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मगरमच्छ बाघ और साँपों के बीच हर रोज़ क्यों जाती हैं सुंदरबन के गाँवों की महिलाएँ

सुंदरबन के मैंग्रोव के पास के गाँवों की महिलाएँ मगरमच्छों, साँपों और यहाँ तक कि बाघों का सामना करते हुए जंगली टाइगर झींगा के सीडलिंग इकट्ठा करती हैं। उनके पति या घर के अन्य आदमी काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं।
#Sundarbans

गोसाबा (दक्षिण 24 परगना), पश्चिम बंगाल। दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वनों में से एक के बीचों बीच गर्दन तक पानी में खड़ी यह बुजुर्ग महिला बेहद मेहनती और जुझारू नजर आ रही है। जहाँ वह काम कर रही हैं वहां मगरमच्छों, साँपों और यहाँ तक कि बाघों का खतरा बना रहता है। लेकिन इसकी परवाह किए बिना उनके जैसी एक लाख महिलाएँ अपनी रोजी-रोजी के लिए वहाँ काम करने को मज़बूर हैं।

इस बुजुर्ग महिला यशोदा मोंडोल की उम्र 72 साल है। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी दिनचर्या ऐसी है कि जिम जाने वाले व्यक्ति को भी शर्मसार कर दे।

सुंदरबन के दलदली कीचड़ पर खड़े होकर, यशोदा ने गंदे पानी में अपने पीछे एक बड़ा आयताकार मछली पकड़ने का जाल खींचा। उनके दिन का एक बड़ा हिस्सा इसी काम को बार-बार करने में गुजरता है। यशोदा अपनी आजीविका के लिए बगदा या जंगली टाइगर झींगा के सीडलिंग को पकड़ने और बेचने के लिए कड़ी मेहनत करती है। वह अपने जाल को कम से कम 20 बार पानी में डालती हैं और उसे वहाँ से खींच कर बाहर निकालती हैं, ऐसा तब तक करती हैं जब तक कि उनके पास भोजन खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे यानी 100 रुपये इकट‍्ठे न हो जाएँ। उनके घर के आदमी लोग काम की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर गए हैं।

टाइगर झींगे सुंदरबन द्वीपसमूह की नदियों और खाड़ियों में अपने अंडे देते हैं। जब वे समुद्र की ओर वापस जाते हैं तो मीनधारा उन्हें फँसा लेती है। नदियों और खाड़ियों से झींगा के सीडलिंग को इकट्ठा करना सुंदरबन में एक लाख से अधिक गरीब महिलाओं के लिए आजीविका का एक खतरनाक लेकिन महत्वपूर्ण ज़रिया है। सुंदरबन बंगाल की खाड़ी में बहने वाली गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के संगम पर स्थित मैंग्रोव वनों का सबसे बड़ा विस्तार है।

“92, 93, 94…,”मोंडोल ने ज़ोर से गिना। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “बिचौलिया मुझे 1,000 बैगदा के लिए 200 रुपये देगा।” उनकी मासिक आय शायद ही कभी 2,000 रुपये से ज़्यादा हो पाई हो।

इन महिलाओं को स्थानीय रूप से मीनधारा के नाम से जाना जाता है । जिसका मतलब होता है “मछली पकड़ने वाली”। सुंदरबन के मैंग्रोव के पास के गाँवों में रहते हुए, वे टाइगर झींगा के सीडलिंग को इकट्ठा करने के लिए बड़े ख़तरों का सामना करती हैं। गंदा पानी, साँपों और मुहाना पर मगरमच्छों और कभी-कभी ज्वार-भाटे के होने का ख़तरा।

मोंडोल ने याद करते हुए बताया, “एक बार बाघ तैरकर नदी पार कर रहा था और किनारे पर पहुँच गया। वहाँ मैं बगड़ा पकड़ रही थी। मैंने बस अपनी आँखें बंद कर लीं और बोनबीबी को याद करने लगी। मैंने बाघ से कहा कि वह अपने रास्ते चले जाये और मुझे अपने रास्ते जाने दे। उसने मुझे सुरक्षित छोड़ दिया।”

बोनबीबी या जंगल की देवी को सुंदरबन के मछुआरों और वनों पर निर्भर समुदायों का रक्षक माना जाता है।

इस बुजुर्ग महिला यशोदा मोंडोल की उम्र 72 साल है। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी दिनचर्या ऐसी है कि जिम जाने वाले व्यक्ति को भी शर्मसार कर दे।

इस बुजुर्ग महिला यशोदा मोंडोल की उम्र 72 साल है। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी दिनचर्या ऐसी है कि जिम जाने वाले व्यक्ति को भी शर्मसार कर दे।

