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यूपी चुनाव 2022: छुट्टा पशु कहीं चर न जाएं वोट की फसल, क्योंकि खेतों में कट रहे किसानों के दिन रात

2012 से लेकर 2019 तक देश के बाकी हिस्सों में आवारा मवेशियों की संख्या में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी में 17.34 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि राज्य सरकार ने गौ शालाओं की स्थापना की है, अतिरिक्त कर लगाया है और गाय कल्याण योजनाएं भी शुरू की हैं। लेकिन समस्या कम नहीं हो पाई है। आवारा पशुओं से किसानों की फसल को नुकसान हो रहा है। गांव कनेक्शन की 'क्या कहता है गाँव' सीरीज के लिए एक ग्राउंड रिपोर्ट।
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4 जनवरी को कड़ाके की सर्दी में सुबह-सुबह अखौरा गांव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में गांव के कुछ लोग बिन बुलाए मेहमानों को लेकर आए – ये मेहमान और कोई नहीं बल्कि आवारा पशु थे। जिन्होंने उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के इस गांव के किसानों को पिछले कई दिनों से खासा परेशान कर रखा था। हताश और परेशान किसानों ने गायों और बैलों को घेर रखा था। छुट्टा पशु की बढ़ती समस्या के विरोध में अंतिम समाधान के तौर पर वे उन्हें स्कूल (महामारी के कारण बंद) में ले आए थे।

अखौरा गांव में रहने वाले सुनील शर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया, “मजबूरी है, साहब। हम अपने खेतों की रखवाली के लिए अपने बच्चों और परिवार से दूर चौबीस घंटे खेतों में बिताते हैं।” वह भी, परेशान होकर इन आवारा पशुओं को स्कूल लेकर आने वाले किसानों के झुंड में शामिल थे।

वह कहते हैं, “ठंड के इन दिनों में हम दिन-रात अपने खेतों में खुले में पड़े रहते हैं। फिर भी, ये छुट्टा पशु हमारी फसलों को बर्बाद कर देते हैं। “सुनील ने पांच बीघा (करीब एक हेक्टेयर) जमीन में गेहूं की बुवाई की है। उनकी आधी फसल को आवारा मवेशियों ने खराब कर दिया है अब उनकी 2.5 बीघा फसल बची है। उन्होंने कहा, “मेरे चार बच्चे हैं। मैं उन्हें क्या खिलाऊंगा? खेती ही हमारे अस्तित्व का एकमात्र साधन है।”

राज्य स्तरीय किसान संगठन भारतीय किसान संघ अवध के सदस्य श्यामू शुक्ला ने गांव कनेक्शन को बताया कि किसानों ने राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव में छुट्टा पशु का मुद्दा उठाने का फैसला किया है।

शुक्ला ने कहा, “आवारा पशुओं के संकट को हल करने के लिए सरकार के सभी प्रयास विफल हो गए हैं। ग्रामीण उत्तर प्रदेश छुट्टा पशु से तंग आ चुका है। “उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, “जानवरों के लिए आश्रय स्थापित करने के लिए कर लगाए गए थे, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण सारा पैसा बर्बाद हो गया। इसका किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।”

हालांकि, सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के एक राज्य स्तरीय पदाधिकारी ने आवारा पशुओं को चुनावी मुद्दा बनाए जाने की बात को पूरी तरह से खारिज कर दिया।

भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने गांव कनेक्शन को बताया, “मुझे नहीं लगता कि आवारा मवेशी चुनावी मुद्दा हो सकता है। इस मुद्दे पर पहले कभी किसी सरकार ने काम नहीं किया। भाजपा सरकार ने अभूतपूर्व पैमाने पर गौशालाएं स्थापित की हैं। मुझे नहीं लगता कि ग्रामीण या किसान आवारा पशुओं से परेशान हैं।”

आवारा पशुओं की संख्या में वृद्धि

भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 10 फरवरी से 7 मार्च के बीच चुनाव होने जा रहे हैं। यहां सैकड़ों हजारों किसान जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी फसल को आवारा मवेशी लगातार बर्बाद करते आ रहे हैं। इसने उन्हें फसल में होने वाले नुकसान को और बढ़ा दिया है। दूसरी तरफ चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं ने उन्हें वैसे ही परेशान कर रखा है।

‘दूसरी पशुधन जनगणना-2019 अखिल भारतीय रिपोर्ट’ के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की संख्या बढ़ी है।

