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सुंदरवन को बचाना है तो भारत और बांग्लादेश को ये रणनीति अपनानी होगी

विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक कवच कहा जाने वाला सुंदरवन कैसे बचे इस पर कई दशकों से मंथन चल रहा है, ताज़ा बैठक में भारत और बांग्लादेश को मिलकर एक ख़ास रणनीति पर काम करने का सुझाव दिया गया है।
#Sundarbans

भारत और बांग्लादेश की सीमाओं को छूता विशाल सुंदरवन अब सुंदरता खो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर तुरंत इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वनों में से एक (140,000 हेक्टेयर) इस वन का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

लोगों की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वनों का दोहन सुंदरवन की मुख्य समस्याओं में से एक है। अवैध रूप से लकड़ी निकालना और स्थायी प्रबंधन पद्धतियों का न होना क्षेत्र में वन संरक्षण सम्‍बन्‍धी प्रमुख समस्याएं हैं। मैंग्रोव आंशिक रूप से खुलना जिले में हैं, जहाँ एक सरकारी कागज मिल भी है। लकड़ी, ईंधन की लकड़ी, पशु चारे, देशी दवाओं और भोजन (मछली, शंख, शहद और जंगली जानवर) के लिए सुंदरबन का सदियों से शोषण किया जाता रहा है अब बढ़ती जनसंख्या के दबाव ने शोषण की दर को और बढ़ा दिया है।

सुंदरवन को हो रहे नुकसान पर भारत और बांग्लादेश के विशेषज्ञों के बीच वर्चुअल माध्‍यम से एक परिचर्चा हुई जिसमें क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के निदेशक संजय वशिष्ठ ने कहा, “सुंदरवन भारत और बांग्‍लादेश के लिये उतना ही ख़ास है जैसे लैटिन अमेरिका के लिये अमेजॉन है। जलवायु परिवर्तन का इस पर खासा असर पड़ा है। बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवाती तूफानों के प्रभाव को कम करने में सुंदरवन का बड़ा योगदान है, लेकिन इसकी हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। हम देख रहे हैं कि लॉस एंड डैमेज (हानि और क्षति) किस तरह से सुंदरवन में असर डाल रहा है। ऐसे में यह जरुरी है कि भारत और बांग्लादेश सुंदरवन को बचाने को लिए साथ मिलकर काम करें।

संजय वशिष्ठ ने आगे कहा, “दोनों देश अंतरराष्ट्रीय सहयोग का इंतजार क्यों कर रहे हैं खुद आगे बढ़कर इस दिशा में काम करना चाहिए और अलग-अलग के बजाय एक ‘क्षेत्रीय रणनीति’ बनानी होगी।”

सुंदरवन रिजर्व फॉरेस्ट (एसआरएफ), बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिम में पूर्व में बालेश्वर नदी और पश्चिम में हरिनबंगा के बीच, बंगाल की खाड़ी से सटे हुए, दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है। भारत की ओर पश्चिम बंगाल में सुंदरबन वन में करीब 100 द्वीप हैं, जिनमें से 54 बसे हुए हैं बाकी जंगल से ढका हुआ है।

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और बाघ परियोजना के तहत बाघ संरक्षण के लिए एक प्रसिद्ध स्थान होने के नाते, यह जगह भारत और बांग्लादेश में डेल्टा के किनारे के शानदार जीवों की झलक पाने के लिए हर बाघ प्रेमियों की पसंदीदा जगह भी है।

बांग्‍लादेश के सांसद साबेर हसन चौधरी ने कहा, “अगर हम समग्र रूप से सुंदरवन और लॉस एण्‍ड डैमेज के बारे में बात करने जा रहे हैं तो यह बेहद चिंताजनक होने वाला है क्योंकि लॉस एण्‍ड डैमेज का मतलब स्थायी नुकसान है और मुझे यकीन है कि हममें से कोई भी सुंदरवन को उस स्थिति में नहीं देखना चाहता। मान लीजिए कि आपका विस्थापन हुआ। यह एक स्थायी क्षति है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती। इसलिए हम निश्चित रूप से इसे उस स्तर पर नहीं देखना चाहेंगे।”

