बदलती खेती: लीज पर 200 बीघे जमीन, साढ़े 4 लाख की कमाई और 50 लोगों को रोजगार
Amit 6 Nov 2018 7:41 AM GMT
आम तौर पर कहा जाता है कि भारत में खेती घाटे का सौदा है। लेकिन बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश के युवा किसान दुर्गा प्रसाद सैनी इस कथन से सहमत नहीं हैं। दुर्गा प्रसाद कहते हैं खेती उन्हीं के लिए घाटे का सौदा है जिनके पास सही जानकारी नहीं है। दुर्गा प्रसाद के पास अपनी जमीन नहीं है लेकिन वह 200 बीघे में लीज पर खेती करते हैं। सालाना लगभग चार से साढ़े चार लाख रुपये कमाते हैं लेकिन इससे भी बढ़कर बात यह कि वह कम से कम 50 लोगों को रोजगार मुहैया कराने का जरिया बने हुए हैं।
दुर्गा प्रसाद गांव बिलसूरी के रहने वाले हैं। पिता की असमय मृत्यु के बाद परिवार चलाने की जिम्मेदारी उन्हीं पर आ गई। इस वजह से कक्षा 10 के बाद पढ़ाई भी छूट गई। दुर्गा बचपन में अपने मामा के यहां रहते थे, बाद में यहीं से उन्होंने खेती किसानी सीखी। हालांकि, बीच में कुछ समय उन्होंने मेरठ में कपड़े का कारोबार भी किया, लेकिन इसमें उन्हें डेढ़-दो लाख रूपयों का घाटा हो गया। इस तरह खेती की उनकी शुरुआत मजबूरी में हुई। लेकिन दुर्गा आज खुश हैं कि उन्होंने सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर अपने जैसे किसानों का एक एफपीओ (फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन) बनाया।
दुर्गा प्रसाद की सफलता की यह कहानी केंद्र सरकार द्वारा 2014 में शुरु की गई दिल्ली किसान मंडी के प्रयोग पर आधारित है। केंद्र सरकार ने किसानों और खरीददारों के बीच से बिचौलियों को हटा कर किसानों को लाभ पहुंचाने और उपभोक्ताओं को वाजिब दाम पर उत्पाद मुहैया कराने के लिए यह प्रयोग किया था। इसका संचालन लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (एसएफएसी) के अधीन था।
एसएफएसी को देश भर में किसानों को जोड़कर एफपीओ बनाने के लिए प्रोत्साहित करना था। इसके बाद इन एफपीओ के उत्पादों को दिल्ली किसान मंडी के जरिए ग्राहक उपलब्ध कराने थे। दिल्ली किसान मंडी के लिए दिल्ली के नरेला में जगह का चुनाव भी किया गया लेकिन फाइलों में मामला अटक गया। इसके बाद भी दिल्ली किसान मंडी किसानों के समूह और खरीददारों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। दुर्गा प्रसाद एसएफसी के प्रोत्साहन से ही आगे बढ़े हैं।
दुर्गा ने पिलखनवानी गांव में संयुक्त एकता सब्जी उत्पादक समूह नाम से 14 किसानों का सहकारी समूह या एफपीओ बनाया। वह अपनी जमीन के अधिकतर इलाके में गाजर, पत्ता गोभी समेत अलग-अलग सब्जियों की खेती करते हैं। उनके समूह के बाकी 13 किसान आलू उत्पादक हैं।
दिल्ली किसान मंडी के माध्यम से इनके एफपीओ का संपर्क बिग बाजार, स्पेंसर, बिग बास्केट जैसे बड़े खरीददारों से हुआ है। यहां उन्हें अपनी उपज के सही दाम मिल रहे हैं। मसलन, जो गाजर स्थानीय सिंकदराबाद मंडी में साढे दस से ग्यारह रूपये प्रति किलो बिक रही थी वह अब 12 से 15 रूपये प्रति किलो की दर पर जा रही है। अब इस किसान समूह को ना केवल अच्छी कीमत मिल रही है बल्कि उन्हें व्यापारियों की अनुचित मांगों से समझौता नहीं करना पड़ता है, मसलन, पहले व्यापारी आधे माल का भाव कुछ और शेष आधे का कुछ और लगाते थे।
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हालांकि दुर्गा को हर रोज 12-14 घंटे मेहनत करनी पड़ती है। सुबह सवेरे वह गाजरों की धुलाई-छंटाई करके उन्हें खेतों से 55 किलोमीटर दूर दिल्ली के कलेक्शन सेंटरों में ले जाते हैं। लेकिन उन्हें और उनके साथियों को खुशी है कि वे अपनी मर्जी के मालिक हैं, किसी की चाकरी नहीं करते, उन्हें वक्त-जरुरत पर छुट्टी के लिए किसी के सामने गिड़गिड़ाना नहीं पड़ता, और अगर खेत में पसीना बहाते हैं तो संतोष रहता है कि इसका लाभ भी उन्हीं को मिलेगा।
दुर्गा को खुशी है कि उन्हें सरकार की इस योजना की जानकारी हुई लेकिन उन्हें अफसोस भी है कि सरकार की ऐसी और इसी तरह की दूसरी योजनाओं के बारे में बहुत ज्यादा चर्चा नहीं होती। सरकार भी कुछ खास प्रचार नहीं करती।
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