Gaon Connection Logo

सरस आजीविका मेला 2021: अपने हुनर के जरिए आत्मनिर्भर बन रहीं देश के अलग-अलग हिस्सों से आयी ग्रामीण महिलाएं

नई दिल्ली में 14 नवंबर से 27 नवंबर के बीच 40वें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला 2021 में सरस आजीविका मेला चल रहा है। मेले का आयोजन COVID19 के कारण एक साल के बाद किया गया था। गांव कनेक्शन ने मेले आयी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिला कारीगरों से बात की जिन्होंने मेले के बारे में अपने अनुभव साझा किए।
saras aajeevika mela 2021

नई दिल्ली। अगर आप भी आयशा बानो की लकड़ी की नक्काशी की कारीगरी देखते हैं तो आप लगेगा कि शायद ये कोई पेंटिंग होगी, लेकिन यह आयशा बानो का हुनर है।

कर्नाटक के मैसूर से आयी 40 वर्षीय आयशा शीशम की लकड़ी पर रंगीन नक्काशी बनाती हैं, जोकि किसी पेंटिंग की तरह ही लगती है। उनकी हर एक कलाकृति शीशम की लकड़ी पर ही बनती है, जिसे वो अपने पास के जंगलों से लाती हैं। एक कलाकृति को आकार देने में 2 से 3 महीने लग जाते हैं। बानो ने बताया कि इस काम में 4 से 5 महिलाएं मिलकर काम करती हैं।

“एक महिला लकड़ी काटती है, एक उन्हें रंगती है, जबकि दूसरी उन्हें पॉलिश करती है। एक छोटी भी छोटी गलती से पूरी पेंटिंग बर्बाद हो सकती है, “बानो ने बताया।

बानो ने तो वैसे कहीं पर कोई ट्रेनिंग नहीं ली है, लेकिन दूसरे कारीगरों को देखकर खुद ही सीखा है। “मैंने चार साल तक देखा और सीखा और फिर बिस्मिला नाम से स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) शुरू किया जिसमें पंद्रह महिलाएं शामिल हैं। हम हर साल ऐसी 10-15 लकड़ियों की पेंटिंग बनाते हैं, “उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया।

बानो उन कई स्वयं सहायता समूहों में से एक हैं जो 40वें भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले के एक भाग के रूप में प्रगति मैदान, नई दिल्ली में चल रहे सरस आजीविका मेला 2021 में भाग ले रहे हैं।

मैसूर, कर्नाटक की आयशा बानो शीशम का उपयोग करके लकड़ी की बारीक नक्काशी करती हैं। फ़ोटो : सारा ख़ान

मेला देश भर के 300 शिल्पकारों के हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों का प्रदर्शन कर रहा है। यह ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) और राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान द्वारा आयोजित किया जाता है।

सरस मेला दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्रामीण महिलाओं के स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को उनके कौशल का प्रदर्शन करने, बेचने और उचित मूल्य पर संभावित बाजार के खिलाड़ियों के साथ संबंध बनाने के लिए एक मंच के तहत एक पहल है।

“हम शिल्पकारों को उनके राज्य से प्रदर्शनी में लाकर प्रायोजित करते हैं। उनके रहने और अन्य खर्चे सरकार द्वारा उठाए जाते हैं। हमने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम को श्री मारुति स्वयं सहायता समूह द्वारा बकरी के चमड़े से बनी कुछ पेंटिंग भी बेची हैं, “सिद्धांत श्रीवास्तव, कौशल विकास विभाग, कर्नाटक सरकार के एक सलाहकार ने गांव कनेक्शन को बताया।

स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थौबल, मणिपुर की लैशराम संध्या रानी देवी जलकुंभी से बनी टोकरियां, चटाई जैसे उत्पाद लेकर आयी हैं। ये सभी उत्पादन लॉकडाउन के दौरान स्वयं सहायता की महिलाओं ने बनाए हैं और मेले में बेचने के लिए लायी हैं।

“हमें ऑडियंस नामक एक स्थानीय गैर-सरकारी संगठन द्वारा प्रशिक्षित किया गया था। हमने उनके लिए उत्पाद बनाने से ज्यादा पैसे नहीं कमाए, इसलिए मैंने इस साल फरवरी में दस महिलाओं के साथ एक स्वयं सहायता समूह शुरू किया। हमने पैसे जमा किए, सभी उत्पाद बनाए जो यहां प्रदर्शित हैं और अब उन्हें बेच रहे हैं, “उसने समझाया।

थौबल, मणिपुर की लैशराम संध्या रानी देवी और एक स्वयं सहायता समूह के एक हिस्से ने जलकुंभी से बनी टोकरियाँ, पिकनिक, टोपी, चटाई आदि प्रदर्शित की। फ़ोटो : सारा ख़ान

संध्या ने यह भी कहा कि लॉकडाउन के बाद से कारोबार धीमा रहा है और सरस जैसा मंच उनके उत्पादों को बेचने में मदद करेगा। बानो ने कहा कि लॉकडाउन के दौरानके दौरान कच्चा माल खोजना कितना मुश्किल था। बिक्री सामान्य से कम थी और उन्हें उम्मीद है कि वह मेले में अपने उत्पाद बेचेंगी।

सरस आजीविका मेला आधिकारिक तौर पर 18 नवंबर को आम लोगों के लिए खोला गया है और यह 27 नवंबर तक चलेगा।

अंग्रेजी में खबर पढ़ें

More Posts

छत्तीसगढ़: बदलने लगी नक्सली इलाकों की तस्वीर, खाली पड़े बीएसएफ कैंप में चलने लगे हैं हॉस्टल और स्कूल

कभी नक्सलवाद के लिए बदनाम छत्तीसगढ़ में इन दिनों आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलने लगी है; क्योंकि अब उन्हें...

दुनिया भर में केले की खेती करने वाले 50% किसान करते हैं इस किस्म की खेती; खासियतें जानिए हैं

आज, ग्रैंड नैन को कई उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है, जिसमें लैटिन अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया, भारत...