क्‍लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला की चिंता है योजनाओं में रुकावटों से कैसे निपटे ? वे कहती हैं, “मैं जलवायु परिवर्तन के भौगोलिक राजनीति (जियो पॉलिटिक्स) के पहलुओं को देख रही हूं। भारत और बांग्लादेश सुंदरवन के मामले में एकीकृत योजना के तहत आगे बढ़े हैं। अगले सीओपी28 (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक सम्मेलन) की बैठक में ‘करो या मरो’ के कई अवसर होंगे लेकिन जियो पॉलिटिकल रुकावटों की वजह से गड़बड़ हो रही हैं।’’

सुंदरवन क्षेत्र अपने विस्तृत जीव-जंतुओं के लिए जाना जाता है, जिनमें 260 पक्षी प्रजातियाँ, बंगाल टाइगर और दूसरे संकटग्रस्त प्रजातियाँ जैसे एस्टुरीन मगरमच्छ और भारतीय अजगर शामिल हैं।

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क्‍लाइमेट एक्‍शन नेटवर्क के विशेषज्ञ हरजीत सिंह ने सुंदरवन के संरक्षण का जिक्र करते हुए ऐसे द्वीपीय समुदायों के मुद्दों को उठाने के लिये एक ‘आईलैंड फोरम’ बनाने की वकालत की। उन्‍होंने कहा, ‘‘हम अपने मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में और ज़्यादा दिखने वाला बना सकते हैं। मुझे लगता है कि हमें द्वीप समुदायों का एक अंतरराष्ट्रीय मंच बनाना चाहिए, जो देश से परे हो। द्वीपीय राष्ट्रों ने तो अपने मुद्दों को उठाने के लिए बहुत कुछ किया लेकिन उन द्वीपों का क्या जो बड़े समुदायों का हिस्सा हैं और जिनके पास कोई मंच नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 20 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ एक बैठक की थी, जिसमें मैंने हिस्सा लिया था। ये देखकर काफी निराशा हुई कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान अभी भी स्थिति की गंभीरता और अपनी भूमिका को समझ नहीं पाए हैं। वे अब भी अंधेरे में तीर चला रहे हैं। वे चीजों को केवल कर्ज़ देने के दायरे तक ही देखना चाहते हैं।”

बांग्‍लादेश के जल संसाधन प्रबंधन एवं जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ ऐनुन निशात ने जलवायु परिवर्तन की मौजूदा रफ्तार के सुंदरवन पर भविष्‍य में पड़ने वाले प्रभावों का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘सुंदरवन पर इसके बहुत सारे प्रतिकूल प्रभाव होंगे। हम कह सकते हैं कि समुद्र का जलस्तर 25 सेंटीमीटर तक बढ़ गया है। ऐसी जनसंख्या में वृद्धि हुई है जिसके पास पीने का पानी नहीं है।”

बांग्‍लादेशी अर्थशास्‍त्री काजी खोलीकुज्जमां अहमद ने सुंदरवन के संरक्षण के लिये अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय को साथ लाने पर जोर देते हुए कहा, ‘‘हमें वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को शामिल करना चाहिये। बांग्लादेश और भारत जलवायु परिवर्तन और इंसानी दखल के लाभार्थी नहीं बल्कि भुक्‍तभोगी हैं।”

बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के संगम पर स्थित पश्चिम बंगाल का सुंदरवन वहाँ के गाँव वालों की आजीविका का साधन भी है, कोई वहाँ से लकड़ी लाता है तो कोई झींगा के सीडलिंग। जाने अनजाने वहाँ होने वाले प्राकृतिक नुकसान और गाँव के लोगों की तकलीफों पर गाँव कनेक्शन पहले भी कई स्पेशल रिपोर्ट वहाँ से दे चुका है।  

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