वृद्धा और विधवा पेंशन: लाखों लोगों को लेकिन इन औरतों को क्यों नहीं?

मह्कोना गांव में कुछ 2-4 लोगों को ही वृद्धावस्था और विधवा पेंशन मिलती है। बाकी सभी लोग सरकार द्वारा दी जा रही योजनाओं से वाकिफ तो हैं लेकिन उसका लाभ उन्हें नहीं मिल रहा। एक तरफ वो औरतें हैं जिन्हें कहा जाता है कि उनके कागज़ पूरे नहीं हैं वहीं दूसरी ओर एक महिला है जिसके सभी दस्तावेज़ पूरे हैं फिर भी उसे पेंशन नहीं मिलती।

Pragya BhartiPragya Bharti   13 April 2019 6:04 AM GMT

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मह्कोना, सतना (मध्यप्रदेश)।

"हमें कबहूं नईं मिली पेंशन। 12 साल हो गए पति को मरे लेकिन अब तक हमें न वृद्धा पेंशन मिली न ही विधवा पेंशन," - श्यामकली।

मध्यप्रदेश राज्य के सतना शहर से 20 किलोमीटर दूर मह्कोना गाँव में रहने वालीं श्यामकली बताती हैं कि उनके गाँव में बहुत ही कम लोगों को वृद्धा या विधवा पेंशन मिलती है। मह्कोना गांव नागोद तहसील में आता है। श्यामकली के तीन बेटे हैं। दो गाँव में ही किसान हैं और एक सतना में खेती करता है। पति को मरे हुए एक दशक से भी ज़्यादा हो गया है लेकिन उन्हें अभी तक विधवा पेंशन की एक किश्त भी नहीं मिली। उम्र तो उन्हें याद नहीं लेकिन कहती हैं, "क्या कम, 70 साल के तो हो रए होंगे मोड़ी।"

श्यामकली बताती हैं, "हमको कहते हैं कि पेन कॉर्ड ले आओ, खाता खुलवा लो, मृत्यु प्रमाण पत्र ले आओ लेकिन वो अभी बने नहीं हैं।"

श्यामकली के पति को मरे हुए 12 साल हो गए लेकिन आज तक उन्हें न विधवा पेंशन मिलती है न ही वृद्धा पेंशन।

जब हमने पूछा कि दस्तावेज़ क्यों नहीं हैं तो श्यामकली के बेटे वीरेन्द्र बागरी बताते हैं, "सरपंच दस्तावेज़ नहीं बनाते हैं। अम्मा की जन्मतिथि नहीं है, केवल सन् भर दिया है, तारीख और महीना नहीं दिया है। लोगों ने कहा कि सरपंच बना देगा तो मान्यता हो जाएगी लेकिन सरपंच कहते हैं कि थाने से बनेगा। बस यहां-वहां कर देते हैं, कोई सुनता ही नहीं है हमारी बात।"

वीरेन्द्र बागरी आगे कहते हैं, "जो लोग पैसा देते हैं उनके दस्तावेज़ तुरन्त बना देते हैं, जो नहीं देते उनका लटका देते हैं।"

श्यामकली की ही तरह मिथलेश कुमारी के भी दस्तावेज़ पूरे नहीं हैं। मिथलेश कहती हैं-

"कागज़ नहीं बने हैं। हमारा तो खाता भी नहीं खुला। खाता खोलने के लिए ही पांच सौ रुपए मांगते हैं।"

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मिथलेश कुमारी के बेटे किसान संजय बागरी ने हमें बताया कि "यहां किसी को पहुंचने नहीं दिया जाता। कोई सरकारी योजना, कोई लाभ हम तक नहीं पहुंचता। अगर चार-पांच हज़ार गरीब को मिल जाए ऐसी कोई योजना है तो उसे गाँव के बाहर से ही लौटा दिया जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि गरीब इसमें खुश हो जाएंगे तो उन बड़े लोगों के पास भीख मांगने कौन जाएगा? कर्ज़ा लेने कौन आएगा? सिर्फ उस योजना को आने दिया जाता है जिसमें अधिक पैसे मिलने हों।"

"ज़्यादा पैसे होंगे तो सरपंच और सेक्रेटरी लोगों से अपने लिए कुछ ले लेंगे और बाकी उन्हें दे देंगे। जैसे किसी योजना के तहत बीस- हज़ार रुपए मिल रहे हैं तो दो से तीन हज़ार और कभी-कभी तो पांच हज़ार रुपए तक हमें देने पड़ जाते हैं," - संजय बागरी आगे बताते हैं।

मिथलेश कुमारी को वृद्धा और विधवा पेंशन दोनों मिलनी चाहिए लेकिन उन्हें दोनों ही नहीं मिलती हैं। गाँव में औरतों की स्थिति ये है कि उन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें पेंशन क्यों नहीं मिलती। वो न तो पढ़ी-लिखी हैं, न ही इतनी जागरूक कि सरपंच और सेक्रेटरी से पूछ सकें कि क्यों उनको पेंशन नहीं मिलती। श्यामकली और मिथलेश की ही तरह रामसखी दहिया को भी वृद्धा और विधवा पेंशन नहीं मिलती। रामसखी ने बताया कि जब उनके पति जीवित थे तब सरपंच से बात हुई थी। जब से उनके पति का देहांत हुआ है तबसे कोई उनकी बात सुनता ही नहीं।