जहां पूरे देश में 2012 से 2019 तक देश में आवारा पशुओं की कुल संख्या में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है, वहीं इस दौरान उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी में 17.34 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई है। 2019 के पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 11.8 लाख से ज्यादा आवारा मवेशी थे।

 2019 के पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 11.8 लाख से ज्यादा आवारा मवेशी थे।

मिर्जापुर जिले के समोगरा गांव के 45 साल के किसान राजन सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि आवारा मवेशी लगातार दो सीजन से उनकी फसल को बर्बाद करते आ रहे हैं।

राजन ने शिकायत की, “मेरी फसल में अब जो बचा है उसे सिर्फ जानवरों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।” वह आगे कहते हैं, “एक फसल चक्र में सात से आठ हजार रुपये लगते हैं। और बदले में मुझे कुछ भी नहीं मिलता है। जो कुछ बचा है, मैं उसे मवेशियों के चारे के रूप में बेच दुंगा। मुझे इसके लिए जो कीमत मिलेगी, उससे तो इनपुट लागत भी नहीं निकल पाती।”

विधान परिषद के सदस्य और समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आनंद भदौरिया ने गांव कनेक्शन को बताया, “किसान थक गए हैं। आवारा पशुओं की समस्या से निपटने में भाजपा सरकार की घोर विफलता साफ नजर आती है। गौशाला और संरक्षण केंद्रों की स्थिति बहुत खराब है। ”

उस दिन (4 जनवरी), जब किसानों ने सीतापुर में स्कूल परिसर के अंदर आवारा पशुओं को बंद कर दिया था, वहां से लगभग एक किलोमीटर दूर गोमती नदी पर भकौहरा पुल पर एक किसान संगठन ने एक जनसभा आयोजित की थी। वहां अपनी शिकायतों को लेकर लगभग 500 किसान इकट्ठा हुए थे।

‘भारतीय किसान संघ अवध’ के सदस्य शुक्ला ने चेतावनी देते हुए कहा, “किसानों का यह विरोध केवल सीतापुर तक सीमित नहीं रहेगा। यदि प्रशासन आवारा पशुओं की समस्या से निपटने में विफल रहता है, तो यह मुद्दा आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन जाएगा।”

आवारा पशुओं से निपटने की योजना

आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने कई योजनाएं और परियोजनाएं शुरू की हैं। इनमें गौशालाओं की स्थापना, आवारा गायों को गोद लेना, कर लगाना, कुपोषित परिवारों को आवारा गाय देना, गौ संरक्षण केंद्र और भी बहुत कुछ शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 545 पंजीकृत गौशालाएं हैं।

उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 545 पंजीकृत गौशालाएं हैं।

पशुपालन विभाग के अतिरिक्त निदेशक (गोधन) अरविंद कुमार सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि इन गौ शालाओं केअलावा, इस साल 7 जनवरी तक राज्य में आवारा पशुओं के लिए 5,515 ‘गौ संरक्षण केंद्र’ भी बनाए गए हैं।

गौशाला, गौ संरक्षण केंद्र से अलग हैं। गौशाला काफी बड़े क्षेत्र में बनी एक स्थायी इमारत होती है जबकि गौ संरक्षण केंद्र बंजर जमीन पर बना एक अस्थायी मवेशी शेड है।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 56,853 लोगों ने 103,000 से ज्यादा आवारा गायों को गोद लिया है।

नवंबर 2021 में, राज्य सरकार ने घोषणा की कि वह अगले दो महीनों में लगभग 4 लाख आवारा मवेशियों के पुनर्वास पर विचार कर रही है। पशुपालन विभाग पशुओं को गौ शालाओं में लाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में ब्लॉक स्तर पर वैन या “मवेशी पकड़ने वालों” को तैनात करने पर भी विचार कर रहा है।

मवेशियों से भरी गौशालाएं

गांव कनेक्शन ने स्थिति का जायजा लेने के लिए सीतापुर, शाहजहांपुर और मिर्जापुर के कुछ गौशालाओं का दौरा किया।

13 दिसंबर को गांव कनेक्शन ने शाहजहांपुर के तिलहर इलाके में एक गौशाला का दौरा किया और पाया कि उसके अंदर 175 मवेशी रखे गए थे। तिलहर अनुविभागीय दंडाधिकारी (एसडीएम) ने कहा कि एक और गौशाला बनाने के प्रयासों पर काम चल रहा है।

