इनसे मिलिए, ये पशु-पक्षियों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं
गाँव कनेक्शन 15 March 2018 4:47 PM GMT

'द नीलेश मिसरा शो' का तीसरा एपिसोड है 'ये टेढ़े लोग'। देश के सबसे चहेते स्टोरीटेलर नीलेश मिसरा इस एपिसोड में आपको कुछ पागल, टेढ़े, जिद्दी, नासमझ, अजीब लोगों से मिलवा रहे हैं। इस तरह के लोगों को पहचानना ज़रूरी है... क्यूंकि .. हमारे हीरो हमारे आसपास रहते हैं…
जिस उम्र में लड़के लड़कियों को ताकने की कला, उसे 'बर्ड वाचिंग' नाम देकर सीख रहे होते हैं...उस उम्र में दिल्ली के अभिनव श्रेयान बर्ड्स को बचाने का काम करना शुरू कर चुके थे। पक्षी ही क्यों, वो किसी भी जानवर को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अलग-अलग एनजीओ के लिए काम करके अपनी जीविका के रूप में जो कमाते हैं, इसी जुनून को जिंदा रखने के लिए खर्च देते हैं। उन्होंने एक संस्थान बनाया है, 'फोना पुलिस', जो जानवरों की रक्षा के लिए जब पुकारा जाता है पहुंच जाती है। पता नहीं क्या पड़ी है इनको ये सब करने की।
अभिनव श्रेयान कहते हैं "लाइफ़ इस टू शॉर्ट, हमारे पास टाइम नहीं है कि रेटायरमेंट के बाद कूछ करेंगे। या अपने इन इग्ज़ैम्ज़ के बाद कुछ करेंगें। अगर कुछ करना है तो आज ही अपनी लाइफ़ डेडिकेट करिये किसी गॉस के लिए तभी ये जगह धरती बेहतर हो सकती है रखने के लिए।
'सेविंग सिंगल लाइफ़ ऐट आ टाइम' अगर हमें एक भी जानवर के बारे में जानकारी मिलती है की ऐक्सिडेंट हो गया है या कहीं फंस गया है तो उसको बचाने की कोशिश करी जाती है। काइटफ़्लाइंग से बर्ड्ज़ कट जाती हैं उनका रोड ऐक्सिडेंट हो जाता है कहीं फंस जाते हैं वहां से उनको निकालकर सेफ़ जगह पर पहुंचा देते हैं। इसकी वजह से बहुत सारे लोग हमसे जुड़ते हैं क्योंकि हम आन ग्राउंड प्रेज़ेंट होते हैं लोगों के बीच में होते हैं शहर में गांव में जहां भी हमें लोगों के बीच में होते हैं लोग अपने साथ जुड़ाव महसूस कर सकते हैं।"
अभिनव आगे कहते हैं "हमने कहीं भी किसी से प्रोफ़ेशनल ट्रेनिंग नहीं ली हुई है। पर आज की डेट में एक्स्पर्ट हैं। हमारे पास जो पर्टिक्युलर सिचुएशन को हैंडल कर पाते हैं। ऐक्चूअली हमारे पास कोई एंबुलेंस नहीं है। बाइक है मेरी कोई इक्विप्मेंट नहीं है जैसे की हम आन आ लोकेशन पहुंचते हैं एक विल होती है कि हमें वो चीज़ करनी है उस चीज़ साथ हम वहां पहुंचते हैं। लोगों को हम यही बताना चाहते हैं कि इक्स्क्यूज़ तो बहुत हैं काम ना करने के, लेकिन अगर करना चाहे तो बिना किसी चीज़ के बिना किसी इक्विप्मेंट के वहां जाकर कर सकता है।"
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ये अजीब लोग कितनी छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़ते हैं रोज... और रोज कितने बड़े स्तर पर रोज दुनिया को बदलते हैं...अपने शहर, अपने गाँव, अपने मोहल्ले, अपने पड़ोस में ही लोगों कि जिंदगियां बेहतर करते हैं। लेकिन दुनिया तो ऐसे लोगों को अक्सर नार्मल नहीं समझती है।
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