बबुरहा (उन्नाव), उत्तर प्रदेश। 17 फरवरी, 2021 के दिन को वो जिंदगी भर नहीं भुला पाएंगे, 16 वर्षीय बेटी के पिता पड़ोस के गाँव से मजदूरी करने के लौटे थे।
“हम सुबह सात बजे ही मजदूरी करने दूसरे गाँव निकल गए थे। शाम को 5 या 5:30 वापस आए तो देखा कि गाँव वाले हमारी 17 साल की बेटी और उसकी 13 साल की चचेरी बहन को ढूढ रहे थे। मैं भी उनके साथ शामिल हो गया, “उन्नाव जिले के बबुरहा गाँव के रहने वाले पिता ने गाँव कनेक्शन को बताया।
“मुझे पता चला की बरसीम काटने गई थीं, बस हम भी पाठकपुरा गाँव के उसी खेत में उन्हें बुलाने लगे, पास जाकर देखा तो खेत में तीनों बच्चियां बेहोश मिली सभी के हाथ दुपट्टे से बंधे थे। फिर वहां से उठा के चौराहे लाए , फिर वहां से उन्हें सरकारी अस्पताल ले गए वहां पता चला की हमारी बिटियां ख़त्म हो चुकी थी, “इतना कहकर 16 वर्षीय के पिता रो पड़ते हैं। वह दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।
फरवरी 2021 में, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 65 किलोमीटर दूर, बबुरहा गाँव, तीन नाबालिग दलित लड़कियों के रूप में हिल गया था, जो 13, 16 और 17 साल की चचेरी बहनें थीं, सभी एक खेत में बेहोश पाई गईं।
उनमें से दो – 13 वर्षीय और 16 वर्षीय – की अस्पताल में ही मौत हो गई, जबकि सबसे बड़ी बच गई। उन्हें कथित तौर पर उसी गाँव के 25 वर्षीय आरोपी विनय उर्फ लंबू और एक अन्य नाबालिग साथी द्वारा कीटनाशकों के साथ जहर दिया गया था।
लड़कियों के परिजनों की शिकायत है कि लगभग दो साल हो गए हैं और अदालती कार्यवाही कछुए की चाल से चल रही है। पिछले 22 महीनों में केवल एक अदालती कार्यवाही हुई है। आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धीमी गति से बच्चियों के परिजन नाराज हैं।
इस बीच, मुख्य आरोपी विनय फिलहाल न्यायिक हिरासत में है, जबकि नाबालिग आरोपी तभी से बाल सुधार केंद्र में है।
“अभी तक इस मामले में PW1 (प्राथमिक गवाही) का बयान हुआ है, जिस समय पीड़िता का बयान दर्ज किया जाना था, उस समय अदालत में हड़ताल थी, इसलिए हम आगे की कार्यवाही की प्रतीक्षा कर रहे हैं, “पीड़ित लड़कियों के तरफ के वकील मुकेश वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया।
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच के लिए काम करने वाली एक कार्यकर्ता शोभना स्मृति ने कहा कि पिछले लगभग दो वर्षों में मामले को फैसले की दिशा में प्रगति करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
उनके अनुसार, देरी देश में न्यायाधीशों और अदालतों की कमी के कारण हुई। “इस देश में न्याय वितरण प्रणाली को बीमार करने वाली बहुत सी चीजें हैं। और, दलित ग्रामीण क्षेत्रों में समाज के सबसे शोषित वर्गों में से हैं। ऐसे मामलों से तेजी से निपटा जाना चाहिए,” स्मृति ने गाँव कनेक्शन को बताया।
काम करने का ढंग
पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) लक्ष्मी सिंह ने 19 फरवरी, 2021 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आरोपी विनय ने लॉकडाउन के दौरान लड़कियों में से एक (17 वर्षीय जो हमले में बच गई) से दोस्ती की थी और वे अक्सर मिलते थे।
पुलिस अधिकारी के हवाले से कहा गया है, “जब लड़की ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और उसे अपना फोन नंबर देने से इनकार कर दिया, तो उसने उसे मारने का फैसला किया।”
“अन्य दो लड़कियों ने भी उसी पानी की बोतल से पी लिया जिसमें कीटनाशक मिला हुआ था। विनय ने कहा कि उसने अन्य दो को पानी पीने से रोकने की कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं कर सका। जब लड़कियां बेहोश हो गईं, तो वह घबरा गया और मौके से अपने साथी के साथ भाग गया, “पुलिस अधिकारी ने कहा।
“हसिया-खुरपा, उनके सिर के पास पड़ा था। मेरे 16 साल के बच्ची के मुंह से झाग निकल रहा था। हम लड़कियों को प्रधान जी की कार में डॉक्टर के पास ले गए, लेकिन कुछ ही देर में उनकी मौत हो गई, “मां ने गाँव कनेक्शन को बताया।
