मालदा, पश्चिम बंगाल। बैद्यनाथ मंडल ने आखिरकार गंगा नदी के तट पर एक ऐसी जगह ढूंढ ही ली, जहां से नदी के बीच में खड़े अपने डूबते घर को वह देख पा रहे है। पश्चिम बंगाल के मालदा के दुबले-पतले 70 वर्षीय बुजुर्ग ने बताया कि वह सरकारतला से आए हैं। यहां कभी उनका गांव हुआ करता था। इस साल 12 सितंबर को नदी का किनारा ढह गया और पानी उनके घर में भर गया और सब बह गया। तब से हर दिन वह यहां आते हैं।
बैद्यनाथ अब अपनी बेटी के साथ पांच किलोमीटर दूर वैष्णबनगर गांव में रह रहे हैं।
मालदा जिले में बैद्यनाथ जैसे एक हजार से ज्यादा परिवार हैं जिन्होंने नदी के बहाव में अपना घर और सारा समान खो दिया है। नदी के किनारे दुर्गा रामतला के रहने वाले हरि घोष ने गांव कनेक्शन को बताया, “हमारे पास अपना सामान सुरक्षित जगह ले जाने तक का भी समय नहीं था।”
52 साल के हरि ने कहा,”हमने ऐसी तबाही पहले कभी नहीं देखी। कटाव और बाढ़ सुबह लगभग छह बजे (12 सितंबर) शुरू हुई और शाम तक 350 से ज्यादा परिवारों को अपना गांव छोड़कर दूसरी जगह शरण लेनी पड़ी थी।” फिलहाल वह एक स्थानीय स्कूल में रह रहे हैं। उनके अनुसार, भूमि के कटाव के कारण उनकी तीन बीघा जमीन नदी में समा गई।
हरि आगे कहते हैं, “सितंबर से अब तक कालियाचक 3 ब्लॉक के बीरनगर 1 ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले सरकारतला, मुकुंदतला, घोषतला, चिनाबाजार, भीमाग्राम और लालूताला गांवों का बड़ा हिस्सा नदी में बह गया है।”
गंगा नदी ने कुछ ही समय में स्कूल, मंदिर, मस्जिद और घरों सहित 350 इमारतों को अपने अंदर समा लिया। स्थानीय लोगों को डर है कि उनके गांवों में अब कुछ नहीं बचेगा।
मुकुंदताला के सुमंत मंडल ने आशंका जताते हुए कहा, “ऐसा लगता है कि अगले कुछ महीनों में पूरा बीरनगर गायब हो जाएगा।” 34 साल के मुकुंद ने अपने परिवार के साथ स्थानीय स्कूल के मैदान में अस्थायी तौर पर शरण ली हुई है। यहां उनके साथ 120 और परिवार भी रह रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम खुले आसमान के नीचे सोते हैं।” 2011 की जनगणना के अनुसार, बीरनगर ग्रामपंचायत 1 और 2 में 54,830 लोग रहते हैं।
संकटों की बौछार
बीरनगर 1 ग्राम पंचायत के कई बाढ़ पीड़ित, फरक्का बैराज परियोजना को अपनी मुसीबत के लिए जिम्मेदार मानते हैं।
फरक्का बैराज राज्य की राजधानी कोलकाता से लगभग 300 किमी उत्तर में, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में स्थित है। यह देश में अपनी तरह के सबसे बड़े बैराजों में से एक है जिसमें 40,000 क्यूसेक के प्रवाह के लिए एक फीडर नहर है और जिसकी नदीतल की चौड़ाई स्वेज नहर की तुलना में अधिक है।
फरक्का बैराज परियोजना परिसर का मुख्य उद्देश्य 38.38 किलोमीटर लंबी एक फीडर नहर के जरिए गंगा के पानी की पर्याप्त मात्रा को भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली की तरफ मोड़ना है ताकि भागीरथी हुगली-नदी प्रणाली की व्यवस्था और नौवहन में सुधार लाकर कोलकाता बंगरगाह का संरक्षण और रखरखाव किया जा सके। ऊपरी इलाकों से आने वाला गंगा का पानी जब फरक्का में भरपूर मात्रा में भागीरथी में गिरता है तो इससे लवणता कम होती है और कोलकाता और आसपास के क्षेत्रों में मीठे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