लेकिन सभी इतनी भाग्यशाली नहीं होती हैं। मोंडोल ने अपनी कम से कम पाँच महिला रिश्तेदारों को कुंभीर या मगरमच्छ के हमले में खो दिया है। उस दौरान वे झींगा के सीडलिंग को इकट्ठा कर रही थीं।

वह खुद भी कई बार पानी वाले साँपों के काटने से बच चुकी हैं।

उन्होंने कहा, “यह भाग्य है। अगर मुझे नदी में मरना हुआ तो मैं मर जाऊँगी।”

मोंडोल की उम्र उस समय दस साल की थी जब एक छोटी सी लड़की के रूप में उन्होंने झींगा के सीडलिंग को इकट्ठा करना शुरू किया था। उस समय तक तो उन्हें 20 से ज़्यादा गिनना भी नहीं आता था।

वह मुस्कुराई और बोली, “मैं 20-20 का ग्रुप बनाती और उन्हें गिनती थी। लेकिन अब मैं आराम से गिनती कर लेती हूँ। आप मेरा टेस्ट लेकर देखें, मैं कुछ ही समय में 10,000 झींगा के अंडों को गिन सकती हूँ।”

मोंडोल अपने गाँव के छह झींगा के अंडों को संग्रह करके रखने वाले समूह में सबसे बुज़ुर्ग हैं। ये अंडे कम ज्वार के दौरान बिद्याधारी नदी में एक साथ निकलते हैं। यह नदी सुंदरबन के गोसाबा ब्लॉक में उनके गाँव सोनगर के बगल से बहती है। सुंदरबन बंगाल की खाड़ी में बहने वाली गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के संगम पर स्थित दुनिया में निरंतर मैंग्रोव वनों का सबसे बड़ा विस्तार है।

टाइगर झींगे सुंदरबन द्वीपसमूह की नदियों और खाड़ियों में अपने अंडे देते हैं। जब वे समुद्र की ओर वापस जाते हैं तो मीनधारा उन्हें फँसा लेती है। नदियों और खाड़ियों से झींगा के सीडलिंग को इकट्ठा करना सुंदरबन में एक लाख से अधिक गरीब महिलाओं के लिए आजीविका का एक खतरनाक लेकिन महत्वपूर्ण ज़रिया है। 

टाइगर झींगे सुंदरबन द्वीपसमूह की नदियों और खाड़ियों में अपने अंडे देते हैं। जब वे समुद्र की ओर वापस जाते हैं तो मीनधारा उन्हें फँसा लेती है। नदियों और खाड़ियों से झींगा के सीडलिंग को इकट्ठा करना सुंदरबन में एक लाख से अधिक गरीब महिलाओं के लिए आजीविका का एक खतरनाक लेकिन महत्वपूर्ण ज़रिया है। 

सुंदरबन द्वीपसमूह में भारत के सबसे अधिक गरीब और कमजोर लोगों में से 44 लाख से ज़्यादा लोग रहते हैं। इस आबादी का लगभग आधा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे है। विशाल मैंग्रोव वन के नजदीक ब्लॉकों में गरीबी सबसे ज़्यादा हैं।

सुंदरबन के अधिकांश पुरुष मज़दूर के रूप में काम करने के लिए आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों की ओर चले गए हैं। घरों और परिवारों की देखभाल के लिए महिलाओं को यहाँ अकेले जूझना पड़ता है।

गरीबी और शिक्षा की कमी इन महिलाओं को झींगा के अंडों को इकट्ठा करने के काम करने के लिए मज़बूर करती है। अगर ये महिलाएँ सतर्क नहीं हों, तो वे आसानी से एक इंच से भी कम लंबे भूरे बालों वाले झींगा के अंडों को देखने से चूक सकती हैं।

अंडों को पानी से भरे एल्यूमीनियम के तसले में इकट्ठा किया जाता है। मोंडोल अंडों को छांटती है और साफ करती हैं । उन्हें नदी के अन्य अवशेषों से अलग किया जाता है और फिर उन्हें बिचौलियों को बेचा जाता है। ये बिचौलिए राज्य की राजधानी कोलकाता तक से यहाँ आते हैं।

यह मोंडोल जैसी सबसे गरीब महिला मीनधरा ही हैं, जिन्होंने 51,000 हेक्टेयर क्षेत्र से 50,000 टन का उत्पादन करके पश्चिम बंगाल को भारत में टाइगर झींगा के उच्चतम उत्पादक के रूप में स्थापित करने में मदद की है।

