जब पहले ही स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गए थे अमरीश पुरी

अमरीश पुरी को शुरुआती दिनों मे काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने 1960 के दशक में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गया।

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लंबा कद, मज़बूत क़द काठी, बेहद दमदार आवाज़ और ज़बर्दस्त संवाद अदायगी जैसी खूबियों के मालिक अमरीश पुरी को हिन्दी सिनेमा जगत् के कुछ सबसे सफल खलनायकों में गिना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं जब अमरीश पुरी फिल्मों में काम करने के लिए मुंबई पहुंचे तो पहले ही स्क्रीन टेस्ट में में वह फेल हो गए थे।

इसके बाद उन्होंने 'भारतीय जीवन बीमा निगम' में नौकरी कर ली। बीमा कंपनी की नौकरी के साथ ही वह नाटककार सत्यदेव दुबे के लिखे नाटकों पर 'पृथ्वी थियेटर' में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने टीवी विज्ञापन करने शुरू किये, जहां से वे फिल्मों में खलनायक के किरदार तक पहुंचे। अमरीश पुरी का जन्म 22 जून, 1932 को पंजाब में हुआ था।

अमरीश पुरी को शुरुआती दिनों मे काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने 1960 के दशक में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। रंगमंच पर बेहतर प्रस्तुति के लिए उन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी की तरफ से पुरस्कार दिया गाया। यह उनके करियर का पहला बड़ा पुरस्कार था। इसके बाद वर्ष 1971 में उन्होंने फिल्म 'रेशमा और शेरा' से खलनायक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन वह इस फ़िल्म से दर्शकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना सके।

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मशहूर बैनर बाम्बे टॉकीज में क़दम रखने के बाद अमरीश पुरी को बड़े-बड़े बैनर की फ़िल्म मिलनी शुरू हो गई। अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपना कैरियर का आधार बनाया। इन फ़िल्मों में श्याम बेनेगल की कलात्मक फ़िल्म जैसे निशांत, 1975, मंथन 1976, भूमिका 1977, कलयुग 1980, और मंडी 1983, जैसी सुपरहिट फ़िल्म भी शामिल है जिनमें उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और शबाना आज़मी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया और अपनी अदाकारी का जौहर दिखाकर अपना सिक्का जमाने में कामयाब हुए।

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इस दौरान उन्होंने अपना कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की 1983 में प्रदर्शित कलात्मक फ़िल्म 'अर्द्धसत्य' में निभाया। इस फ़िल्म में उनके सामने कला फ़िल्मों के दिग्गज अभिनेता ओम पुरी थे। फिलहाल, धीरे-धीरे उनके कैरियर की गाड़ी बढ़ती गई और उन्होंने कुर्बानी 1980 नसीब 1981 विधाता 1982, हीरो 1983, अंधाक़ानून 1983, कुली 1983, दुनिया 1984, मेरी जंग 1985, और सल्तनत 1986, और जंगबाज 1986 जैसी कई सफल फ़िल्मों के जरिए दर्शकों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई।

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हिंदी फिल्मों के साथ-साथ अमरीश पूरी ने कन्नड, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू और तमिल के साथ ही हॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया। 12 जनवरी 2005 को अमरीश पुरी का निधन हो गया।

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