बीरनगर पंचायत के चिनबाजार के निवासियों के अनुसार, बाढ़ ने मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों के दस लाख से ज्यादा लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है। वे अपनी बदहाली के लिए फरक्का बैराज को जिम्मेदार ठहराते हैं।
एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता भास्कर मंडल ने गांव कनेक्शन को बताया, “हमने सुना था कि उत्तर बंगाल और सिक्किम में भारी बारिश के बाद बैराज के बंद दरवाजों को खोल दिया गया था। लेकिन जब स्थानीय ग्रामीणों ने आंदोलन किया, तो उन्हें इन फाटकों को बंद करना पड़ा था। और फिर जल स्तर कम हो गया था। “
इस साल अक्टूबर में चिनबाजार और लालूताला के निवासियों ने बाढ़ में अपने घर और जमीन खो दी है। 80 से अधिक घर और 100 साल से भी ज्यादा पुरानी चिनबाजार की स्थानीय जामा मस्जिद इस पानी में बह गए। बेघर लोग एक मदरसे और पास के तीन सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित हो गए और कुछ परिवार खुले आसमान के तले बाहर रह रहे हैं। जिनके पास आश्रय के नाम पर एक तिरपाल के अलावा और कुछ नहीं है।
स्कूल ऑफ ओशनोग्राफिक स्टडीज, जादवपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और पूर्व निदेशक, कोलकाता की सुगाता हाजरा ने गांव कनेक्शन से कहा, “प्रभावित गांव, फरक्का बैराज के प्रवाह की विपरीत दिशा में छह से सात किलोमीटर के दायरे में आते हैं, और नदी के किनारे का कटाव, रुके हुए पानी में दबाव पड़ने के कारण हुआ है।”
उन्होंने बताया, “1970 के दशक में बैराज के निर्माण के बाद से इस तरह के कटाव की घटनाएं बढ़ी हैं। इसके अलावा, हाल के दिनों में बैराज की जल भंडारण क्षमता भी कम हुई है।”
संकट की स्थिति और उसका राजनीतिकरण
मौजूदा स्थिति में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और राज्य में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच राजनीतिक रस्साकशी शुरू हो गई है।
राज्य की सिंचाई और जलमार्ग राज्य मंत्री सबीना यास्मीन ने आरोप लगाया कि बैराज का 12.5 किमी अपस्ट्रीम और 6.9 किमी डाउनस्ट्रीम इलाका केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। राज्य सरकार ने केंद्र को समस्या के बारे में जानकारी दे दी है।
यास्मीन ने गांव कनेक्शन से कहा, “हम कई कार्यक्रमों में, केंद्र सरकार के साथ कटाव के मुद्दे पर चर्चा की है। बैराज प्राधिकरण ने हमें राहत के लिए उचित कार्यवाही किए जाने का आश्वासन दिया था। लेकिन काम का स्तर काफी खराब है। इसकी वजह से हमारे तटबंध पुनर्निर्माण कार्य भी प्रभावित हुए हैं। ”
विधान सभा के पूर्व सदस्य और भाजपा नेता स्वाधीन सरकार ने गांव कनेक्शन को बताया, ” कटाव और ज्यादा न हो इसके लिए बैराज अधिकारियों द्वारा मुहाने पर 2016 से रेत की बोरियां रखी जा रही थीं। उन्होंने 2018 में नौ करोड़ इक्कीस लाख रुपये की लागत से नष्ट हुए नदी तट का पुनर्निर्माण भी किया। उन्होंने हमें आश्वासन दिया था कि अब और कटाव नहीं होगा और हम सुरक्षित रहेंगे। लेकिन उनका काम नदी के किनारे को नहीं बचा सका।”
गंगा नदी के तट के कटाव से सरकार को भी खासा नुकसान झेलना पड़ा है। वह कहते हैं कि यह विश्वास करना बड़ा अजीब लगता है कि बैराज के बंद दरवाजों को खोलने के बाद पानी विपरीत दिशा में बहने लगा। लेकिन सितंबर के मध्य में तीन दिनों के लिए ऐसा हुआ जब सबसे ज्यादा कटाव हुआ था।
