औरतों को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी नहीं

Basant KumarBasant Kumar   14 April 2017 3:08 PM GMT

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औरतों को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी नहींमहिलाओं के लिए लखनऊ के सेक्टर 16 में बनी अम्बर मस्जिद।

बसंत कुमार , स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। औरतों के हक़ के लिए खड़ा होने का फैसला करने वाली शाइस्ता अंबर आज देश में मुस्लिम महिलाओं के हक में प्रमुखता से आवाज़ उठा रही हैं। शाइस्ता अंबर ने लखनऊ के सेक्टर 16 में महिलाओं के नमाज़ पढ़ने के लिए ‘अम्बर मस्जिद’ का निर्माण कराया है। यहां शुक्रवार के दिन काफी संख्या में मुस्लिम महिलाएं नमाज़ पढ़ने आती हैं। देश में ज्यादातर हिस्सों में मुस्लिम महिलाएं मस्जिद के बजाय घर पर नमाज पढ़ती हैं।

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शाइस्ता अंबर बीते दिनों को याद करते हुए बताती हैं, ‘‘मस्जिद बनाने के लिए क्या कुछ नहीं सुना और किया। ज़मीन खरीदने के लिए गहना बेच दिया, निर्माण के दौरान दिन-रात मजदूरों की तरह मेहनत करते थे। परिवार ने तो हमेशा मेरा साथ दिया, लेकिन आसपास के लोगों ने खासकर धर्म के ठेकेदार बनने वाले परेशान थे। उन्हें लग रहा था कि महिलाओं के लिए अलग मस्जिद क्यों?”

मेरे पति सरकारी अधिकारी थे। एक बार ईद के दिन घर नहीं आ सके तो मैं अपने बेटे को नमाज़ पढ़ाने के लिए मस्जिद ढूंढते हुए तेलीबाग़ पहुंची। वहां मस्जिद के इमाम ने मुझे बाहर खड़ा रहने के लिए बोलते हुए मेरे बेटे को अपने साथ नमाज़ पढ़ने के लिए ले गए। मैंने खुद को अपमानित महसूस किया और उसी रोज औरतों के हक़ के लिए लड़ने का फैसला किया।
शाहिस्ता अंबर

शाइस्ता अंबर ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष भी हैं। शाइस्ता आगे बताती हैं कि मस्जिद के निर्माण के लिए चंदा मांगती तो धार्मिक ठेकेदारों ने अफवाह फैला दिया कि इसका तलाक़ हो गया है और चंदा अपना परिवार चलाने के लिए मांग रही है, जबकि मैं और मेरे शौहर ज़िन्दगी में कभी लड़े भी नहीं है।

2005 में मस्जिद बनकर तैयार हो गई तो महिलाओं को मस्जिद तक लाना मुश्किल था। महिलाएं नहीं आती थी तो मैं ही मर्दों के साथ नमाज़ पढ़ती थी। मैं समाज को यह बताना चाहती थी कि औरत को अल्लाह की तरफ से मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से कोई मनाही नहीं है। धीरे-धीरे लोगों का जेहन बदलने लगा और महिलाएं नमाज में शामिल होने लगी।

शाइस्ता आपा से हमें काम करने की हिम्मत मिलती है। जिस तरह से इन्होंने अपनी आवाज़ मजबूत की है, उससे हमें ताकत मिलती है। पुरुषवादी समाज में महिलाओं के हक में लड़ने के बारे में सोचना ही मुश्किल काम है। शाइस्ता आपा ने तो जीत हासिल की है।
शालिनी लाल, समाजिक कार्यकर्ता

मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में नमाज क्यों नहीं पढ़ती हैं, इसके बारे में शाइस्ता अंबर बताती हैं, देश में लड़कियों का साइकोलोजिकल तरीके से मिजाज बना दिया गया है कि औरतें घर में नमाज पढ़ें, लेकिन अगर कोई लड़की नौकरी कर रही हो और उसके ऑफिस के बगल में मस्जिद हो और वो वहां जाकर नमाज़ पढ़ना चाहे तो उसे किसी तरह की मनाही नहीं होनी चाहिए। इस्लाम के किसी भी किताब में औरतों के मस्जिद में नमाज पढ़ने पर पाबंदी नहीं है।

मुझे अपनी पत्नी पर गर्व है। इन्होंने अपनी मेहनत से समाज में अपनी पहचान बनाई है। हमने कभी इन्हें किसी काम के लिए रोका नहीं, इन्होंने जो चाहा वहीं किया।
मोहम्मद इदरीश अम्बर, शाइस्ता अंबर के पति

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर महिलों को सरकारी योजनाओं के बारे में बताती हैं और उसका लाभ कैसे उठाया जाए उसमें भी मदद करती है। पीजीआई या किसी भी अस्पताल में कोई गरीब व्यक्ति इलाज कराने आता है तो उसें मदद देती है। उसके रहने का सस्ता इंतजाम कराती है। ये लोगों को पर्यावरण को लेकर भी जागरूक करती हैं। पर्यावरण की रक्षा लिए अपनी मस्जिद में पूरी तरह सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर रही हैं।

धार्मिक मामले में शाइस्ता खुलकर रखती हैं अपनी बात

शाइस्ता धार्मिक मामले में भी निर्भीकता से अपनी बात रखती हैं। देश में शरई कानूनों की हिफाजत के लिए ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड द्वारा चलाए जा रहे हस्ताक्षर अभियान को शाइस्ता ने महिलाओं को ‘गुमराह’ करने वाला करार देते हुए कहा था कि बेहतर होता, अगर इस मुहिम में इस्तेमाल किए जा रहे दस्तावेज में तलाक के मामलों का हल सिर्फ कुरान शरीफ में दी गई व्यवस्थाओं के अनुरूप ही कराने का इरादा भी जाहिर किया जाता।

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