चूहे पकड़ने की कला और उसमें माहिर ये आदिवासी शिकारी

जानकी लेनिन एक लेखक, फिल्ममेकर और पर्यावरण प्रेमी हैं। इस कॉलम में वह अपने पति मशहूर सर्प-विशेषज्ञ रोमुलस व्हिटकर और जीव जंतुओं के बहाने पर्यावरण के अनोखे पहलुओं की चर्चा करेंगी।

Janaki LeninJanaki Lenin   1 Sep 2018 7:48 AM GMT

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चूहे पकड़ने की कला और उसमें माहिर ये आदिवासी शिकारी

पिंजरा खटाक से बंद हुआ, लेकिन पिंजरे से चूहा और चूहे को फंसाने का चारा दोनों गायब थे। मैं किचन से चिल्लाई, "चूहा भाग गया।" जवाब में रॉम की हल्की सी बड़बडाहट सुनाई दी। अभी सुबह नहीं हुई थी और वह अभी भी सो रहे थे। पिछले लगातार 10 दिनों से चूहा पिंजरे में लगा चारा चुराकर भाग जाता था और पिंजरा खटाक की आवाज के साथ बंद होता था।

चूहे के लिए पिंजरा लगाते समय रॉम पूरी तरह शिकारी बन जाते थे। वह अक्सर मुझे समझाते, "चूहे को पकड़ने के लिए तुम्हें एक चूहे की तरह सोचना पड़ेगा।" इसके बाद वह लकड़ी के उस पिंजरे की तली पर चीज रगड़ते, चूहे को फंसाने के लिए मूंगफली लटकाते, इस मूंगफली पर पीनट बटर का बड़ा सा टुकड़ा भी रख देते। उनके हिसाब से इस तरीके से चूहा पकड़ने में हमेशा शतप्रतिशत कामयाबी मिली है, या कहें कि कम से कम अब तक तो मिली थी।


दरअसल, चूहा पकड़ना एक कला है, और इसे कला का रूप दिया है तमिलनाडु में रहने वाली आदिवासी जनजातियों इरुला और कोरावा ने। चेन्नै का सबसे व्यस्त और भीड़भाड़ वाला इलाका है पैरीज। रात में इसकी खाली गलियों में कोरावा लोग गश्त लगाते दिखाई देते हैं और उन्हें घेरे रहते हैं कुत्तों के झुंड, उन्हें शक की नजर से देखते हुए, उन पर गुर्राते हुए। जैसे ही कोई चूहा कहीं से झांकता नजर आता, तड़ाक! .. गुलेल से तीर की तरह निकला पत्थर उसके सिर पर लगता और चूहा जमीन पर गिरकर अपनी अंतिम सांसे गिनने लगता। गुलेल कोरावा लोगों का सीधा-सादा लेकिन घातक हथियार है। चूहों से परेशान व्यापारी इनसे छुटकारे का जिम्मा कोरावा लोगों को दे देते हैं। अगली सुबह, इन शिकारियों को प्रति चूहे के हिसाब से पैसा मिलता है।

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इरूला लोगों का तरीका थोड़ा अलग और भागदौड़ वाला है। वे धान के खेतों से चूहे पकड़ते हैं। उन्हें धान के खेत में जैसे ही कोई चूहे का बिल दिखाई देता है, वे एक छोड़कर उसके सभी रास्ते बंद कर देते हैं। उसक बाद ये शिकारी मिट्टी का मटका लेते हैं जिसकी तली में एक रुपए के सिक्के जितना छेद होता है। इस मटके में हरी पत्तियां भरकर उनमें आग लगा दी जाती है। इसके बाद घड़े का मुंह चूहे के बिल पर रखकर उसमें धुआं फूंका जाता है। जब बिल के हर हिस्से में धुआं भर जाता है तो इरूला बिल को खोदते हैं। उन्हें उसमें फंसे ढेरों बेहोश और मरे हुए चूहे मिलते हैं। अगर किस्मत अच्छी हुई तो इन बिलों में उन्हें धान के ढेर भी हाथ लग जाते हैं।

शाम के समय इरूला लोग किसी परती पड़े खेत में कंटीली टहनियों में आग लगा कर इन चूहों को भून लेते हैं। भुने चूहों को साफ करने के बाद सभी बड़े चाव से उन्हें खाते हैं। आपमें बहुत से लोगों को घिन लग रही होगी लेकिन ये चूहे साफ-सुथरे होते हैं। खेतों में मिलने वाले अनाज पर पले मोटे ताजे चूहे शहरों और घरों में पाए जाने वाले चूहों से ज्यादा स्वस्थ होते हैं। इरूला जनजाति शहरों और घरों में रहने वाले चूहों को हाथ तक नहीं लगाते। उन्हें तो ये मारकर फेंक देते हैं।

1980 के दशक में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग से मिली मदद से रॉम ने एक शोध किया था। इस शोध में बताया गया था कि चूहों से छुटकारा दिलाने के लिए अगर इरूला लोगों को नौकरी पर रखा जाए तो यह तरीका काफी किफायती साबित हो सकता है। आठ महीने की छोटी सी अवधि में 1,000 इरूला लोगों ने 500 एकड़ खेतों से करीब 2,40,000 चूहे पकड़े और उनके बिलों से करीब 5 टन धान भी बरामद किया।

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इसकी तुलना में चूहे पकड़ने का काम करने वाली कंपनियां जहरीला चारा रखकर चूहों को मारती हैं। इसके बाद मरने वाले चूहों का महज अंदाजा ही लगाया जाता है क्योंकि वे तो जहर खाकर अपने बिलों में मर जाते हैं। कितने चूहे बिना जहर खाए बचकर भाग गए इसका कोई अंदाजा नहीं होता। यह तरीका इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि इससे वे तमाम निर्दोष स्तनपायी और रेंगने वाले जीव मारे जाते हैं जिन्होंने या तो चूहों के लिए रखा जहरीला चारा खा लिया होता है या जो जहर खाकर मरे चूहों को खा लेते हैं। रॉम का अंदाजा था कि जहर लगा कर रखे गए चारे की तुलना में इरूला लोगों का तरीका 15 गुना ज्यादा किफायती साबित होता है।

इसके बाद रॉम ने एक उच्च अधिकारी से मिलकर आग्रह किया कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत चूहा पकड़ने को रोजगार के रूप में दर्ज कर लिया जाए। उस अधिकारी ने रॉम के इस सुझाव को सराहा लेकिन कहा कि सरकार ऐसा करे तो बड़ा विवाद खड़ा हो सकता है। सरकार गरीब आदिवासियों को रोजीरोटी कमाने के लिए चूहे पकड़ने पर मजबूर करे तो सुनकर कैसा लगेगा। और इस तरह इरूला लोगों के इस हुनर का इस्तेमाल नहीं हो पाया।

यहां घर में, चूहा एक बार फिर से रॉम और उनके लगाए पिंजरे को चकमा देने में कामयाब हो गया। मुझे लगता है कि इस चूहे को पकड़ने के लिए किसी इरूला आदिवासी की ही मदद लेनी होगी।

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