सरकार बताते हैं, ” 2016 में कटाव शुरू हुआ था और और इस साल अकेले यह कम से कम तेरह बार, दो किलोमीटर बीरनगर 1 ग्राम पंचायत तक को पानी में डुबो गया।” उन्होंने शिकायत की कि हाल ही में कटाव पीड़ितों में से किसी को भी उचित पुनर्वास सहायता नहीं मिली है और इस मामले का राजनीतिकरण करने के बजाय, टीएमसी को संकटग्रस्त ग्रामीणों की मदद करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
दूसरे घर की तलाश में
कालियाचक 3 के ब्लॉक विकास अधिकारी मामून अख्तर ने गांव कनेक्शन को बताया, ” हमें स्थिति से वाकिफ है और कटाव पीड़ितों के लिए वैकल्पिक आवास की तलाश कर रहे हैं।”
लेकिन एक स्थानीय निवासी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि स्थानीय प्रशासन ने नदी के किनारे से 600 मीटर दूर भूमि की पहचान कर, 127 परिवारों के बीच वितरित करने की योजना बनाई थी। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा हैं क्योंकि उस क्षेत्र को फरक्का बैराज प्राधिकरण ने रेड जोन के रूप में चिह्नित किया है, जिसका अर्थ है कि यह क्षेत्र कभी भी गंगा में डूब सकता है।
मुकुंदतला गांव की 65 साल की धरणी घोष, चामग्राम के एक स्कूल के मैदान में खुले में रहती हैं। यह स्कूल अब बस लकड़ियों, पत्थरों और टूटी दीवारों का ढेर है। उसने गांव कनेक्शन को बताया, “मेरे चावल की भूसी, घर और दस बीघा धान का खेत, मेरी आंखों के सामने चंद मिनटों में बह गया। जब हम भागे तो बस अपनी गाय को ही साथ ला पाए। इसके अलावा हम कुछ नहीं कर सकते थे। “
दुर्गारामतला की गायत्री घोष ने भी बीरनगर के एक स्कूल में शरण ली हुई है। 34 साल की गायत्री अपने पति और चार बच्चों के साथ सितंबर से वहां रह रही है। वह कहती हैं, “हमें एकमुश्त राहत के रूप में दस किलोग्राम चावल, दो किलोग्राम चिरा (चपटा चावल), दो स्टील प्लेट और कटोरे दिए गए। हमें नहीं पता कि आगे हम क्या करेंगे या फिर हमें किससे मदद लेनी चाहिए।”
उन्होंने बताया, “हम उधार लेकर किसी तरह से अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। लेकिन साहूकार को अब हमें और उधार देने में दिलचस्पी नहीं हैं क्योंकि हमारे पास गिरवी रखने के लिए कोई जमीन नहीं है।” गायत्री के पति, एक प्रवासी मजदूर हैं। आपदा के तुरंत बाद सितंबर में केरल से लौटे थे और तब से वापस नहीं गए हैं।
हालांकि, बैशबनगर निर्वाचन क्षेत्र की स्थानीय विधायक चंदना सरकार ने दावा किया कि उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री से स्थिति के बारे में बात की थी। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “सभी प्रभावित परिवारों को आवश्यक राहत सामग्री मुहैया कराई जा रही है और हम जल्द ही उनका पुनर्वास करने की कोशिश कर रहे हैं।”
शेल्टर होम में तब्दील हुए स्कूल, कक्षाएं फिर से शुरू नहीं कर सकते
16 नवंबर को जब कक्षा 9 से 11 तक के छात्रों के लिए सरकारी स्कूलों का खुलना शुरु हुआ तो इस क्षेत्र में काफी दिक्कतें सामने आईं। बीरनगर में चामग्राम हाई स्कूल छात्रों के लिए चाह कर भी स्कूल नहीं खोल पाया क्योंकि लगभग 500 बेघर लोग अभी भी यहां रह रहे हैं।
चामग्राम हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक शक्तिपद सरकार ने गांव कनेक्शन को बताया, “स्कूल में सोलह कमरे हैं, जहां सितंबर से 120 से ज्यादा परिवार रह रहे हैं। प्रधानाध्यापक के कमरे को छोड़कर सभी कक्षाओं और गलियारों पर उन्होंने कब्जा कर लिया है। ”
