अब भी रेडियो ही है एक भरोसेमंद सूचना का बेहतरीन ज़रिया

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक समय में रेडियो एक संचार का बहुत ही बड़ा माध्यम था। इसके ज़रिए लोग अपनी बात को जन जन तक पहुँचा पाते थे और इस पर कई सारे मनोरंजन के कार्यक्रम भी होते थे; जिस वजह से लोग पहले के समय में रेडियो को सुनना पसंद करते थे। लेकिन बदलते दौर में लोगों की रेडियो में दिलचस्पी कम हो गई है और अब लोग अपना सभी प्रोग्राम टीवी और अपने स्मार्टफोन पर देख लेते हैं।

आज विश्व रेडियो दिवस है, हर साल 13 फरवरी को दुनिया भर में विश्व रेडियो दिवस मनाया जाता है। इस दिन हर साल यूनेस्को विश्व के सभी ब्रॉकास्टर्स, संगठनों और समुदायों के साथ मिलकर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करता है। संचार के माध्यम के तौर पर रेडियो की भूमिका पर चर्चा होती है और लोगों को इस बाबत जागरूक किया जाता है। रेडियो एक ऐसी सेवा है जो दुनियाभर में सूचना का आदान-प्रदान करता है। लेकिन टेलीविजन और मोबाइल जैसी चीजें आने के बाद रेडियो का पहले जैसा इस्तेमाल नहीं हो रहा है; लेकिन अब भी इसका महत्व कम नहीं हुआ।

आपदा या आपात कालीन स्थिति में रेडियो का महत्व बढ़ जाता है। ऐसे में विश्व रेडियो दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर के युवाओं को रेडियो की आवश्यकता और महत्व के प्रति जागरूक करना है। सूचना फैलाने के लिए सबसे शक्तिशाली और सस्ते माध्यम के तौर पर रेडियो को जाना जाता है। भले ही रेडियो सदियों पुराना माध्यम हो लेकिन संचार के लिए इसका इस्तेमाल आज भी हो रहा है।

दुनिया भर में सूचना के आदान-प्रदान और लोगों को शिक्षित करने में रेडियो ने अहम भूमिका निभाई है। इसका इस्तेमाल युवाओं को उन विषयों की चर्चा में शामिल करने के लिए किया गया जो उनको प्रभावित करते हैं। इसने प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के दौरान लोगों की कीमती जानों को बचाने में मदद की। यह पत्रकारों के लिए एक प्लैटफॉर्म हुआ करता था जिसके माध्यम से वह अपनी रिपोर्ट दुनिया तक पहुँचाते थे और अपनी कहानी सुनाते थे।

मौजूदा समय में भी यह सूचना फैलाने का सबसे शक्तिशाली लेकिन सस्ता माध्यम है। हालाँकि रेडियो सदियों पुराना माध्यम हो गया लेकिन अब भी संचार के लिए इसका इस्तेमाल होता है। इसके अलावा 1945 में इसी दिन यूनाइटेड नेशंस रेडियो से पहली बार प्रसारण हुआ था। रेडियो की इन अहमियतों को देखते हुए हर साल रेडियो दिवस मनाया जाता है। औपचारिक रूप से पहला विश्व रेडियो दिवस 2012 में मनाया गया।

13 फ़रवरी, 2024 को मनाए जाने वाले विश्व रेडियो दिवस की थीम है, ‘रेडियो सूचना देने, मनोरंजन करने और शिक्षित करने वाली एक सदी’। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2024 का उत्सव रेडियो के इतिहास और समाचार, नाटक, संगीत और खेल पर इसके शक्तिशाली प्रभाव पर प्रकाश डालता है। हर साल इस खास दिन के लिए एक थीम तय की जाती है। रेडियो एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और भरोसेमंद सूचना का माध्यम है, इंटरनेट, टेलीविज़न और समाचार पत्रों की तुलना में इसकी सबसे व्यापक भौगोलिक पहुंच है।

