उत्तराखंड का एक ऐसा गाँव, जिसे अब 'हैंडीक्राफ्ट विलेज' के नाम से जानते हैं लोग

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नेहा श्रीवास्तव

नैनीताल (उत्तराखंड)। जुनून आपने बहुत देखा होगा लेकिन एक लड़का जिसने अपनी दिल्ली जैसे शहर में नौकरी छोड़ देता है और निकल पड़ता है नैनीताल के एक गाँव की तरफ़। वहां के पलायन की समस्या को रोकने, महिलाओं के हुनर को पहचान दिलाने के लिए उसने फ़ैब्रिक ज्वैलरी बनाने का काम शुरू किया है।

नैनीताल के छोटे से गाँव तल्ला गेठिया जिसकी सूरत सुधारने का गौरव ने संकल्प लिया है। उत्तराखंड में लोगों का पलायन एक बहुत बड़ी समस्या है, बहुत हद तक गौरव के द्वारा शुरू किये गए इस मिशन की वजह से लोगों में एक आत्मसम्मान जगा है और उनको ये विश्वास हुआ है की वो गाँव में रह कर भी अपनी आजीविका के चला सकते हैं।


गौरव बताते हैं, "इस तरह का सामाजिक काम दो तरह से होता है। पहला, आप सरकारी मदद लेकर काम को आगे बढ़ाओ और दूसरा, कि अपने काम को इतना बड़ा कर लो कि मदद के लिए खुद लोगों के हाथ आगे बढने लगे।''

उद्योगिनी की शुरूआत

बड़े शहर में रह कर गाँव का सपना देखना गौरव जिन्होंने बीकॉम की पढाई के बाद दिल्ली जैसे शहर में काम किया लेकिन मन नहीं लगा फिर उन्होंने अपना रुख़ उत्तराखण्ड के नैनीताल के तल्ला गेठिया की तरफ़ मोड़ा गौरव इसके बारे में पहले यानी 2011 से सोच रहे थे, लेकिन सोच को ज़मीन पर उतरने में वक़्त लगता है 2014 में इसकी शुरुआत हुई महिलाएं पहले इसको लेकर अचकचाईं फिर गौरव ने कर्तव्य कर्मा के बारे में बताया समझाया की आखिर काम क्या करना है? उन्होंने बताया की अभी तक


विदेशों में भी घूम रहा 'पहाड़ी हाट '

महिलाओं द्वारा बनाये जा रहे फ़ैब्रिक ज्वैलरी का नाम विदेशों में भी अपनी पहुंच बना रहा तल्ला गेठिया में ही पायलट बाबा आश्रम में विदेशी सैलानियों का तांता लगा रहता है विदेशियों को फैब्रिक आर्ट के बारे में पता चलते ही वहां से नीचे उतर कर वो फ़ैब्रिक हाउस का जायज़ा लेने पहुँचते हैं। इन औरतों के हाथों का हुनर न्यूयॉर्क की वेडिंगप्लानर की कंपनी को भी अपनी तरफ खींच लाया है, अब वहां की कंपनी हेड भी विजीट करने पर आने को मज़बूर हैं। यहाँ तक की कनाडा की एक कंपनी भी इनवेस्ट करने को तैयार है। मुंबई, पुणे, फ़रीदाबाद और गुड़गांव में भी इनका सामान जाता रहा है।


बीएचयू जैसे बड़े संस्थानों से भी बच्चे आना चाहते हैं रिसर्च के लिए

गौरव बताते हैं कि बड़े बड़े संस्थानों के बच्चे नैनीताल के इस छोटे से गाँव में आ कर हमारे साथ काम सीखना चाहते हैं। बीएचयू से लेकर धीरू भाई अंबानी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्राफ्ट एंड डिज़ाइन जयपुर से भी बच्चे बोल चुके हैं रिसर्च के लिए।



पलायन की समस्या का निदान

उत्तराखंड की अभी तक कि सबसे बड़ी समस्या पलायन की है। लोगों के पास काम नहीं होने के कारण लोग शहरों की तरफ़ रुख़ कर रहें हैं.

अधिकतर गाँव की हालत ये है की या तो घरों में ताले लटके हैं या सिर्फ बुजुर्ग बचे हैं। तल्ला गेठिया की स्थिति भी कुछ ऐसी ही हो रही थी फिर कर्तव्य कर्मा की शुरुआत हुयी महिलाएं जुड़ीं रोज़गार के साधन प्राप्त हुए जिससे पलायन की समस्या कम हुई है।

सरकारी मदद के बिना चल रहा काम

अभी तक हमें कोई सरकारी मदद नहीं मिली है। गौरव जो एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं उनकी आय भी बहुत ज़्यादा नहीं है लेकिन वो अभी तक अपने बूते ही सारा काम संभाल रहें हैं। गौरव का कहना है '' इस तरह का सामाजिक काम दो तरह से होता है। पहला, आप सरकारी मदद लेकर काम को आगे बढ़ाओ और दूसरा, कि अपने काम को इतना बड़ा कर लो कि मदद के लिए खुद लोगों के हाथ आगे बढने लगे।'' गौरव ने दूसरा रास्ता अपनाया है।



और परिवार जोड़ने का लक्ष्य

गौरव ने अभी तक 40 परिवारों को जोड़ा है उन्होंने 1000 परिवार जोड़ने का संकल्प लिया है। इतने बड़े कॉन्सेप्ट को लेकर चलना बहुत बड़ी बात है। वो भी ऐसे गाँव में जहाँ अधिकतर लोग पलायन को ज़्यादा तवज्ज़ो दे रहें हैं। अब सवाल ये उठता है की क्या ये संकल्प पूरा हो पायेगा ? क्या गौरव पलायन की स्थिति का समाधान कर पाएंगे ?

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