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‘बरगद का पेड़, जहां दंगाइयों को तितर-बितर करने के लिए वाटर कैनन का इस्तेमाल किया गया था, आज राजस्थान कबीर यात्रा का गवाह बन रहा’

भारत की सबसे लंबी यात्रा करने वाला लोक संगीत समारोह ‘राजस्थान कबीर यात्रा’ 2-8 अक्टूबर तक चलेगा। सांप्रदायिक सद्भाव और शांति को बढ़ावा देने वाली यह 'यात्रा' राजस्थान पुलिस के प्रोजेक्ट ताना बाना के अंतर्गत सह-मेजबानी के साथ की जा रही है। इस पहल के बारे में और ज्यादा जानने के लिए गाँव कनेक्शन ने गृह मंत्रालय के पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो और केंद्रीय गुप्तचर प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक अमनदीप सिंह कपूर के साथ बातचीत की।
#Kabir yatra

कोटड़ा, राजस्थान

क्या आप हमें बता सकते हैं कि प्रोजेक्ट ताना बाना कैसे शुरू हुआ? पुलिस के लिए लोक संगीत समारोह की सह-मेजबानी करना सामान्य बात तो नहीं है?

प्रोजेक्ट ताना बाना का सफर 2016 में शुरू हुआ। उस समय मैं एसपी (पुलिस अधीक्षक) बीकानेर था। बीकानेर दंगों से बाहर निकल रहा था और बुरी तरह आहत था। स्थानीय प्रशासन समाधान ढूंढने में लगा था। तब लगा कि सुधार के प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करने की जरूरत है।

‘ताना बनाना’ का होना एक तरह से यह स्वीकार करना था कि एक समस्या है और इससे निपटना है।

2016-17 के आसपास मैंने पहले की जाने वाली ‘राजस्थान कबीर यात्रा’ पर एक वृत्तचित्र देखा था (पहली यात्रा 2012 में आयोजित की गई थी)। जिस तरह से इसे आयोजित किया गया था इसने मुझे काफी आकर्षित किया। तब मैंने बीकानेर में इस तरह की यात्रा को पुलिस के सहयोग के साथ आयोजित करने का सुझाव दिया।

समर्थन और प्रोत्साहन की कमी के चलते आपने आपको बचाए रखने के लिए यह यात्रा संघर्ष कर रही थी। प्रोजेक्ट ‘ताना बाना’ ने राजस्थान कबीर यात्रा को फिर से जीवंत कर दिया।

आपने इस परियोजना में स्थानीय समुदायों को कैसे शामिल किया?

राजस्थान में पहले कभी एक सामुदायिक संपर्क समूह या सीएलजी नामक पहल को चलाया जा रहा था, जो उस समय बंद होने के कागार पर खड़ी थी। सीएलजी स्थानीय, पंचायत और जिला स्तर पर लोगों के साथ पुलिस संपर्क बनाए रखने के लिए काम करती थी।

यह समुदायों के साथ नजदीकी से जुड़ने और जो कुछ हो रहा था उसकी नब्ज पर पुलिस की पहुंच बनाए रखने में मदद करना था। इसके जरिए पुलिस स्थानीय समुदायों के साथ मामलों पर चर्चा करती। साथ ही संवेदनशील मुद्दों की पहचान करने और सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के लिए लोगों से नियमित रूप से मिलती रहती थी।

सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील या अस्थिर जगहों पर सौहार्द बनाए रखने के लिए ‘राजस्थान कबीर यात्रा’ का आयोजन एक अच्छा तरीका लगा। और फिर सोए हुए सीएलजी को जगाया गया और काम पर लगाया गया।

ग्रामीण समुदायों ने कैसे प्रतिक्रिया दी?

नवंबर 2015 में बीकानेर के डूंगरगढ़ के बाजार क्षेत्र में भयानक दंगे हुए थे। एक पुराना बरगद का पेड़ इस हिंसा का गवाह था। इसलिए जब हमने बीकानेर में राजस्थान कबीर यात्रा करने का फैसला किया, तो डूंगरगढ़ को समारोह स्थलों में से एक के लिए चुना।

पिछले साल पुलिस ने दंगाइयों को तितर-बितर करने के लिए वाटर कैनन का इस्तेमाल किया था। इस साल पेड़ को धोने के लिए उन्हीं पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया गया और उसकी छत्रछाया के नीचे कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी।

उस समय केंद्रीय राज्य वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘ओ बेजो रानुकार में बाजे’ को अपनी आवाज से सजाया था। हमने उसी बरगद के पेड़ के नीचे समारोह का आयोजन किया जहां सबसे ज्यादा दंगे हुए थे।

यात्रा का सफल बनाने के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों ने इसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले थी। वे आदर्श मेजबान थे।

साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में संगीत – क्या आप इससे सहमत हैं?

