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‘सुरँग में फंसे बेटे की हिफाजत की दुआ काम आई 17 दिन बाद वो बाहर आ गया’

दिवाली के बाद ही सही, उत्तराखंड के सिलक्यारा में बन रही सुरँग में फंसे सभी 41 मज़दूरों को 17वें दिन सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। सिर्फ अंदर फंसे मज़दूरों के लिए ही नहीं हर किसी के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं है।
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उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरँग से करीब 1200 किलोमीटर दूर मिर्जापुर के घरवासपुर गाँव में बेसुध पड़ी निधि सिंह के आंसू थम नहीं रहे हैं, उनके पति के सही सलामत बाहर आने की ख़बर दिए जाने के बाद भी उन्हें यकीन नहीं हो रहा है।

निधि सिंह के पति अखिलेश सिंह उत्तरकाशी के सिलक्यारा गाँव की सुरँग में दो हफ़्ते से भी ज़्यादा समय से फंसे थे। उनके साथ सुरँग में फंसे बाकी 40 मज़दूरों को भी बाहर निकाल लिया गया है।

“भगवान ने मेरी सुन ली, अब बस और कुछ नहीं चाहिए ऊपर वाले से, भाई मिल गया काफी है। ” अखिलेश के चचेरे भाई कृष्ण कुमार ने आसमान की तरफ देखते हुए गाँव कनेक्शन से कहा।

27 साल के अखिलेश सिंह की पत्नी निधि गर्भवती हैं और हाल-फिलहाल में अपने पहले बच्चे को जन्म देने वाली हैं। सुरँग हादसे के दस दिन बाद तक उन्हें पति के वहाँ फंसे होने की जानकारी नहीं दी गई थी, लेकिन जब मज़दूरों को सुरँग से बाहर निकाले जाने में देरी होने लगी तो निधि को बता दिया गया; लेकिन अखिलेश के सुरँग में फंसे होने की ख़बर लगते ही वो बेसुध हो गईं।

कृष्ण कुमार के मुताबिक़ अखिलेश सितंबर महीने में अपने गाँव आए थे, उसके बाद से उत्तराखंड में ही हैं।

सुरँग में फंसे सभी मज़दूरों को दो हफ्ते से भी अधिक समय से बाहर निकालने का काम चल रहा था। बचाव कर्मियों ने ड्रिलिंग मशीन के ज़रिए मज़दूरों तक पहुँचने का प्रयास किया था, लेकिन कई बार निराशा होना पड़ा।

अखिलेश सिंह हैदराबाद के नवयुग इँजीनियरिंग कँपनी लिमिटेड में सुपरवाइजर के रूप में काम कर रहे हैं। इसी कंपनी ने सुरँग के निर्माण के लिए मज़दूरों को काम पर रखा था। परिवार के सदस्यों के अनुसार उन्हें हर महीने 20,000 रुपये वेतन मिलता है।

अखिलेश के पिता रमेश सिंह ने कहा, ”हमें इँटरनेट से ख़बर मिली थी कि सुरँग में फँसे मजदूरों में अखिलेश भी शामिल हैं; खैर, बेटे की हिफाजत की दुआ काम आई वो बाहर आ गया,यही बहुत है। ”

बचाव कर्मियों के मुताबिक़ 12 नवंबर से उत्तराखंड की इस सुरँग में फँसे सभी 41 मज़दूरों तक पहुँचना आसान नहीं था।

मलबे और चट्टान को हटाने के लिए काफी मशक्क्त करनी पड़ी। ध्वस्त सुरँग के मलबे के जरिए 90 सेमी व्यास वाले पाइप को डाला गया फिर उससे एक-एक करके सभी मज़दूरों को निकाला गया, इसके लिए वर्टिकल ड्रिलिंग भी की गई।

पिछले शुक्रवार को, अधिकारियों ने कहा था कि सुरँग में फँसे कर्मचारी कुछ ही घंटों में बाहर आ जाएंगे, लेकिन संभव नहीं हो पाया। दो सप्ताह से भी अधिक समय तक अंदर फँसे मज़दूरों को एक अलग पाइप के जरिए ऑक्सीजन, खाना और पानी दिया जाता रहा।

हाल ही में गाँव कनेक्शन ने सुरँग में फँसे मज़दूरों की दशा के बारे में भारतीय सेना से रिटायर्ड और भारतीय रेलवे के मुख्य चिकित्सा निदेशक के रूप में कार्य कर चुके गुरुग्राम स्थित डाक्टर सतीश गादी से बात की थी। उन्होंने कहा इन मजदूरों के बचाव के बाद, इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि उन्हें जल्द से जल्द उनके परिवारों से मिलाया जाए।

गादी ने कहा, “एक बार जब इन मजदूरों की पूरी तरह से चिकित्सा जाँच हो जाएगी और उन्हें फिट पाया जाएगा, तो उन्हें अपने घरवालों से मिलने की सख्त जरूरत होगी।”

उन्होंने कहा, “कोई भी थैरेपी या परामर्श उन्हें उतना शाँत नहीं कर सकता जितना कि वह अपने परिवार वालों के बीच रह कर कर पाएंगे। साथ ही, उनके परिवार वालों पर भी उनकी अनिश्चित स्थिति के कारण बड़ा आघात हुआ होगा।”

सुरँग में कैसे फंसे मज़दूर

सभी 41 मज़दूर उत्तराखंड में सिल्कयारा सुरँग बनाने के लिए काम कर रहे थे। 12 नवंबर को भूस्खलन के कारण सुरँग का एक हिस्सा धंस गया और मज़दूर फंस गए।

सुरँग की पूरी लंबाई 4,500 मीटर (14,764 फीट) से थोड़ी अधिक है और मज़दूर इसके मुहाने से 200 मीटर दूर मलबे की एक मोटी दीवार के पीछे फंस गए थे।

ढही हुई सुरँग चार धाम तीर्थ यात्रा मार्ग पर स्थित है जो राज्य के चार जिलों तक फैली हुई है और एक महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा है; जिसका मकसद उत्तर भारत में चार महत्वपूर्ण हिंदू स्थलों को 890 किलोमीटर (550 मील) दो-लेन सड़क के माध्यम से जोड़ना है।

हालाँकि, कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरणविदों और स्थानीय निवासियों ने क्षेत्र में भूमि धंसने के लिए चार धाम परियोजना सहित तेजी से हो रहे निर्माण को ज़िम्मेदार ठहराया है।

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