एसडीएम हिमांशु उपाध्याय ने गांव कनेक्शन को बताया, “तिलहर गोशाला में मवेशियों की संख्या लगभग 175 है जबकि इसकी क्षमता सिर्फ साठ से सत्तर जानवरों की है। फिलहाल यहां काफी संख्या में मवेशी हैं इसलिए हम एक और आश्रय स्थापित करने के लिए क्षेत्रों की पहचान कर रहे हैं। ”

सीतापुर जिले के एक अन्य गौशाला की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। 21 दिसंबर को जब गांव कनेक्शन पिसावां प्रखंड के चंद्रा गांव के चंद्र गौशाला में पहुंचा तो देखा कि वहां भी क्षमता से कहीं ज्यादा मवेशियों को रखा गया था।

चंद्रा के ग्राम प्रधान हरिवंश त्रिवेदी ने गांव कनेक्शन को बताया, “गौशाला के रखरखाव के लिए हम बार-बार पैसों की मांग कर रहे हैं। लेकिन अब तक कुछ भी नहीं मिला है। मैंने जिला प्रशासन से अनुरोध किया है कि वह गौशाला का प्रबंधन अपने हाथ में ले लें। क्योंकि ग्राम पंचायत इसका खर्च उठा पाने की स्थिति में नहीं है।”

गाँव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुओं की स्थिति जानने के लिए कई जिलों से ग्राउंड रिपोर्ट की है।

ग्राम प्रधान ने कहा, “यहां लगभग 160 मवेशियों को रखा गया है, जबकि इसकी क्षमता 100 से अधिक नहीं है।”

सीतापुर के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने गांव कनेक्शन को बताया कि जिले में अब तक 11,634 आवारा पशुओं को बचाया जा चुका है। जिले में 77 गौ शालाएं हैं। प्रभात कुमार सिंह ने कहा, “इन आश्रयों के रखरखाव के लिए चालू वित्तीय वर्ष (2021-22) के लिए 17 करोड़ रुपये 65 तहसीलों (कस्बों) को भेजे गए हैं।”

सीतापुर के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने यह भी कहा कि सरकारी योजना के तहत जिले में जरुरतमंदों को 2,441 गाये दी गई हैं। इससे कुपोषित परिवारों को (दूध के लिए गाय उपलब्ध कराकर) फायदा मिलेगा।

सीतापुर से विधान सभा के सदस्य (एमएलए) राकेश राठौर ने कहा कि वित्तीय अनियमितताओं और इन आश्रयों को भुगतान में देरी के चलते आवारा पशुओं की समस्या को दूर करने के लिए सरकारी योजनाएं विफल रही हैं।

विधायक राठौर बताते हैं, “गौशालाओं का निर्माण तो हो गया है लेकिन पशुओं के लिए मूलभूत सुविधाएं नदारद हैं। इन आश्रयों में जानवर भूख और बीमारी से मर रहे हैं। इन मवेशियों के लिए पर्याप्त चारा या दवा नहीं है। ”

हालांकि, सीतापुर के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी प्रभात कुमार सिंह ने स्पष्ट किया, ” अगर इन गौशालाओं की दी जाने वाली राशि उप-मंडल स्तर और ब्लॉक स्तर पर आगे नहीं दी जा रही है, तो इसके लिए संबंधित अधिकारी जिम्मेदार हैं।”

पशु व्यापार को विनियमित करना

23 मई, 2017 को केंद्र सरकार की अधिसूचना के बाद मवेशी व्यापार के बारे में बहस तेज हो गई है। इस कानून में गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए मवेशियों की बिक्री को अपराध घोषित कर दिया गया था। विवादास्पद कानून के बाद, ‘गोरक्षा’ या गौरक्षकों की घटनाएं बढ़ीं और मवेशियों को ले जाने वाले लोगों पर भीड़ ने हमला करना शुरू कर दिया।

केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के विरोध के बाद,केंद्र सरकार ने 30 नवंबर, 2017 को, छह महीने के अंदर अधिसूचना वापस ले ली थी।

लेकिन राज्य सरकार ने 11जून, 2020 को उत्तर प्रदेश गोवध रोकथाम अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिए एक मसौदा अध्यादेश को मंजूरी दी। इसने पहले से मौजूद कानून को मजबूत किया और आरोपियों को दी जाने वाली सजा को बढ़ा दिया।

पूर्व योजना राज्य मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता फरीद महफूज किदवई के अनुसार, उत्तर प्रदेश में बढ़ती गौ रक्षा की वजह से आवारा पशुओं और उनके कारण किसानों को होने वाले नुकसान के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं।

उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में छुट्टा पशु।

किदवई ने गांव कनेक्शन को बताया, “सरकार उन अपराधियों को पकड़ने में विफल रही है जो कथित रूप से गोमांस ले जा रहे लोगों की पीट-पीट कर हत्या करने के लिए जिम्मेदार थे। इससे भय का माहौल बन गया। कोई भी किसान मवेशी नहीं रखना चाहता था क्योंकि अब उन्हें बेचा नहीं जा सकता था। नतीजतन, काफी बड़ी संख्या में जानवरों को यूं ही खुले में आवारा छोड़ दिया गया।”

नेता ने आगे कहा कि मवेशियों के वध को अपराध घोषित करने वाले कानून वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि गाय भारतीय समाज में एक सम्मानित जानवर हैं। उन्होंने कहा, ‘आवारा पशुओं की समस्या के लिए प्रभावी समाधान की जरूरत है। लेकिन गौशाला बनाने की योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। किसानों को हुए नुकसान को ध्यान में रखते हुए प्रभावी क्रियान्वयन की जरूरत है।’

भारतीय किसान संघ अवध से जुड़े शुक्ला ने भी इसी तरह की चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पशु व्यापार को लेकर केंद्र सरकार की अधिसूचना के बाद, राज्य भर के प्रमुख पशु व्यापारियों और बूचड़खानों ने अपने मवेशियों को खुले में छोड़ना शुरू कर दिया है।

किसान नेता ने कहा, “बूचड़खानों ने कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए और साथ ही फ्रिंज समूहों के दबाव के चलते मवेशियों से छुटकारा पा लिया। सड़कों और खेतों पर आवारा मवेशियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।”

आवारा पशुओं के कल्याण के लिए टैक्स

गायों और आवारा पशुओं के कल्याण के लिए बड़े पैमाने पर राजस्व जुटाने के लिए, राज्य सरकार ने जनवरी, 2019 में अतिरिक्त करों की घोषणा की थी। शराब जैसी आबकारी वस्तुओं पर आधा प्रतिशत कर लगाया जाता है, जबकि मंडी परिषदों पर एक प्रतिशत कर लगाया जाता है।

19 जनवरी, 2019 को लखनऊ में मीडियाकर्मियों को जानकारी देते हुए, राज्य सरकार के प्रवक्ता और बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा था कि सरकार उत्पाद शुल्क पर विशेष शुल्क लगाकर सालाना 165करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व एकत्र करेगी।

मंत्री के हवाले से कहा गया था,” बीयर और IMFL (भारतीय निर्मित विदेशी शराब) की प्रति बोतल 0.50 रुपये से 2 रुपये का अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। राज्य में आवारा पशुओं के लिए बनाए गए गौशालाओं को धन उपलब्ध कराने के लिए, बार में खपत की जाने वाली प्रत्येक बोतल पर विशेष 10 रुपये का शुल्क लगाया जाएगा।”

समाजवादी पार्टी के सदस्य किदवई ने कहा, “इन करों से जुटाई गई राशि उन तक नहीं पहुंची है, जिनके लिए इसे इकट्ठा किया गया था। इस राशि का एक प्रतिशत भी पशु कल्याण में नहीं गया है। कोई नहीं जानता कि ये पैसा कहां गया। अगर यह पैसा ईमानदारी से खर्च किया जाता, तो उत्तर प्रदेश आज इस संकट का सामना नहीं कर रहा होता।

हालांकि, पशुपालन विभाग में अतिरिक्त निदेशक (गोधन) अरविंद कुमार सिंह ने इन आरोपों से इनकार किया है।

सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, “सभी 5,515 गौ संरक्षण केंद्र कुशलतापूर्वक चलाए जा रहे हैं। इन केंद्रों में अब तक कुल 809,927 आवारा मवेशियों (गाय और बैल दोनों) को बचाया गया है। इन केंद्रों में इन जानवरों के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए हरा और सूखा दोनों तरह का चारा दिया जाता है। सब ठीक है और अच्छा है। ”

उन्होंने कहा कि उनके विभाग के पास राज्य में गाय कल्याण के लिए अतिरिक्त कर द्वारा जुटाए गए राजस्व का रिकॉर्ड नहीं है। न ही उन्होंने आवारा पशुओं के संरक्षण पर खर्च की गई राशि का खुलासा किया।

