आर्थिक तंगी और खदान की धूल के बीच रहने को मजबूर राष्ट्रीय धावक केएम चंदा का परिवार

घर में न तो पानी की सप्लाई और न ही आज तक बिजली पहुंच पायी, ऐसे में एथलीट केएम चंदा के संघर्षों की कल्पना उनके परिवार की आर्थिक हालत देखकर की जा सकती है। पास ही के पत्थर के खदानों की धूल पूरे गाँव में फैली हुई है, लेकिन फिर भी केएम चंदा अपने माता पिता का नाम रौशन कर रही हैं।

Brijendra DubeyBrijendra Dubey   30 Oct 2021 10:10 AM GMT

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सोनपुर (मिर्जापुर), उत्तर प्रदेश। दिल्ली के प्रहलादपुर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में ट्रैक फील्ड जहां पर राष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियन केएम चंदा पसीना बहाती हैं, वहां से 800 किलोमीटर से अधिक दूर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के सोनपुर गांव में रहने वाले उनके परिवार के सदस्यों के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं।

राष्ट्रीय स्तर के एथलेटिक्स टूर्नामेंट में जीते गए कई पुरस्कारों के साथ ही चंदा ने हाल ही में मार्च में राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित 2021 फेडरेशन कप सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था।

बिजली या नल के पानी की आपूर्ति उपलब्ध नहीं होने के कारण, चंदा का घर सोनपुर पहाड़ी नामक एक बस्ती में है, जिसमें पीने के पानी के लिए एक हैंडपंप पर 15 परिवार निर्भर हैं। यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर है और यहां बिजली की आपूर्ति भी नहीं है। रात में, जब अंधेरा होता है, तो डीजल की बोतल में डूबी एक तेल की बाती चंदा द्वारा जीती गई गोल्डन ट्राफियों को रोशन करती है।

केएम चंदा के माता-पिता उनके द्वारा जीते गए पुरस्कारों के साथ। सभी तस्वीरें: बृजेंद्र दुबे

गांव के पास ही पत्थर की खदान से निकलने वाली धूल के लगातार संपर्क में आने से लोग बीमार हो रहे हैं और इससे इससे चंदा के पिता की आजीविका चली गई है।

"हम कोई काम करने लायक नहीं रहे। सांस फूलता है। ज़मीन बेचे हैं, उसी से खा रहे हैं, बच्चों को खिला रहे हैं, "सत्यनारायण प्रजापति, एथलीट के गर्वित पिता, जो टीबी से पीड़ित हैं, ने गांव कनेक्शन को बताया।

पिता की बीमारी बनी रहती है चिंता

सत्यनारायण की बीमारी और काम करने में असमर्थता ने उनकी पत्नी की जिम्मेदारियों को बढ़ा दिया है।

मेरी तीन बेटियां हैं- किरण (16), सीमा (18) और चंदा (20)। मेरा एक बेटा मृत्युंजय (22) भी है जो आईटीआई (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) में पढ़ रहा है। मेरे परिवार की मदद के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है। मुझे अपने पति की भी देखभाल करनी है, उनकी दवाएं लेनी हैं और उन्हें अस्पतालों में ले जाना है। मैं कभी-कभी खेत में मजदूरी करती हूं जिससे मजदूरी मिल जाती है, "38 वर्षीय हीरामणि देवी ने गांव कनेक्शन को बताया।

सत्यनारायण की बीमारी ने उनकी पत्नी की जिम्मेदारियों को बढ़ा दिया है।

"मेरी बेटियां शादी की उम्र तक पहुंच रही हैं। मुझे उम्मीद है कि सरकार किसी तरह हमारी मदद करेगी। कम से कम हमारे घर में सुरक्षित पीने का पानी उपलब्ध कराएं। मेरे पति की दवाएं महंगी हैं, हमारे पास ज्यादा पैसा नहीं बचा है और कमाई का कोई जरिया नहीं है। मैंने सुना है कि चंदा राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में जीत रही है लेकिन हमारी हालत वही है।