वह आगे कहते हैं, “हमें स्कूल खोलने के लिए कहा गया है। इस स्थिति में कैसे काम करना है, इस पर हमारे पास कोई विशेष निर्देश नहीं है। हम पहले ही इस मामले को प्रखंड प्रशासन के समक्ष उठा चुके हैं और उनके हस्तक्षेप का इंतजार कर रहे हैं।”
रेणुका रॉय भी चामग्राम हाई स्कूल में कुछ अन्य परिवारों के साथ एक कमरे में रह रही हैं। उन्होंने बताया कि जब बेघर परिवारों ने स्कूल छोड़ने से इनकार कर दिया तो स्कूल प्राधिकरण ने बिजली कनेक्शन काट दिया था। 70 साल की रेणुका शिकायत करते हुए कहती हैं, “हमने नदी में सब कुछ खो दिया, अब हम कहां जाएं? हमारे पास न तो गायों को चराने के लिए जमीन है और न ही शौच के लिए जगह।”
इस मामले के जवाब में, बीरनगर 1 के स्थानीय पंचायत प्रधान के पति निशिकांत रॉय कहते हैं, “स्कूल प्राधिकरण को तीन महीने का लगभग सत्तर हजार रुपये का बिजली बिल मिला है। लाइन काटने के अलावा कोई चारा नहीं था। अब इन परिवारों ने अपने दम पर फिर से बिजली कनेक्शन ले लिया है।
पिछले तीन महीनों में बेघर परिवारों के लिए राहत की व्यवस्था करने वाले चामग्राम के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि निवासी सुरक्षित स्थान पर जाना तो चाहते हैं लेकिन इस इलाके में जमीन की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। भास्कर मंडल आगे कहते हैं, “एक तरफ, उनके पास जाने के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। दूसरी ओर, 600 से ज्यादा स्कूली छात्र अपनी कक्षाओं में जाने के अधिकार से वंचित हो रहे हैं।”
पर्यावरण शरणार्थियों के लिए कोई नीति नहीं
गंगा नदी तट कटाव पीड़ितों के पुनर्वास के लिए अभी तक, केंद्र और राज्य स्तर की कोई नीति नहीं बनी है। 8 दिसंबर को मालदा जिले की प्रशासनिक समीक्षा बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक जनसभा में कहा कि केंद्र सरकार को नमामि गंगा परियोजना के तहत गंगा नदी तट कटाव पीड़ितों का पुनर्वास करना चाहिए।
सुगाता हाजरा कहती हैं, “उपयुक्त तकनीक और पुनर्वास योजना के साथ नदी तट सुरक्षा उपायों के तत्काल कार्यान्वयन या इन समुदायों के लिए पुनर्वास नीति इस मुद्दे को हल कर सकती है। लेकिन राज्य में पर्यावरणीय रूप से विस्थापित लोगों के लिए कोई पुनर्वास नीति नहीं है।”
उन्होंने विस्तार से बताया कि पश्चिम बंगाल समुद्र के स्तर में वृद्धि और नदी तट के कटाव से सबसे ज्यादा प्रभावित है। समुद्र के स्तर में वृद्धि या नदी तट कटाव पीड़ितों के लिए राज्य का एक विशिष्ट पुनर्वास योजना होनी चाहिए।
“राज्य ने पहले, सुंदरबन और मालदा-मुर्शिदाबाद में कुछ विस्थापित लोगों का पुनर्वास किया है, लेकिन उन्हें कोई पुनर्वास पैकेज नहीं मिला क्योंकि राज्य स्तर की कोई नीति नहीं है। चूंकि फरक्का बैराज एक विकासात्मक परियोजना है, इसलिए पीड़ितों को परियोजना प्रभावित विस्थापित समुदायों के तहत पुनर्वास पैकेज भी मिलना चाहिए।
उनके अनुसार, राज्य सरकार के पास पीड़ितों के लिए एक पुनर्वास योजना होनी ही चाहिए। सुगाता हाजरा ने कहा, ” इतने बड़े पैमाने पर हुए विस्थापन से निपटने के लिए सरकार को अपने फंड से उचित हिस्से की मांग के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ बातचीत करनी चाहिए या विश्व बैंक की सहायता लेनी चाहिए।”
फरक्का बैराज के अधिकारियों को इस मुद्दे पर उनके विचार जानने के लिए उन्हें ईमेल भेजे गए थे जिसका उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।
अनुवाद: संघप्रिया मौर्या