गौ कल्याण योजना

6 अगस्त, 2019 को, राज्य सरकार ने ‘मुख्यमंत्री निराश्रित बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना’ शुरू की। यह एक कल्याणकारी योजना है जो लोगों को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, गाय पालने के लिए आमंत्रित करती है और ऐसा करने पर उन्हें प्रति दिन 30 रुपये (900 रुपये प्रति माह) का भुगतान किया जाता है।

राज्य सरकार की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार गाय संरक्षण कार्यक्रम के तहत अब तक 103,785 लोगों ने गायों को गोद लिया है।

कन्नौज जिले के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने गांव कनेक्शन को बताया कि यह कल्याण योजना सफलतापूर्वक लागू की जा रही है।

वह आगे कहते हैं, “जिले में 38 गौवंश आश्रय (गौशाला और संरक्षण केंद्र) हैं। इनमें से चार पंजीकृत गौशालाएं हैं और 352 मवेशी का घर है।एक बेरोजगार व्यक्ति छह जानवरों को अपने साथ रख सकता है और हर महीने नौ सौ रुपये प्रति पशु प्राप्त कर सकता है। इन पशु आश्रयों में अब तक कुल 5,086 जानवरों को आश्रय दिया गया है।

पूरे देश में 2012 से 2019 तक देश में आवारा पशुओं की कुल संख्या में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है।

2 जनवरी की रात को अपने खेत में बैठे हुए, उन्नाव के दुर्जन खेड़ा गांव के 65 वर्षीय किसान शिव राम ने गुस्से में गांव कनेक्शन से पूछा, “अरे कौन सी योजना भाई …”

शिव राम ने कहा, “आवारा मवेशियों से कोई भी अनाज सुरक्षित नहीं है। हम अपने खेतों की देखभाल के लिए पूरी रात ठंड में बिताते हैं।वेकहते हैं कि देश विकास कर रहा है, मैं आपको बता रहा हूं कि यहां गाय-बैल ही आगे बढ़ रहे हैं। ”

मिर्जापुर जिले के किसानों ने एक और समस्या बताई। मिर्जापुर के लालगंज कस्बे के इस्लामपुर गांव के 55 साल के किसान शिव यादव ने गांव कनेक्शन से शिकायत करते हुए कहा, “प्रशासन को यह यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि मवेशी इन आश्रयों को छोड़कर खुले में न घूमें। अक्सर देखा जाता है कि लोग गोद ली गई गायों को बाद में छोड़ देते हैं। वो खेतों में लौट आती हैं और फसल खराब करती हैं। “

‘गाय छोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई’

शाहजहांपुर में, राष्ट्रीय गौरक्षक दल के जिला प्रमुख दीपक गुप्ता ने अपने मवेशियों को छोड़ने वाले पशुपालकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। ये गौ-संरक्षण के लिए स्वयंसेवा करने वाला एक संगठन है।

दीपक गुप्ता ने कहा,”लोग गाय और बैल को बोझ समझने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि इस देश में कृषि और मवेशी एक साथ नहीं रहे हैं। लेकिन लोगों में अब भावनाएंही नहीं बची हैं। ”

वह आगे कहते हैं, “पशुओं को छोड़ने वालों की पहचान करने के लिए उन्हें टैग किया जाना चाहिए। हम ऐसे पालकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते हैं।”

हालांकि, पशु व्यापारियों का दृष्टिकोण अलग है। उन्नाव के एक पशु व्यापारी बंटे कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, “मवेशी व्यापार पर सरकार की कार्रवाई मूल समस्या है। आपको क्या लगता है कि यह मुद्दा पहले इतना गंभीर क्यों नहीं था? हम उत्तर प्रदेश से मवेशी खरीदने के बारे में सोच भी नहीं सकते। हम इन्हें बिहार जैसे राज्यों से खरीदते हैं। ”

पशु व्यापारी ने कहा, “यह सिर्फ हमारे नुकसान के बारे में नहीं है, किसान भी तंग आ चुके हैं।”

यह खबर प्रत्यक्ष श्रीवास्तव ने लिखी है। मोहित शुक्ला (सीतापुर), रामजी मिश्रा (शाहजहांपुर), बृजेंद्र दुबे (मिर्जापुर), सुमित यादव (उन्नाव), वीरेंद्र सिंह (बाराबंकी), अरविंद सिंह परमार (ललितपुर), और अजय मिश्रा (कन्नौज) से इनपुट के साथ।

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