पिछले तीन साल से चंदा के खान-पान और ट्रेनिंग का खर्च उनके कोच कुलवीर सिंह उठा रहे हैं।

"मैं एक एथलीट के रूप में चंदा की यात्रा में उनका समर्थन करता रहा हूं। यह कोई मुद्दा नहीं है। मुझे उस पर गर्व है और वह मेरी बेटी की तरह है। उसमें काफी संभावनाएं हैं और वह खेलों में बहुत अच्छा करेगी, मुझे विश्वास है, "सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया।

'पैसों के लिए लीज पर बेची जमीन'

चंदा के पिता ने गांव कनेक्शन को बताया कि उनकी चार बीघा (करीब एक हेक्टेयर) जमीन उनके और उनके तीन भाइयों के संयुक्त स्वामित्व में है। "हम सभी नहीं घर चलाने के लिए जमीन को पट्टे पर बेचने का फैसला किया था। मेरे दवाई के खर्चे बढ़ रहे थे। इसलिए, जमीन बेचने के बाद मिले पैसों से घर चला रहे हैं , "उन्होंने कहा।

चंदा की मां हीरामणि ने अपने घर के खर्चे की परेशानी को बढ़ाते हुए कहा कि खाना बनाने के लिए ईंधन की व्यवस्था करना भी एक चुनौती है।

हीरामणि देवी

"मुझे उज्ज्वला योजना में गैस सिलेंडर मिला। लेकिन इसे भरने के लिए पैसे किसके पास हैं। जब मुझे यह मिला तो रिफिल की कीमत लगभग पांच सौ रुपये थी, लेकिन अब यह लगभग हजार-ग्यारह सौ रुपये है। हम खाना बनाने के लिए गोबर से बने कंडे का इस्तेमाल करते हैं, "उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया।

ग्रामीणों ने की धूल, बिजली आपूर्ति न होने की शिकायत

इस बीच, अन्य ग्रामीणों ने खनन का मुद्दा उठाया जिससे उनके जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

"पत्थर खनन के कारण हमें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। स्टोन क्रेशर मशीन दिन भर पत्थर काटती है। हमारा पूरा गांव धूल की चादर से ढका है। यह हर जगह है, हमारे कपड़ों में, हमारे घरों के अंदर, यहां तक ​​कि जब हम सुबह उठते हैं तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने हमारे चेहरे पर कुछ पाउडर लगाया है, "बुद्धि राम, गांव के निवासी ने गांव कनेक्शन को बताया।

बुद्धि राम

उन्होंने कहा, "हमने इसके बारे में जिला अधिकारियों से शिकायत की है, लेकिन हमें केवल यह सुनने को मिलता है कि जिस क्षेत्र में पत्थर की खदानें हैं, वहां धूल प्राकृतिक है।"

चंदा के चचेरे भाई विनोद कुमार प्रजापति ने गांव में बिजली न होने की शिकायत की।

"हमारे पास केवल एक ट्रांसफॉर्मर है जिससे बिजली आती है, सालों से बेकार है लेकिन बिजली का कोई पोल नहीं लगाया गया है। बिजली हम तक कैसे और कब पहुंचेगी, यह देखना बाकी है, "25 वर्षीय ने कहा।

उन्होंने यह भी कहा कि पत्थरों को तोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ब्लास्टिंग निवासियों के जीवन के लिए भी खतरा है।

विनोद कुमार प्रजापति

"यह जोखिम भरा है। ब्लास्टिंग कम से कम चालीस से पचास मीटर की दूरी पर की जानी चाहिए लेकिन यहां यह हमारे घरों के करीब किया जा रहा है। हमारे मवेशी अक्सर ब्लास्टिंग साइट के पास होते हैं। इससे दुर्घटनाएं हो सकती हैं, "प्रजापति ने गांव कनेक्शन को बताया।

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अनुवाद: संतोष कुमार


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