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Business in agriculture sector: जापान में नौकरी छोड़ चंडीगढ़ के युवा ने गुड़ में वैल्यू एडिशन कर बना दी गुड़ कैंडी

#Chandigarh

चड़ीगढ़। पिछले कई वर्षों से लगातार एक शब्द सुनने को मिल रहा है कि किसानों को खेती से पैसा कमाना है तो वैल्यू एडिशन (मूल्य संवर्धन) करना होगा। और ये सच भी है, जिसने भी ये काम किया, उसने मुनाफा कमाया है।

चंडीगढ़ में रहने वाले एक युवा ने अपने कुछ किसानों के साथ मिलकर गन्ने में वैल्यू एडिशन किया है, देश में अपनी तरह की खास गुड़ की टॉफी बनाकर। उन्होंने अपने इस उत्पाद को जैग्गिक कैंडी नाम दिया है। गुड़ से कैंडी बनाने के सपने को पूरा करने के लिए जापान में एक बड़ी मार्केटिंग संस्था में कार्यरत भूपेश सैनी नौकरी छोड़कर अपने घर लौटे और 2 साल की मेहनत के बाद ये जैग्गिक कैंडी की बनाकर तैयार कर दी।

“मैंने 16 साल तक इंडिया समेत कई देशों में मार्केट रिसर्च का काम किया, हमारा काम था ब्रांड बनाना। आखिरी नौकरी जापान में थी, फिर एक दिन लगा अब बहुत हुआ। बड़े ब्रांड को और बड़ा बनाने में फायदा नहीं, अपनी कम्युनिटी के लिए कुछ करना चाहिए। मार्केटिंग किसानों की बड़ी समस्या है। तो मैंने उन्हीं के बीच कुछ करने की सोची, “भूपेश, अपनी पंचकुला के एक छोटे से दफ्तर में गुड से कैंडी बनाने की कहानी सुनाते हैं।

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भूपेश के मुताबिक वो जब भी छुट्टियों में घर आते, देखते कि घर में सब गुड़ खाते थे, मुझे भी पसंद है, लेकिन उसके ढेले इतने बड़े होते हैं, जबकि खाना सबको छोटा सा पीस होता है, तो कई बार लोग तोड़ने-काटने की असुविधा से बचने के लिए गुड़ नहीं खाते, मैंने इसी समस्या का हल निकाला और कैंडी बनाने का काम शुरु किया।

“शहर हो या कस्बा कैंडी भी काफी लोग खाते हैं, लेकिन उनसे कोई फायदा नहीं होता, जबकि हमारा गुड़ तो कितना स्वादिष्ट और पौष्टिकता भरा है। हमने तय किया कि कुछ ऐसी चीज बनाई जाए,जिससे खाने वाले, उगाने वाले और बेचने वाले सबको फायदा होगा। लेकिन जब ये समस्या कि गुड़ की कैंडी अब तक बनी क्यों नहीं, या ऐसा हो नहीं सकता। बाद में किसानों से ही पता चला अभी किसी ने ऐसा किया नहीं था।” भूपेश बताते हैं।

भूपेश को गुड़ से खूबसूरत पैकिंग में रखने लायक कैंडी बनाने में 2 साल लग गए। उनके मुताबिक क्योंकि इससे पहले ऐसी मशीन नहीं थी।

भूपेश एक गुड़ की कैंडी को खोलकर दिखाते हुए उसकी खासियत बताते हैं, “हमारी कैंडी की सबसे खास बात ये है कि इसमें फैक्ट्री जैसा कुछ नहीं है। सब कुछ किसानों के साथ किया है। किसान का वही कोल्हू है जहां पहले गुड़ बनता था। बस हमने थोड़ा फार्मेट बदला, तकनीकी दी। इसके साथ ही सबसे जरूर थी कि जहां ये काम हो रहा है उसे ढका, बनाने वालों को दस्ताने और मास्क दिए। साफ-सफाई का ध्यान रखा।”

सौरभ कैंडी बनाने की प्रोसेज में सिर्फ मार्केटिंग करते हैं, बाकि का काम उनके दो सहयोगी किसान करते हैं। हमें खेती नहीं आती और हमें किसानों को ही आगे बढ़ाना तो हमने दो किसानों से संपर्क किया, जिनके घरों पर ये काम होता है। पंजाब में होशियारपुर नीला नलोया गांव के प्रिंसपिल जसवंत सिंह जी, जो पिछले कई दशकों से जैविक खेती कर रहे थे, अब वो हमारे सहयोगी हैं। दूसरे यूपी में सहारनपुर का एक यंग किसान है, जो केमिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़कर खेती कर रहा है। हम चाहते हैं हमारे साथ और किसान जुड़े वो कैंडी बनाएं और हम उसे बेचे, उन्हें बनाना आता है और हमें बेचना।

3 ग्राम गुड़ की कैंडी अमेजान समेत कई साइटों के माध्यम भारत समेत कई देशों में बेची जा रही है। जिसकी कीमत दो रुपए है। फिलहाल जागरिक चार फ्लेवर (स्वाद) मोरिंगा गुड़ कैंडी, अदरक गुड़ कैंडी, सौंफ गुड़ कैंडी और सिपंल गुड़ कैंडी। इसके साथ ही सूखा गुड़ भी पाउडर के रुप में बेचा जा रहा है। भूपेश के मुताबिक एक कुंतल गन्ने से 3 हजार के आसपास कैंडी बनती हैं।

गुड़ के इस वैल्यू एडिशन और भूपेश के काम के बारे में बात करने पर पंजाब समेत कई राज्यों में किसानों के बीच काम कर रहे किसान संचार के निदेशक और प्रयोगधर्मी किसानों की खोज के लिए शोध यात्राएं निकालने वाले कमलजीत कहते हैं, “हमारे बच्चे जो टाफी खाते हैं वो शुक्रोज से बनी होती हैं, जो उनकी सेहत को नुकसान पहुंचाती है। अगर बच्चे किसी भी रुप में गुड़ खाएंगे तो उन्हें आयरन कैल्शियम की गोलियां नहीं खानी पड़ेगी। गुड सेहत के लिए इतना जरुरी होता है। भूपेश ने किसानों को एक राह दिखाई है। अगर ग्लोबल मार्केट से टक्कर लेनी है तो किसानों को ऐसे ही कदम उठाने होंगे। 

ज्यादा जानकारी के लिए कृपया उनकी वेबसाइट पर जाएं… https://jaggic.com/

पंजाब में होशियारपुर के किसान जिनके साथ मिलकर भूपेश सैनी ने उन्हीं के कोल्हू पर बनाई गुड़ कैंडी।  

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