छोटी जोत वाले किसानों के लिए वरदान साबित हो रही सहफसली खेती
Divendra Singh 5 April 2018 12:33 PM GMT
समय के साथ छोटी जोत वाले किसानों की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में किसान सही जानकारी अपनाकर सहफसली विधि से खेती कर मुनाफा कमा सकता है।
प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी. दूर पट्टी ब्लॉक के धौरहरा गाँव के रामअधार शुक्ला (55 वर्ष) ने तीन बीघा में लाइन विधि से अरहर की फसल लगाई है। अरहर बोते समय उन्होंने उसी में मक्का भी बो दी थी। राम आधार बताते हैं, “पहले मैं भी सिर्फ अरहर की फसल बोता था, जिसमें उतना फायदा नहीं होता, लेकिन अब अरहर के साथ ही दूसरी फसलें भी बो देता हूं। अरहर साल भर की फसल होती है, ऐसे में हम दूसरी फसलें लगाकर फायदा कमा रहे हैं।”
छोटे और मझोले किसानों के लिए सहफसली खेती वरदान साबित हो रही है। परंपरागत फसलों के साथ इस तरह की खेती किसानों को अतिरिक्त मुनाफा दिला रही है, जिससे उनका रूझान तेजी से सहफसली खेती की तरफ बढ़ रहा है। राम अधार शुक्ला अरहर की खेत में अब प्याज लगाने की तैयारी कर रहे हैं। वो कहते हैं, “अरहर की फसल लगाते समय इतनी दूरी रखते हैं, जिसमें दूसरी फसल लगा सकते हैं। अब अरहर की खेत में प्याज लगाने की तैयारी कर रहे हैं।”
सहफसली खेती में एक फसल के पौधों को खेतों में पेड़ी की तरह उचित दूरी पर लगाया जाता है। पौधों की इस सीमित दूरी के बीच में अन्य ऐसी फसल लगाई जाती है जो लगाई गई प्रमुख फसल से पहले ही तैयार हो जाए। इसके साथ ही एक ही जमीन पर कई तरह की फसलों के लगने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी बढ़ती है।
टमाटर में रोपाई से लेकर फसल की कटाई तक बड़ी संख्या में कीटों का प्रकोप रहता है। ऐसे में किसान रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करता है, जो कि पर्यावरण और फसल दोनों के लिए नुकसानदायक होता है। ऐसे में किसान मुख्य फसल के साथ ही दूसरी फसलें लगाकर कीटों से बचाया जा सकता है।
पहले किसान अरहर के साथ ही कई दूसरी फसलें भी बोते थे, जिससे कम खेत में ही ज्यादा फायदा होता है। साथ ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है, ज्वार को अरहर के साथ लगाने से अरहर में उकठा रोग कम लगता है।डॉ. पुरुषोत्तम कुमार, वैज्ञानिक, केन्द्रीय दलहन अनुसंधान संस्थान
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मिर्च के साथ ही स्ट्राबेरी की खेती
हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले के डिंगरोता गाँव के किसान अनिल बलोठिया (35 वर्ष) मिर्च के साथ ही स्ट्राबेरी की खेती कर रहे हैं। अनिल स्ट्रॉबेरी के साथ ही मिर्च के पौधे भी लगा देते हैं। अनिल बताते हैं, “हम पहले स्ट्रॉबेरी के पौधे लगा देते हैं, जब पौधे पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं। तो उसी के साथ ही मिर्च के पौधे लगा देते हैं। स्ट्राबेरी आठ महीने की फसल होती है और मिर्च दस महीने की होती है।”
बाजरा लगाओ और सफेद मक्खी से राहत पाओ
कृषि विज्ञान केन्द्र, कटिया के कृषि डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं, “टमाटर की फसल में फल छेदक, माहू, सफेद मक्खी, और मकड़ी जैसे कीट उत्पादन तो कम करते ही हैं, साथ ही टमाटर पत्ती कर्ल वायरस जैसे को फैलने में मदद करते हैं।” वो आगे बताते हैं, “सफेद मक्खी की समस्या को देखते हुए हम किसानों को सलाह देते हैं कि खेत की मेड़ पर सघन रूप से बाजरा या ज्वार या मक्का की बुआई लगभग 15 इंच की चौड़ी लाइन लगाने से सफ़ेद मक्खी से बहुत हद तक निजात मिल जाती है।”
गन्ने के साथ लगा सकते हैं दूसरी फसलें
अब आलू, लाही, मटर आदि मेड़ों के ऊपर लगाते हैं तथा गन्ना नालियों में बोया जाता है। लाइन से लाइन गन्ने की दूरी आठ फीट की रखते है और पौधे से पौधे की दूरी दो, चार या 8 फीट रखते हैं। आलू, चना, मटर, मसूर, अलसी की गन्ने के साथ बुवाई कर सकते हैं।
कीट आकर्षित फसल लगाने के लाभ
यह मुख्य फसल की गुणवत्ता को बनाए रखती हैं। यह मृदा स्वास्थ्य व पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखती हैं। फसल के उत्पादकता को बढ़ाती हैं। जैव विविधता को बढ़ाने मे सहायक होती हैं। फसलों के मित्र कीटों को आकर्षित करती हैं। हानिकारक कीटों के प्रकोप से मुख्य फसल की रक्षा करती हैं। कीटनाशी के अधिक मात्रा में उपयोग को कम करती है।
ऐसे होगी मित्र कीटों की बढ़त
गेंदा के पौधों को टमाटर और दूसरी फसलों के साथ लगाने से मित्र कीट की वृद्धि होती है, साथ ही शत्रु कीट भी गेंदा के फूलों के तरफ आकर्षित हो जाते हैं, जो टमाटर को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। ऐसे में एक तो टमाटर और फूलों की खेती से दोहरी कमाई हो जाती है तो दूसरा गेंदे की वजह से फसलों को फायदा पहुंचाने वाले मित्र कीटों की भी वृद्धि होती है।
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