रामसखी दहिया के पति का जब से देहांत हुआ है सरपंच ने उनकी बात तक सुनना बंद कर दिया है।

गाँव में घुसते ही सबसे पहला घर शान्ति तिवारी का है। उन्हें वृद्धा पेंशन नहीं मिलती। शान्ति विक्लांग हैं। वो बताती हैं कि सरपंच और सेक्रेटरी पेंशन नहीं देते हैं। शान्ति के बेटे कहते हैं कि, "मैंने सेक्रेटरी से बात की लेकिन वो कहते हैं नहीं मिलेगी वृद्धा पेंशन। विधवा पेंशन मिलेगी लेकिन हमारे पिता अभी जीवित हैं, हम क्या उनके मरने का इंतज़ार करें? ये सब बहाने हैं उनके। वो कहते हैं कुछ खर्चा-पानी मिलेगा तब बनेगी पेंशन।"

शान्ति तिवारी को वृद्धा पेंशन देने से सरपंच मना कर देते हैं, कहते हैं कि विधवा होगी तब मिलेगी पेंशन।

मह्कोना गाँव, सतना जिले की नगर पंचायत नागोद में पड़ने वाली रजरवारा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है। यहां के सेक्रेटरी राजेश पांडे हैं।

मध्यप्रदेश सरकार ने मार्च 2019 से वृद्धा और विधवा पेंशन की राशि 600 रुपए प्रतिमाह कर दी है। इससे पहले ये 300 रुपए प्रतिमाह थी। सतना जिले में मार्च 2019 में कुल 88,609 लोगों को वृद्धावस्था पेंशन दी गई। वहीं 31,484 महिलाओं को विधवा पेंशन दी गई है लेकिन इन लाखों लोगों में मह्कोना गांव की ये औरतें शामिल नहीं है।

इस परेशानी के बारे में गाँव कनेक्शन ने सतना जिले के कलेक्टर सतेन्द्र सिंह से बात करने का प्रयास किया तो उन्होंने कहा कि, "इस समय अचार संहिता लगी हुई है और मैं इस बारे में कोई जवाब नहीं दे पाऊंगा। आप ये उम्मीद करते हैं कि 2100 गाँव के नाम पूरे कलेक्टर का याद रहेंगे?"

"मैं तीन-चार बार सरपंच साहब के घर गई हूं, पूरे रिकॉर्ड दे आई हूं लेकिन सरपंच ने आज तक मेरी पेंशन नहीं दी है,"- ये कहना है चुनुवादी बागरी का।

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एक तरफ वो औरतें हैं जिन्हें कहा जाता है कि उनके कागज़ पूरे नहीं हैं वहीं चुनुवादी के पास सभी दस्तावेज़ हैं फिर भी उन्हें पेंशन नहीं मिलती। उनके पति की मृत्यु को पांच साल हो गए हैं और दो छोटे बच्चों की देखभाल वो अकेले ही करती हैं। चुनुवादी के छोटे बेटे यश के शरीर का निचला हिस्सा काम नहीं करता। उसकी कमर के नीचे के हिस्से में लकवा मार गया है।

चुनुवादी आगे बताती हैं, "मुझसे कहा कि पति का मृत्यु प्रमाण पत्र दो तो मैं मृत्यु प्रमाण पत्र तक दे आई हूं लेकिन अभी तक मुझे पेंशन नहीं मिली है। मैं तीन-चार महीने पहले ही सेक्रेटरी साहब को सारे कागज़ जमा करा चुकी हूं।"

चुनुवादी बागरी अपने दोनों बेटों को अकेले पाल-पोस रही हैं। उनका छोटा बेटा यश विक्लांग है।

"चुनुवादी का नाम प्रधानमंत्री आवास योजना की लिस्ट में भी आया था। उसे डेढ़ लाख रुपए मिलने थे लेकिन सरपंच और सेक्रेटरी ने बोल दिया कि नाम नहीं है। उसका खाता खुला है, पेन कॉर्ड भी है। सारे दस्तावेज़ पूरे हैं लेकिन यहां कोई नहीं सुनता," - चुनुवादी के जेठ ये बताते हैं।

लगभग 16-17 साल पहले चुनुवादी शादी करके मह्कोना गाँव आई थीं। यहां से 10-12 किमी दूर खैरी गाँव में उनका मायका है। चुनुवादी बताती हैं कि, 'मैंने चौथी या पांचवी कक्षा तक ही पढ़ाई की है।'

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चुनुवादी के पति के नाम कुछ ज़मीन है उसे उन्होंने ठेके पर दिया हुआ है। इससे 10 हज़ार रुपए सालाना उन्हें मिलता है। इन्हीं पैसों से वो अपने बड़े बेटे ओम की स्कूल फीस भरती हैं। ओम पास ही के बरेठिया गाँव में एक प्राइवेट स्कूल में छठवीं कक्षा में पढ़ता है।

मह्कोना गांव में कुछ 2-4 लोगों को ही वृद्धा और विधवा पेंशन मिलती है। बाकी सभी लोग सरकार द्वारा दी जा रही योजनाओं से वाकिफ तो हैं लेकिन उसका लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है।

    

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