आतंकवाद, कट्टरपंथ का मुकाबला करने के लिए हमेशा एक तरीके की जरूरत रही है। हालांकि अर्थवान सिद्धांत और आख्यान प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और इन पर काफी पेपर भी लिखे गए है। लेकिन इन सिद्धांतों को व्यवहार में कैसे परिवर्तित किया जाए, इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं था।

हिंसक उग्रवाद एक वैश्विक समस्या है और इसने काफी लोगों को प्रभावित किया हुआ है। प्रोजेक्ट ‘ताना बाना’ इसका मुकाबला करने के लिए एक प्रयोग था।

‘राजस्थान कबीर यात्रा’ और ‘ताना बाना’ कोविड के बाद लौट आए। हमने हाल ही में दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक संघर्ष के चलते उदयपुर को चुना।

क्या इस अनूठी पहल का कोई बड़ा आकलन किया गया है। कहने का मतलब है कि क्या काम कर रहा है और क्या नहीं?

प्रोजेक्ट ‘ताना बाना’ विस्तृत अध्ययन करने के लिए आईआईटी जोधपुर के साथ मिलकर काम कर रहा है। कई शोधकर्ता यात्रा के पहले, उसके दौरान और बाद के डेटा इक्ट्ठा कर रहे हैं। वे साइकोमेट्रिक टेस्ट करेंगे और देखेंगे कि क्या यात्रा का लोगों के मानस पर कोई स्थायी प्रभाव पड़ा है या फिर यात्रा उनके लिए एक सुखद इवेंट के अलावा कुछ नहीं था। टीमें उन जगहों पर भी जाएंगी जहां यात्राएं आयोजित की जा चुकी हैं। और फिर पिछले दो सालों के निष्कर्षों की तुलना की जाएगी।

जो भी परिणाम मिलेंगे, हम उस पर विचार-विमर्श करेंगे। यह रोड मैप को संभालने का एक वैज्ञानिक और पेशेवर तरीका है और इसे उसी के अनुसार इसमें बदलाव किए जाएंगे। यह ऊपरी तौर पर किया गया काम नहीं है, बल्कि जमीनी स्तर पर मजबूती से उठाया गया कदम है।

भविष्य की योजनाएं और ‘ताना बाना’ का विजन

कबीर के शांति के विचारों को हमने प्रोजेक्ट ‘ताना बाना’ में अपनी योजनाओं में बुना है। इसमें और ज्यादा कवियों और संतों को शामिल किया जाएगा। मीरा, पीपा, धन्ना… वे सभी जिन्होंने राजस्थान की आध्यात्मिक शक्ति में योगदान दिया।

राजस्थान कबीर यात्रा और इसी तरह की पहल के जरिए हम समुदायों में उनके स्वदेशी आध्यात्मिक कवियों के लिए गर्व और प्यार वापस लाना चाहते हैं।

हम अपने क्षेत्रों के दिग्गज कवियों को बढ़ावा देकर प्रोजेक्ट ताना बाना के साथ समुदायों को शामिल करेंगे। यह आपसी जुड़ाव बनाने का एक शानदार तरीका है।

महिलाओं से जुड़े मुद्दों के लिए मीरा बाई पर भी ‘मीरा यात्रा’ की जा सकती हैं। हमारे पास पुलिस सखियां हैं जो इसमें शामिल हो सकती हैं।

गृह मंत्रालय ने भी इस पहल में गहरी दिलचस्पी दिखाई है। अन्य राज्यों की पुलिस ने ताना बाना के बारे में भी जानकारी ली है ताकि वे अपने क्षेत्र में इसे दोहरा सकें।

अब तक का सफर मंत्रमुग्ध करने वाला रहा है। हर साल हम नई चीजें सीखते हैं। मुझे आशा है कि परियोजना ताना बाना संस्थागत हो जाएगी। हमारी योजना एक उचित कैलेंडर बनाने की है।

नोट: अमनदीप कपूर गृह मंत्रालय में प्रतिनियुक्ति पर जयपुर में हैं।

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