अमां मियां … और 'पहले आप' वाले लखनऊ में एक तांगे वाले की कहानी
मेरी जिंदगी का एक दिन : फेसुबक और गांव कनेक्शन की मुहिम मोबाइल चौपाल में आज की कहानी है एक बुजुर्ग तांगे वाले की, जानिए उसकी नजर से लखनऊ
Deepanshu Mishra 25 Jun 2018 6:54 AM GMT
लखनऊ घूमने का कभी मन हो तो पुराने लखनऊ में एक जगह है बड़ा इमामबाड़ा वहां टक-टक की आवाज के साथ कई तांगे दौड़ते दिखाई देंगें। उन्हीं तांगों की आवाज में एक आवाज जुग्गन खान के तांगे की होगी।
जुग्गन खान और उनके घोड़े राजू की जोड़ी बड़ी मजेदार है। अमां मियां करके बोलने वाले जुग्गन खान पिछले 50 सालों से तांगा चला रहे हैं। इनके तांगे पर बैठकर सवारी कीजियेगा पूरा पुराने समय को ताजा कर देंगें जुग्गन खान।
पुराने लखनऊ में खदरा में रहने वाले जुग्गन खान (67 वर्ष) अपने तांगा की डोरी को पकड़े हुए मुस्कुराते हुए बताते हैं, "पिछले 50 वर्षों में तांगा चला रहा हूँ। हमारे जमाने में जो जंगल हुआ करते थे आज वो सब पार्कों में बदल गए हैं और उन्हें मैंने अपनी आंखों से बनते हुए देखा है। पानी को रोकने के लिए कोई बाँध नहीं थे तो बारिश के समय पानी रूमी गेट के नीचे से निकलता रहता था। हमारे घर में हम हैं मेरी पत्नी और चार बच्चे हैं। उन सब का गुजारा तांगा से ही चलता है।'
उत्तर प्रदेश की राजधानी और नवाबों के ऐतिहासिक शहर लखनऊ में तांगे की सवारी यादगार अनुभव है। अब सीमित संख्या में ही तांगे वाले बचे हैं, लेकिन उनका अंदाज आज भी नवाबी ही है। तांगे की सवारी का लुत्फ़ लेते हुए पर्यटक इमामबाड़े, भूल-भुलैया, रूमी गेट और चौक व पुराने लखनऊ के इलाकों के दर्शन कर सकते हैं।
जुग्गन खान बताते हैं, "लखनऊ में तांगा पिछले 100 वर्षों से चल रहा है। लखनऊ की शाही सवारी तांगा है। लखनऊ में जब नवाब रहते थे तब से तांगा चल रहा है। धीरे-धीरे तांगे खत्म होने लगे हैं। ई-रिक्शा जैसी गाड़ियां आने से तांगे के चलन पर बहुत असर पड़ा है। लेकिन बाहर से घूमने के लिए जो पर्यटक आते हैं वो लखनऊ की शाही सवारी पर अपने परिवार को घुमाते हैं। इस वजह से हम लोगों की आमदनी चल रही है।'
पुरानी यादों को ताजा करते हुए जुग्गन खान बताते हैं, "पहले जब हम तांगा चलाते थे तब बहुत मज़ा था। उस समय बहुत सस्ता जमाना था। खूब कोरमा रोटी चबाते थे। उस समय इतना सस्ता जमाना था कि अगर 10 रूपये कमा लिए तो बहुत होते थे। इन्हीं 10 रूपये में घोड़ा भी पेट भर के खूब खाता था और हम भी खूब खाते थे। उस जमाने के 10 रूपये जो मजा देते थे वो आज के जमाने के 500 रूपये भी नहीं दे पाते हैं।"
बड़े प्यार से हँसते हुए जुग्गन खान ने बताया, "इतने सालों में हमने घोड़े तो हमने दर्जनों बदल दिए लेकिन तांगा आज भी हमारे पास एक ही है। एक समय में हमारे पास हमारे औलाद की तरह एक घोड़ी थी जिसका नाम लक्ष्मी था।'
लक्ष्मी के बारे में वो आगे बताते हैं, " वो हमें बहुत प्यारी थी और 16-17 सालों तक वो हमारे साथ थी। एक दिन लक्ष्मी के मुंह पर एक कुत्ते ने काट लिया, जिससे लक्ष्मी पागल हो गयी थी और उसके चलते कुछ दिनों बाद वो खत्म हो गयी। लक्ष्मी स्वभाव से बहुत अच्छी थी और मुझसे बहुत प्यार भी करती थी। मुझे लखनऊ के किसी कोने में तांगा के साथ छोड़ दिया जाये और लक्ष्मी की रस्सी मेरे हाथों में न हो फिर भी वो हमें सही सलामत घर लेकर आ जाती थी।"
लक्ष्मी का जिक्र आते हैं जुग्गन भावुक हो जाते हैं, उसकी कई कहानियां हैं उनके पिटारे में। जुग्गन बताते हैं, "लखनऊ में एक जगह है आलमबाग वहां से हम अपने तांगा पर आ रहे थे। रास्ते में हमें नींद आ गयी और लक्ष्मी मुझे लेकर जा रही थी। लखनऊ की प्रसिद्ध बाजार नक्खास में पुलिस ने मेरे तांगे का पट्टा पकड़ लिया और रोक दिया और बोला तांगा चलाने वाला सो रहा है और तांगा जा रहा है। एक सीनियर अधिकारी ने बोला तांगा वाला थक गया है सो गया होगा लेकिन जानवर बहुत समझदार है अपने मालिक को घर ले जा रही जाने दो। हम और लक्ष्मी उसके बाद अपने घर आ गए।'
लक्ष्मी के बाद किसी से उनकी पटरी खूब बैठ रही है तो है राजू। राजू और जुग्गन पिछले 10 वर्षों से एक दूसरे के हमसफर हैं। "राजू घोड़ा मेरा कहना मानता है। रोजाना मैं 500-600 रूपये रोज कमाता हूँ, जिसमें से 100-125 रूपये राजू का खर्चा हो जाता है क्योंकि राजू अभी छोटे हैं कम खाते-पीते हैं। बाकी से मेरे घर का खर्च चलता है।"
लखनऊ के बारे में बताते हुए जुग्गन खान ने बताया, "पहले लखनऊ में लोगों का जो बोलने का तरीका है वो बहुत अच्छा होता था, जबसे लखनऊ में आकर बाहर के लोग बस गए हैं तबसे माहौल खराब हो गया है। लोग अमां मियाँ कहकर बात करते थे, पहले आप का चलन था सब बदल गया। बाहर से आने वाले लोग जब तांगा पर बैठते हैं उनसे हम आज भी कहते हैं कि 'मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं'।"
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