सिलाई-कढ़ाई से संवार रही ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी
Virendra Shukla 29 May 2017 10:17 PM GMT
कहते हैं कि मंज़िलें उन्हें मिलती हैं जो ठोकर खाने से गुरेज़ नहीं करते.. उन्हे नहीं जो सिर्फ रास्तों के मुश्किल होने की शिकायत करते रहते हैं। रास्ते तो बाराबंकी की सौम्या तिवारी के लिए भी आसान नहीं थे, लेकिन सौम्या ने हार नहीं मानी। अपने ख्वाबों को खुद पंख दिये, खुद उड़ना सीखा और आज वो इस काबिल हैं कि ना सिर्फ अपनी बल्कि तमाम लोगों की ज़िंदगी में अहम बदलाव ला रही हैं।
भगौली के विवेकानंद शिक्षण संस्थान से दसवीं पास करने वाली सौम्या तिवारी, बाराबंकी में ही सिलाई-कढ़ाई प्रशिक्षण केंद्र चलाती हैं। जहां महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाता है, उन्हे अपने पैरों पर खड़े होकर ज़माने के साथ चलना सिखाया जाता है।
सौम्या दरअसल अपनी और अपने आस-पास की महिलाओं की ज़िंदगी में कुछ बुनियादी बदलाव करना चाहती थी, एक ऐसा बदलाव जहां वो अपीन अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों खुद पूरी कर सकें, घर चलाने में हिस्सेदारी कर सकें, खुद में आत्मविश्वास जगा सकें। तमाम संघर्षों से जूझती हुई सौम्या अकसर सोचा करती थी कि वो क्या कर सकती है। उसे खुद सिलाई कढ़ाई का बहुत शौक था। और इसी तरह एक रोज़ उसे एक ऐसे प्रशिक्षण संस्थान का ख्याल आया जहां वो लड़कियों को अपना वो हुनर दे सके जिससे वो आत्मनिर्भर बन सकें और वक्त के साथ आगे बढ़ सकें।
जहां चाह वहां राह, जब सौम्या ने ये ख्याल अपने माता-पिता को बताया तो उन्होंने उसका पूरा सहयोग किया। और उसके शौक को व्यवसाय बनाने के लिए उन्होंने सौम्या को सीतापुर के नव जागरुकता केंद्र में दाखिल करा दिया। वहां उसे जय सिंह ‘डॉली’ नाम की टीचर मिलीं जिन्होंने उसकी प्रतिभा को और निखारा। औऱ इस तरह सौम्या अपने ख्वाब और करीब आ गई।
पूरे 6 महीने उसने लगकर इस काम को सीखा और जब उसे यकीन हो गया कि अब वो ये हुनर दूसरों के देने में पूरी तरह सक्षम हो गई है तो उसने अपना सिलाई कढ़ाई प्रशिक्षण संस्थान खोला। हालांकि ये इतना आसान नहीं था, शुरु-शुरु में सीखने वाली महिलाओं की संख्या काफी कम थी लेकिन धीरे-धीरे, लगातार कोशिशों से इलाके की कई लड़कियों ने इस संस्थान से जुड़ना शुरु कर दिया।
आज सौम्या तिवारी के सिलाई कढ़ाई प्रशिक्षण संस्थान में तकरीबन डेढ़ सौ लड़कियां हैं जो इस हुनर को सीख रही हैं। संस्थान में तीस से पैंतीस लड़कियों वाले चार बैच चलते हैं। यहां सिलाई कढ़ाई सीखने वाली महिलाएं सौम्या से रोज़ाना कुछ नया सीखती हैं और अपना आने वाला कल संवारती हैं। सौम्या को इस बात की खुशी है कि जिस तरह वो आत्मनिर्भर बनी है, कल को उसके संस्थान से निकलने वाली लड़किया भी अपनी तकदीर खुद लिखेंगी, अपनी दुनिया खुद बदलेंगी और हां.. उसे याद भी करेंगी।
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