इस बीच, मृतक 13 वर्षीय लड़की की दादी ने कहा कि लड़की ने बचपन से ही मुश्किलों का सामना किया था। जब 11 दिन की थी तभी उसकी माँ मौत हो गई थी, कुछ सालों बाद इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली, उनके दो बच्चे हैं। वो अपने बुजुर्ग बाबा-दादी के साथ रहती थी।
पोती का जिक्र होते ही 13 साल की बच्ची की दादी एक अंधेरी कोठी में भूसे के बीच रखे अपनी पोती के स्कूल बैग को उठा लाती हैं, और उसमें रखी किताबों के पन्ने पलते हुए रोते हुए वो बस इतना ही कहती हैं, “11 दिन की थी जब उसकी माँ की मौत हो गई थी, जैसे हमारी लड़की गयी वैसे वो भी जाए, हमसे क्या मतलब उसको फांसी मिलनी चाहिए।”
धीमी कानूनी कार्यवाही से कार्यकर्ता नाराज
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने क्राइम इन इंडिया 2021 शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट में कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के कुल 428,278 मामले दर्ज किए गए। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक कुल 171,730 ऐसे मामले लंबित हैं।
साथ ही, दलित महिलाओं के साथ बलात्कार (3,870) बलात्कार के कुल मामलों (31,677) का 12 प्रतिशत पाया गया। अनुसूचित जाति के बच्चों के बलात्कार के 1,285 मामले भी दर्ज किए गए थे।
उन्नाव में दोहरे हत्याकांड के बारे में गाँव कनेक्शन से बात करते हुए, 2012 की दिल्ली गैंगरेप पीड़िता की पैरवी करने वाली वकील सीमा कुशवाहा ने कहा कि अगर लैंगिक हिंसा के शिकार लोगों को न्याय मिलना है तो न्यायिक प्रणाली में निश्चित रूप से सुधार की जरूरत है।
कुशवाहा ने कहा, “इस मामले में, अपराधी हिरासत में हैं, लेकिन ज्यादातर, अदालतें आरोपियों को जमानत देती हैं और सजा की दर बहुत कम है।” “आपराधिक मानसिकता वाले अपराधियों को समाज में खुलेआम घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है जो बड़े पैमाने पर नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालता है। न्यायपालिका में इस तरह से सुधार किए जाने की जरूरत है कि अदालती कार्यवाही समय पर सुनिश्चित हो।”
अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अवधेश सिंह ने कहा कि मामले की कार्यवाही के पीछे COVID-19 महामारी एक निर्णायक कारक थी।
“अदालतें लॉकडाउन के दौरान मुश्किल से काम कर रही थीं। मेरा मुवक्किल विनय जेल में है और उस पर NSA [राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980] का आरोप लगाया गया था जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। उन पर एनएसए के तहत किस आधार पर आरोप लगाया गया? दो लड़कियों की हत्या कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है? प्रशासन को अपनी मर्जी से ऐसे कानूनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, “उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।
‘कृषि परिवेश में महिलाओं को यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है’
17 फरवरी 2021 की शाम जहर खाने वाली लड़कियां घर में पशुओं के लिए चारा लेने निकली थीं। 2018 में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ड्यूपॉन्ट की कृषि शाखा, कोर्टेवा एग्रीसाइंस द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में 78 प्रतिशत महिलाएं जो कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगी हुई हैं, उन्हें यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है।
16 साल की मृतका की बहन समय 9वीं कक्षा में पढ़ती है, उसकी माँ बताती हैं, “छोटी बिटिया स्कूल जाती है, एक दो बार बिटियां के स्कूल जो की पाठकपुर में है वहां कुछ लोग आये और पूछने लगे कि यहां पढ़ने आती है तो साथ की लड़कियों ने मना कर दिया लेकिन उसके बाद डर की वजह से हमने लड़की को उस स्कूल नहीं भेजा उसका स्कूल बदल दिया अब मेरा लड़का स्कूल छोड़ने जाता है और लेने जाता है अकेले नहीं भेजते है।”
उनका डर जायज है। गैर-सरकारी संगठन, चाइल्ड राइट एंड यू द्वारा प्रकाशित एजुकेटिंग द गर्ल चाइल्ड नामक एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 25.2 प्रतिशत लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें घर से बहुत दूर भेजने से डरते हैं।