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यहाँ आज भी महिलाओं को डायन बताकर मार दिया जाता है

भारत में 2015 से लेकर 2021 के बीच डायन बताकर महिलाओं की हत्या किए जाने के 663 मामले सामने आए थे। यानी हर साल औसतन 95 महिलाओं को डायन बताकर उनकी हत्या कर दी जाती है। बिहार इस प्रथा के खिलाफ कानून बनाने वाला पहला राज्य था, जिसमें 6 महीने तक की जेल या 2,000 रुपये के जुर्माना का प्रावधान रखा गया था। बावजूद इसके राज्य में ऐसी मौतों का सिलसिला रुका नहीं है। एक ग्राउंड रिपोर्ट-
#Witchhunting

सुपौल, बिहार। वह बस अभी-अभी खाना बनाकर उठी थी। उसने अपने पति और बेटे को रात के खाने पर बुलाने के लिए आवाज़ लगाई। तभी कुछ आदमी उसके घर में जबरदस्ती ज़बरदस्ती घुस आए।

सुपौल जिले की दीनापट्टी पंचायत की रहने वाली यह महिला अपने साथ हुए उस दर्दनाक हादसे को आज भी भूली नहीं हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “उन्होंने मेरी साड़ी खींची, मेरे हाथ बाँध दिए और मेरे मुँह में जबरदस्ती मल डाला। मुझे अपशब्द कहे और चिल्लाने लगे कि मैं एक डायन हूँ।”

वे कहती हैं, “भीड़ में से एक आदमी चिल्लाता रहा कि मैंने उसके परिवार के लोगों पर जादू कर दिया है, जबकि बाकी लोग मुझे पीटते रहे।” यह भयानक हादसा उनके साथ पिछले महीने 19 अप्रैल की रात को हुआ था, जिसे याद करते हुए आज भी वह सिहर उठती हैं।

उनके बेटे सुमित कुमार झा ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए गाँव कनेक्शन को बताया, “उनके हाथ में रॉड थी। उन्होंने बुरी तरह से मेरी माँ को मारा था।” उन्होंने कहा कि किस्मत से गाँव के कुछ लोग उनकी माँ के बचाव में आए और वह मरने से बच गईं।

महिलाओं को डायन बताकर उन्हें प्रताड़ित करने की घटनाएँ सदियों से चली आ रहीं है। राज्य में आज भी इस प्रथा को मानने वाले लोग मौज़ूद हैं और इसकी आड़ में बिना किसी से डरे महिलाओं को शिकार बना रहे हैं। यह इस तथ्य के बावज़ूद है कि बिहार देश का पहला ऐसा राज्य था जिसने जादू-टोना रोकने, किसी महिला को डायन बताकर उस पर अत्याचार, अपमान और हत्या करने के मामलों को खत्म करने के लिए कानून बनाया था।

बिहार अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहाँ महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित और अपमानित किया जाता है या फिर उन्हें बेरहमी से मार दिया जाता है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2015 और 2021 के बीच डायन बताकर 663 महिलाओं की हत्या कर दी गई थी। यह आँकड़े हर साल औसतन डायन बताकर 95 महिलाओं की हत्या के बराबर है।

देश में डायन-शिकार से संबंधित 65 फीसदी हत्याओं के मामले झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा से आते हैं।

अकेले 2020 में, देश में डायन बताकर की गई हत्या के 88 मामले दर्ज़ किए गए थे। इस तरह की हत्याओं के सबसे ज़्यादा मामले मध्य प्रदेश (17), छत्तीसगढ़ (16), झारखंड (15), ओडिशा (14), और बिहार (4) में दर्ज किए गए हैं।

महिलाओं को डायन कहकर प्रताड़ित करने और मौत के घाट उतारने के बावजूद, ऐसा कोई केंद्रीय कानून नहीं है जो इस तरह की घटनाओं को ‘अपराध’ ठहराता हो, या जादू-टोना करने वाले लोगों को अपराधी मानता हों। 2016 में, सांसद राघव लखनपाल की तरफ से लोकसभा में ‘विच-हंटिंग की रोकथाम’ पर एक विधेयक पेश किया गया था। लेकिन यह विधेयक कभी कानून में नहीं बदल पाया। हालाँकि कुछ राज्यों (बिहार, झारखंड, ओडिशा) ने अपने खुद के कुछ कानून पारित किए औऱ अक्टूबर 1999 में ‘द प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस एक्ट’ को लागू करने वाला बिहार पहला राज्य बन गया।