एक जमाना था जब संदेश प्रसारित करने के लिए कबूतर काम में लिए जाते थे; लेकिन तकनीक के अभाव में वह दौर कितना रोचक रहा होगा, जब किसी को देश विदेश में क्या घटित हो रहा है कोई जानकारी नहीं रही होगी। मगर बीसवीं सदी के रेडियो अर्थात आकाशवाणी के आविष्कार ने तो काया पलट ही कर दिया।

अब एक यंत्र के माध्यम से दुनिया के किसी भी हिस्से में बैठकर देश दुनिया के समाचार प्राप्त किये जा सकते थे। आकाशवाणी अथवा रेडियो आधुनिक विज्ञान की एक ऐसा उपहार हैं. जिसने मानव समाज को सर्वाधिक प्रभावित एवं आकर्षित किया हैं। यह एक ऐसा श्रव्य माध्यम हैं जो अनेक प्रकार की जानकारियाँ, शिक्षाएं, समाचार आदि देने के साथ साथ घर बैठे एक तरह से हमारा मनोरंजन किया करता हैं. रेडियो मानव का बहुत अच्छा मित्र हैं।

रेडियो का आविष्कार इटली के गुल्येल्मो मार्काेनी नामक एक वैज्ञानिक ने किया था। उसने शांत जल में पत्थर का टुकड़ा फेकने से उत्पन्न लहरों से प्रेरणा पाकर रेडियो का आविष्कार किया था। रेडियो का आविष्कार आज से 140 वर्ष पहले अर्थात सन 1880 में हुआ था और उसके बाद ही इसका प्रचलन धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया। और सन 1906 में रेडियो के जरिए संदेश भेजना आरंभ हुआ और यह पूरे दुनिया भर में फैला और लोगों को यह बेहद पसंद आने लगा।

भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने सर्वप्रथम रेडियो और ध्वनि-विक्षेपक का सिद्धांत निकाला लेकिन, आर्थिक कठिनाइयों के कारण वे इसे व्यावहारिक रूप न दे सकते। फलस्वरूप इटली के वैज्ञानिक मार्कोनी को रेडियो के अविष्कार का श्रेय दिया जाता है। इस महान खोज के बाद लोग संदेश पहुंचाने के लिए रेडियो का इस्तेमाल करने लगे और उसके बाद नौसेना में इसका बहुत अत्यधिक इस्तेमाल होने लगा और जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा था तब भी रेडियो के जरिए संदेश को भेजा जाता था। इसके बाद कई वैज्ञानिकों ने रेडियों में काफी सुधार किया। उनके सुधार के फलस्वरूप ही यह अधिक उपयोगी और महत्वपूर्ण बन पाया है। आज रेडियो इतना सरल साधन बन गया हैं कि इसे हम ट्रांजिस्टर के रूप में अपने जेब तक में लिए घूम फिर सकते हैं. यह हमारा प्रत्येक स्थान पर मनोरंजन कर सकते हैं।

वर्ष 1921 में रेडियो प्रसारण की शुरुआत हुई थी, यह सुचना की क्रांति में बहुत बड़ा कदम था, जिसमें आकाशवाणी के माध्यम से इंग्लैंड से न्यूजीलैंड तक समाचार प्रसारण किया गया, इस अद्भुत आविष्कार ने सम्पूर्ण जगत को आश्चर्य में डाल दिया. क्योकि यह मानव कल्पना से परे होकर कार्य कर रहा था।

सर्वप्रथम तो रेडियो पर केवल लोगों की बातचीत आदि का प्रसारण हो पाता था। मगर धीरे धीरे तकनीकी के सहयोग से इसके रूप में और विस्तार दिया गया तथा गीत, संगीत, कविता, कहानी एवं नाटक आदि का सीधा प्रसारण भी रेडियो के द्वारा किया जाने लगा। धीरे धीरे श्रोताओं की संख्या बढने के साथ ही देश दुनिया में रेडियो स्टेशन भी बढ़ते गएँ और इसने एक इण्डस्ट्री का रूप ले लिया। जिसमें लाखों लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिलने लगा, रेडियो लोगों को घर बैठे उनसे जुड़ी जानकारियाँ पहुँचाता रहा।

