कादोडीह (पश्चिम सिंहभूम), झारखंड। “मैं चुआ (जमीन के गड्ढे ) के पानी से खाना बनाती हूँ और छात्र इसे पीते हैं। हमारे पास कोई रास्ता नहीं है,” कादोडीह के सरकारी प्राथमिक स्कूल की रसोइया शांति कंदिर दुःखी मन से ये बात गाँव कनेक्शन को बताती हैं।
जमीन पर दो से तीन फीट गहरा गड्ढा खोदना और उससे पानी निकालकर पीना इस गाँव की अब मज़बूरी है।
राज्य की राजधानी रांची से लगभग 150 किमी दूर स्थित वनग्राम, आधिकारिक उदासीनता और घोर उपेक्षा की कहानी कहता है क्योंकि यहाँ तक पहुँचने के लिए न तो सड़क है और न ही साफ पीने के पानी का ज़रिया, यहाँ के लोग पानी के लिए नालों पर आश्रित हैं।
कादोडीह साल 1990 में बिहार से अलग होने के बाद अस्तित्व में आया था। झारखंड में पश्चिमी सिंहभूम जिले के घने सारंडा जंगल से घिरे इस गाँव में आज 35 आदिवासी परिवार रहते हैं।
गाँव का सरकारी प्राथमिक विद्यालय बदहाल है। छात्र-छात्राएँ चुआ से पानी पीने को मज़बूर हैं, जो दो से तीन फीट गहरे खोदे हुए पानी से बने गड्ढे हैं। नव प्राथमिक विद्यालय साल 2010 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत खोला गया था जिसमें कादोडीह के 21 बच्चे पढ़ते हैं।
जर्जर हालत में है स्कूल
इस स्कूल में निर्मला लोंगा अकेली शिक्षिका हैं जो टीन की दीवारों और छत वाली क्लास में पढ़ाती हैं। कोई ब्लैकबोर्ड नहीं हैं और छात्र जूट की बोरियों पर बैठते हैं जो वे घर से लाते हैं। एक टीन के कमरे में ही रसोई है, जहाँ बच्चों के लिए मिड डे मील बनाया जाता है। जबकि कुछ ही दूर पर एक टीन की झोपड़ी में शौचालय है।
“मैं कक्षा एक से चार तक पढ़ाती हूँ, क्योंकि कक्षा पाँच में कोई छात्र नहीं है। स्कूल में ज़रूरी सामान को सुरक्षित रखने के लिए कोई जगह नहीं है और अगर चीजें नहीं सुधरीं तो इस स्कूल चलाना मुश्किल हो जाएगा। ” लोंगा ने गाँव कनेक्शन को बताया।
उनके मुताबिक राज्य सरकार की ओर से छात्रों को मुफ्त यूनिफॉर्म और किताबें मिलती हैं, लेकिन स्कूल में बुनियादी सुविधाएँ इतनी खराब हैं कि कोई अपने बच्चों को वहाँ नहीं भेजना चाहता। पानी की भारी किल्लत तो है ही।
छात्र, शिक्षक और मिड डे मिड तैयार करने वाले रसोइया प्रदूषित चुआ के पानी का इस्तेमाल करते हैं।
“चुआ स्कूल की इमारत से करीब 200 मीटर की दूरी पर हैं। स्कूली छात्रों के साथ-साथ यहाँ के लोगों के लिए भी यह पानी का एकमात्र स्रोत है। इसमें पानी हुर्हुरकोचा नाला से आता है। कादोडीह के अस्तित्व में आने के बाद से ही गाँव के लोग अपने जानवरों के साथ इस पानी का इस्तेमाल पीने और नहाने के लिए करते हैं। ” स्कूल की रसोइया शांति कंदिर ने गाँव कनेक्शन को बताया।
निर्मला लोंगा ने कहा कि उन्होंने शिक्षा विभाग से डीप बोरिंग सुविधा (भूजल निकालने के लिए बोरवेल) के लिए कहा है, लेकिन सड़क संपर्क की समस्या के कारण बोरिंग गाड़ी वाले कादोडीह में इसे लगाने को तैयार नहीं हैं।
“शिक्षा विभाग का कहना है कि हमें बच्चों की संख्या बढ़ानी चाहिए, लेकिन बुनियादी सुविधाओं के बिना यह होने वाला नहीं है। ” लोंगा ने कहा।
ग्राम प्रधान किसुन राय चंपिया गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “ग्रामीणों ने सड़क और पानी की सुविधा के लिए नोआमुंडी प्रखंड कार्यालय से गुहार लगाई है, लेकिन वन विभाग के नियमों के कारण ये सुविधाएं अभी तक नहीं मिली। “