जादू-टोना करने पर 6 महीने की जेल या 2 हजार रुपये जुर्माना

1999 का कानून विशेष रूप से कहता है कि किसी महिला को ‘डायन’ बताना एक दंडनीय अपराध है। साथ ही झाड़-फूंक के बहाने महिलाओं को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुँचाना भी अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा।

अधिनियम के अनुसार, किसी को डायन बताने के लिए सजा के तौर पर “3 महीने तक की कैद या एक हज़ार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकती है।”

वहीं अगर कोई किसी भी महिला को डायन बताकर, जानबूझकर या किसी भी तरह की शारीरिक, मानसिक यातना देता है, तो सजा के तौर पर कारावास के समय को छह महीने तक बढ़ाने या ज़ुर्माना 2000 रुपये तक बढ़ाने का प्रावधान है। या फिर अपराधी को ज़ुर्माना और क़ैद दोनों सजा एक साथ सुनाई जा सकती है।

महिलाओं को डायन बताकर उन्हें प्रताड़ित करने की घटनाएँ सदियों से चली आ रहीं है। राज्य में आज भी इस प्रथा को मानने वाले लोग मौज़ूद हैं और इसकी आड़ में बिना किसी से डरे महिलाओं को शिकार बना रहे हैं। 

महिलाओं को डायन बताकर उन्हें प्रताड़ित करने की घटनाएँ सदियों से चली आ रहीं है। राज्य में आज भी इस प्रथा को मानने वाले लोग मौज़ूद हैं और इसकी आड़ में बिना किसी से डरे महिलाओं को शिकार बना रहे हैं। 

सहरसा के एक वकील कुणाल कश्यप कई सामाजिक संगठनों को गाइड करते हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “कानून अप्रभावी है। इसके तहत अधिकतम सजा एक हज़ार रुपये से दो हज़ार रुपये के बीच का ज़ुर्माना या तीन महीने से एक साल के बीच कारावास है।” वह आगे कहते हैं, “आप यह जानकर हैरान हो जाएँगे कि डायन बताकर प्रताड़ित की जाने वाली महिला अगर हादसे में जिंदा बच जाती है तो उनके पुनर्वास में मदद करने के लिए कुछ भी नहीं है।”

इस तरह की घटनाओं की शिकार और उनके परिवार वालों की शिकायत है कि आरोपी अक्सर छूट जाते हैं। सुमित कुमार झा ने कहा, “मेरे पास एक वीडियो है। उसमें साफ नज़र आता है कि कैसे मेरी माँ को डायन बताते हुए उन पर हमला बोला गया था। इस प्रूफ को मैंने पुलिस को दे दिया था। घटना को एक महीना बीत चुका है। अभी तक हमलावरों में से सिर्फ एक ही व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है। मुख्य अपराधी अभी भी खुला घूम रहा हैं।”

सँपर्क किए जाने पर, पास के पिपरा पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर विनोद कुमार सिंह ने कहा, “हमने अपराधियों में से एक को गिरफ़्तार कर लिया है। और उसे जल्द ही ट्रायल पर रखा जाएगा। हम स्थिति पर सावधानीपूर्वक नज़र रखे हुए हैं।”

विधवाएँ और अकेली औरतें निशाने पर

जो महिलाएँ विधवा हैं या जिनके बच्चे नहीं हैं, आमतौर पर उन्हीं महिलाओं को निशाना बनाया जाता है। सुपौल की सामाजिक कार्यकर्ता हेमलता पांडे ने गाँव कनेक्शन को बताया, “कभी-कभी संपत्ति का अपना हिस्सा पाने के लिए उनमें से कई को इसी तरह से मार दिया जाता है।”