यह हजारों लाखों कलाकारों, तकनीशियन, निर्माताओं, विक्रेताओं व अन्य कर्मचारियों के घर परिवार के लिए रोजी रोटी का साधन बना हुआ हैं। इसके माध्यम से व्यापारी वर्ग अपनी वस्तुओं के विज्ञापन देकर अपने लाभ में वृद्धि कर लेते हैं। यह प्रतिदिन सुबह से लेकर शाम तक ताजे समाचारों के अनेक बुलेटिन प्रसारित करके लोगों की जानकारियों को सहज ही अंतरराष्ट्रीय आयाम प्रदान कर देता हैं। यह हमें नई से नई सूचनाएँ, कृषि कार्य और मौसम की जानकारी भी देता रहता है। वह छात्रों के लिए परीक्षा उपयोगी विषयों का प्रसारण भी करता है। इसके द्वारा खोया, पाया, रेलवे और वायुयान आदि की समय सारणी तथा बाजार भाव दिखाए जाते हैं।

लेकिन रेडियो को बचाए रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा साल 2014 से ही मन की बात का प्रोग्राम शुरु किया गया है; जिसमें प्रतिदिन इस कार्यक्रम को आयोजित किया जाता है और लोग अपनी बात प्रधानमंत्री तक पहुँचाते हैं।

भारत में रेडियो का इतिहास

भारत में रेडियो का आरंभ सन 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब से हुई थी; इस समय मद्रास से ब्रॉडकास्टिंग की जा रही थी, लेकिन यह कार्य मात्र 1927 वर्ष तक ही चल पाया। उसके पश्चात इसकी सारी आर्थिक समस्याओं की वजह से बंद किया गया। लेकिन सन 1927 में ही कुछ बड़े व्यापारियों द्वारा मुंबई और कोलकाता से रेडियो का ब्रॉडकास्टिंग शुरू किया गया; लेकिन सन 1932 तक इस ब्रॉडकास्टिंग को भारतीय सरकार ने अपने जिम्मेदारी पर ले लिया और सन 1936 में इस ब्रॉडकास्टिंग का नाम ऑल इंडिया रेडियो रख दिया गया, जिसे हम कुछ समय तक आकाशवाणी के नाम से भी जाना करते थे।

जब इसके ब्रॉडकास्टिंग की सारी जिम्मेदारी भारत सरकार अपने ऊपर ले ली। तब इसे भारत के कोने कोने तक पहुँचाने का काम शुरु किया गया और कई स्थानों पर रेडियो स्टेशन बनाए गए; ताकि पूरे भारत देश में इसका प्रसारण हो सके। यही नहीं रेडियो ने भारत में स्वतंत्रता दिलाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान निभाया था; क्योंकि सन 1942 में महात्मा गांधी ने रेडियो पर ही भारत छोड़ो आंदोलन का प्रसारण शुरू किया था।

इसके साथ-साथ सुभाष चंद्र बोस जी का भी नारा जो था तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा यह नारा रेडियो के माध्यम से ही प्रसारित किया गया। इसी तरह और भी कई सारे नारे रेडियो के माध्यम से पूरे भारत देश के कोने कोने तक पहुँचाया गया और हमारे देश के आजादी के पश्चात सन 1957 में ऑल इंडिया रेडियो का नाम आकाशवाणी रख दिया गया तथा वर्तमान समय में अब हम इसे एफएम के नाम से जानते हैं। आज देश में करीब 420 आकाशवाणी के रेडियो स्टेशन और 450 सामुदायिक रेडियो स्टेशन अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, जो कि इसकी लोकप्रियता का बखान कर रहे हैं।

(डॉ अमित वर्मा, पत्रकारिता एवं जनसंचार, मणिपाल विश्वविद्यालय जयपुर में सहायक प्राध्यापक और स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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