गाँव के लिए सड़क नहीं है
गाँव तक पहुँच बड़ी समस्या है। “हम ग्रामीणों ने तीन साल पहले करमपाड़ा से कादोडीह तक का रास्ता खुद बनाया था। हम हर साल अपने दम पर इसकी मरम्मत करते हैं क्योंकि कादोडीह को दूसरे गाँवों से जोड़ने का यही रास्ता है। ” ग्राम प्रधान चांपिया ने कहा।
“और,जहाँ तक पानी की बात है, बोरवेल या हैंडपंप के अभाव में, हुर्हुरकोचा नाला हमारे लिए पानी का एकमात्र स्रोत है। ” उन्होंने कहा।
“भारत सरकार और रेलवे पश्चिमी सिंहभूम में इस जंगल से खनन और परिवहन के ज़रिए भारी राजस्व लेते हैं, लेकिन यहाँ के छात्र एक स्कूल भवन और पानी जैसी सुविधाओं से भी वंचित हैं। ” सामाजिक कार्यकर्ता और मनोहरपुर अनुमंडल वन अधिकार कल्याण समिति के पूर्व सदस्य सोनू सिरका ने गाँव कनेक्शन को बताया।
नोआमुंडी ब्लॉक शिक्षा विस्तार अधिकारी, इंद्र कुमार ने स्वीकार किया कि कादोडीह तक पहुँचने के लिए उचित सड़कों की कमी एक कारण है कि स्कूल में बोरवेल नहीं खोदा जा सका। “निर्माण सामान वहाँ नहीं पहुँच सकता था लेकिन विभाग ने 2021 में स्कूल के लिए एक मैनुअल फिल्टर उपलब्ध कराया है। रसोइया और शिक्षकों को निर्देशित किया गया था कि वे चुआ के पानी को छानकर ही इस्तेमाल करें। ” उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।
“हमने सड़क बनाने के लिए जिला मुख्यालय को सूचना दी है, सड़क बनने के बाद शिक्षा विभाग अच्छी तरह से स्कूल बनाने के साथ-साथ छात्रों के लिए एक बोरवेल सुनिश्चित करेगा। ” खंड शिक्षा अधिकारी ने कहा।
इंद्र कुमार ने कहा, “कम से कम 30 छात्रों तक शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्कूल की स्थापना की गई थी और शिक्षा विभाग अधिक से अधिक बच्चों को स्कूल में शामिल होने के लिए प्रेरित करने की कोशिश कर रहा है।
जब करमपाड़ा में रेल की पटरियाँ बिछाई जा रही थीं, तब कादोडीह के ज़्यादातर गाँव के लोग दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करने के लिए वहाँ आए थे, और वहीं रुके रहे। 2014 में ही पश्चिमी सिंहभूम जिला प्रशासन ने उन्हें मतदाता के रूप में सूचीबद्ध किया था।
सामाजिक कार्यकर्ता सोनू सिरका के अनुसार कादोडीह का स्कूल सारंडा वन प्रमंडल रेंज के तहत आता है। इसलिए, ग्रामीण किसी भी विकास परियोजना जैसे स्कूल भवन और हैंडपंप के लिए सरकार और वन विभाग पर निर्भर हैं। सिरका ने कहा कि सरकार ने 2010-12 में ग्रामीणों को पट्टा (वन अधिकार अधिनियम के तहत वन भूखंड पर सशर्त कानूनी अधिकार) दिया था।
वन रेंज अधिकारी, शंकर भगत ने गाँव कनेक्शन को बताया, “ग्रामीणों को किसी भी तरह के विकास या निर्माण परियोजना के लिए वन विभाग से अनुमति लेनी होती है, लेकिन सामुदायिक पट्टा के बिना कोई निर्माण नहीं होने दिया जाएगा।”
“गाँव के लोगों के पास सामुदायिक पट्टा होने पर कादोडीह तक एक पहुँच मार्ग बनाने की इजाज़त दी जा सकती है। सामुदायिक पट्टा के अभाव में सड़क बनाने के लिए उन्हें राज्य सरकार के उच्चाधिकारियों से संपर्क करना चाहिए। इस संबंध में केवल राज्य सरकार ही ग्रामीणों की मदद कर सकती है। ” रेंज अधिकारी ने निष्कर्ष निकाला।