पांडे ने कहा, “मैं ऐसी कई महिलाओं को जानती हूँ जो सिर्फ इसलिए मर गईं क्योंकि पूरा गाँव उनके ख़िलाफ़ एकजुट हो गया। ग्रामीण समाज में इस तरह की भयावह घटनाओं में शिक्षा की कमी का सबसे बड़ा योगदान है।” उन्होंने कहाँ कि गहरी जड़ें जमा चुकी इस बुराई के ख़िलाफ़ जागरूकता अभियान, नुक्कड़ नाटक का भी कोई असर नहीं पड़ता है।

मसलन, पिछले साल 5 नवंबर को ज़िले के पचमाह गाँव में हेमंती देवी को डायन बता कर ज़िंदा जला दिया गया था। उसके परिवार ने एफआईआर दर्ज़ कराई थी। इस मामले में एक दंपति, चंद्रदेव भुइयां और उनकी पत्नी किस्मतिया देवी को गिरफ़्तार किया गया। एक स्थानीय समाचार पत्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि आरोपी अपने बेटे की मौत के लिए उस महिला को ज़िम्मेदार मान रहा था।

2015 में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को विष्णु देव रविदास को इसी तरह के लोगों के एक समूह से बचाने के लिए दख़ल देना पड़ा था। उन्होंने कथित तौर पर उसकी पत्नी को जादू टोना करने के संदेह में मार डाला था। बिहार के पकरी बरवान थाने में मामला दर्ज़ किया गया था।

कौन है ज़िम्मेदार?

एक महीने बाद भी सुपौल ज़िले की दीनापट्टी पंचायत में 19 अप्रैल की रात का ख़ौफ़ अब भी क़ायम है।

सखुआ गाँव के निवासी वीरेंद्र झा गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “पूरी घटना के पीछे ओझा धलाई यादव का हाथ था। उसने ही लोगों को उकसाया था। ओझा ने ही परिवार के एक सदस्य की बीमारी के लिए महिला को ज़िम्मेदार ठहराने का झूठा आरोप लगाया था।”

ज़ाहिर है, जो व्यक्ति बीमार पड़ा था, वह गाँव के स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों से इलाज के बाद ठीक हो गया था। वीरेंद्र झा ने कहा, “इन ओझाओं का गाँव में बहुत प्रभाव है।”

औरंगाबाद के कुटुंबा प्रखंड के महुआ धाम में लगे ‘भूत मेले’ में जाकर देखा जा सकता है कि अंधविश्वास, भूत-प्रेत का डर कितने लोगों को अपना शिकार बनाए हुए है। यह इसका जीता-जागता सबूत है।

औरंगाबाद के एक प्रसिद्ध लेखक प्रिंस सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया। “यहाँ के अंधविश्वास पर विज्ञान का कोई असर नहीं पड़ा है। बिहार में दूर-दूर से लोग यहाँ के मंदिर में ‘जादू-टोने से बीमार’ व्यक्ति के साथ पूजा करने आते हैं,” लेखक ने कहा, “लोग रोते हैं, जमीन पर लोटते हैं, दीवारों पर अपना सिर मारते हैं। वे ,साफ तौर पर मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीड़ित हैं और डॉक्टरी इलाज से उन्हें ठीक किया जा सकता है, लेकिन वे अपना इलाज कराने के लिए भूत मेले में आते हैं। ”

लेकिन सुपौल ज़िले की लोखा पंचायत के ओझा सरदार बाबा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने बड़े गर्व से बताया कि वे छोटी-बड़ी बीमारियों को ठीक करने में सक्षम हैं।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे पास किसी भी डॉक्टर से ज़्यादा मरीज आते हैं, और वे ठीक भी हो जाते हैं। मैं साँप के काटने का इलाज़ करता हूँ और लोगों को भूतों से छुटकारा दिलाता हूँ।”

गाँव कनेक्शन ने महिला विकास निगम, पटना की चेयरपर्सन हरजोत कौर बम्हरा से ज़वाब माँगने की कई बार कोशिश की, लेकिन वह टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो पाईं।

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