आपने महिला डॉक्टर, इंजीनियर के बारे में सुना होगा, एक हैंडपंप मैकेनिक से भी मिलिए
"अब तो जमाना बहुत बदल गया है लेकिन आज से 20 साल पहले स्तिथि बहुत खराब थी, महिलाओं का घर से निकलना ही मना था, उस समय नल मैकेनिक बनना पुरुषों को लगता था कि हमने उनके मुंह पर तमाचा मार दिया है।" शिवकलिया देवी, नल मैकेनिक
Neetu Singh 26 Dec 2018 7:45 AM GMT

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
चित्रकूट। जब नल मैकेनिक का नाम सुनते हैं तो हमारे जेहन में तस्वीर एक पुरुष की उभर कर आती हैं, क्योंकि औजार हथौड़े चलाना पुरुषों का काम माना जाता है। इस धारणा को तोड़ते हुए चित्रकूट जिले की शिवकलिया देवी ने आज से 20 वर्ष पहले जब अपने हाथों में औजार और हथौड़े उठाये तो लोग हंसते थे और कहते थे, 'नल बनाना इनके बस का नहीं।'
इस विचारधारा को तोड़ते हुए शिवकलिया आज रामनगर क्षेत्र में हजारों नल बनाने वाली पहली मैकेनिक महिला बन गयी हैं। पुरुषों का काम महिलाएं भी कर सकती हैं ये मौका उन्हें महिला समाख्या के द्वारा मिला है।
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चित्रकूट जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर मानिकपुर ब्लाक के रैपुरा गाँव की रहने वाली शिवकलिया देवी ज्येष्ठ की दोपहर और गर्मी नहीं देखती। आस पास क्षेत्र में जब भी किसी गाँव में कोई नल खराब होता, हर कोई शिवकलिया को ही ले जाता है। गर्मियों के दिनों में कंधे पर बैग लेकर जाने वाली शिवकलिया की नल बनाने के बाद जो आमदनी होती है उसी से पति के देहांत के 17 वर्षों से घर का खर्चा चल रहा है।
शिवकलिया बताती हैं, "अब तो जमाना बहुत बदल गया है लेकिन आज से 20 साल पहले स्तिथि बहुत खराब थी, महिलाओं का घर से निकलना ही मना था, उस समय नल मैकेनिक बनना पुरुषों को लगता था कि हमने उनके मुंह पर तमाचा मार दिया है।"
उनका आगे कहना हैं, "सब यही कहते थे अब इन्हें कोई और काम नहीं बचा है जो नल मैकेनिक बनाने चल दी हैं, लेकिन महिला समाख्या से जुड़कर हमने ठान लिया था चाहें कुछ हो जाए पुरुषों की हंसी तो एक दिन बंद करानी ही है, आज वही लोग नल ठीक करने के लिए हमको ही याद करते हैं।"
चित्रकूट जिले में महिला समाख्या की शुरुवात वर्ष 1990 में हुई थी। जिले में महिला समाख्या की जिला सम्यवक किरन लता का कहना है, "नल मैकेनिक का काम ग्रामीण महिलाओं के लिए एक मिसाल की तरह साबित हुआ है , क्योंकि समाज में ये मान्यता बनी हुई है जो मेहनत का काम है उसे पुरुष ही कर सकते हैं ये महिलाओं के बस का नहीं है, इन महिलाओं ने नल मैकेनिक बनकर ये साबित कर दिया है कि अगर उन्हें मौका मिले तो वो कोई भी काम कर सकती हैं।"
वो आगे बताती हैं, "महिला समाख्या ऐसी प्रतिभाशाली महिलाओं को एक मंच देने का काम करती है जिससे समाज में पुरुष और महिलाओं के बीच जो बेड़ियाँ बनी हुई हैं वो टूटें और महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिल सके।"
12 बरस में हो गयी थी शादी
शिवकलिया की शादी 12 बरस में हो गयी थी, 15 वर्ष में ससुराल गौना हो गया। आज से 17 साल पहले पति का देहांत हो गया था, दो बेटे और तीन बेटियां हैं इनकी। पति के देहांत के बाद परिवार का खर्चा चलना बहुत मुश्किल हो गया था उस समय शिवकलिया के कन्धों पर ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी।
शिवकलिया बताती हैं, "कई जिलों में जाकर मैंने ट्रेनिंग ली इसके बाद अपना काम शुरू किया, जब नल बनाने का पूरा काम हम सीख गए तो कई महिलाओं को कई जिलों में जाकर महिलाओं को नल मैकेनिक बनाने की ट्रेनिग भी दी, एक नल बनाने में 300 रुपए मिल जाते हैं, गर्मियों में काम ज्यादा मिलता है, कई बार एक दिन में तीन से चार नल भी ठीक करने को मिल जाता है, गर्मियों में ज्यादा कमाई होती है इसी से पूरे परिवार का खर्चा चलता है।"
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