कहते हैं, “पाकिस्तान से भारत बहुत उम्मीद से आए थे, सोचा था यहाँ अपने लोगों के साथ रहेंगे, बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे, अच्छा काम मिल जाएगा, लेकिन सारे सपने टूट गए।”
वे कहते हैं, “पाकिस्तान में उन्हें काफ़िर कहा जाता था और यहाँ के लोग पाकिस्तानी कहते हैं। अब जाएँ तो जाएँ कहाँ? एक ही ख़्वाहिश है शांति से यही रहने दें।”