मोंडोल ने एक सवाल पर कंधे उचकाते हुए जवाब दिया, पुरुष ऐसा नहीं करते हैं। कई, उनके बेटे खोगेम मोंडोल की ही तरह काम की तलाश में कहीं और चले गए हैं। उनका बेटा खोगेम आंध्र प्रदेश चला गया है।

उन्होंने कहा, “हम महिलाएँ को अपनी और अपने परिवार की देखभाल करने के लिए पीछे अकेला छोड़ दिया गया है।”

कोलकाता के जादवपुर यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ ओशनोग्राफिक साइंसेज के निदेशक डॉ. सुगाता हाजरा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सिर्फ कुछ ही मामले हैं, शायद पाँच प्रतिशत, जहाँ पत्नी या परिवार साथ जाता है लेकिन ज़्यादातर पुरुष ही पलायन करते हैं। हर तीसरे घर में 16 से 40 वर्ष की उम्र के बीच एक प्रवासी है।” उन्होंने कहा, महिलाओं को आमतौर पर बच्चों और वृद्ध लोगों की देखभाल के लिए द्वीपों पर छोड़ दिया जाता है।

दिसंबर 2022 का एक शोध बताता है कि सुंदरबन में सर्कुलर माइग्रेशन पसंदीदा तरीका है जिसमें प्रवासी फिर से प्रवास करने के लिए घर लौटते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जहाँ पुरुष मुख्य रूप से मौसमी प्रवासन के माध्यम से आजीविका की अनिश्चितताओं का सामना करते हैं, वहीं महिलाएँ द्वीप के भीतर उपलब्ध आजीविका के किसी भी विकल्प, जैसे झींगा अंकुर संग्रह से इन स्थितियों का सामना करती हैं।

हाजरा ने समझाया, “सुंदरबन में बाघ के हमलों की तुलना में मगरमच्छ के हमलों में ज़्यादा लोग मरते हैं। लेकिन उनके पास और क्या आजीविका है? यह केकड़ा पकड़ना और झींगा मछली संग्रह ही उनके पास एकमात्र विकल्प हैं। वे इसे आसानी से मिलने वाला काम मानते हैं।”

बागदा को पकड़ना ज्वार पर और चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है। अच्छी पकड़ के लिए कम ज्वार अच्छा होता है।

मोंडोल अपनी बहू चंदना मोंडोल और पोती देविका बर्मन के साथ झींगा मछली के अंडों की तलाश में हर दिन कम ज्वार के समय बिद्याधारी नदी पर जाती हैं। कभी-कभी भोर में तो कई बार सूरज डूबने के समय पर भी।

तीनों महिलाएँ अक्सर सुबह करीब 3 बजे घर से निकलती हैं और 09:30 बजे तक लौट आती हैं। वे दिन में लगभग 5 बजे एक बार फिर पानी में लौटकर आती हैं।

सबसे निचले पायदान पर

झींगा के अंडों को पकड़ने वालों में मोंडोल, चांदना और देवकी जैसी ज़्यादातर महिलाएँ शामिल हैं, जो टाइगर झींगे के आर्थिक मूल्य की सीढ़ी में सबसे निचले पायदान पर हैं।

कड़ी मेहनत करने के बाद, महिलाएँ कैनिंग, जिबंटाला और दक्षिण 24परगना जिले के अन्य स्थानों में खारे पानी के जलीय कृषि के लिए भेरिया या बड़े कृत्रिम बाड़ों में खेती के लिए स्थानीय बिचौलियों जनानरानराय जना को अपनी मछलियों के अंडों को बेचती हैं।

इन भेरिया में बगदा की ख़ेती तीन से चार महीने तक की जाती है, जिसके बाद उन्हें थोक बाज़ारों में बेच दिया जाता है और बाद में निर्यात बाज़ार में ले जाया जाता है। झींगा मछली पकड़ने के काम से परे की श्रृंखला ज़्यादातर पुरुषों द्वारा संभाली जाती है, क्योंकि महिलाएँ स्वयं ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं।

मोंडोल की 33 वर्षीय पोती देविका ने कहा, “इन अंडों को पकड़ने से परे किसी भी चीज़ के लिए एक बड़े सेटअप की ज़रूरत होती है जो हमारे पास नहीं है।”

वह अपने पति से अलग हो गई है और अपने दो बच्चों आठ वर्षीय जॉयबोरो और 11 वर्षीय जॉयश्री की खातिर वह अपना कम वेतन वाला काम करती रहती है।

देविका ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं दिन में 10 से 12 घंटे काम करती हूँ और औसतन कभी भी 100 रुपये से ज़्यादा नहीं कमा पाती हूँ ।”

“अगर मेरे पास कोई और काम होता तो मैं ऐसा कभी नहीं करती।”

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