इन महिलाओं के जीवन का सहारा बना चरखा

Bheem kumarBheem kumar   7 March 2019 1:10 PM GMT

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सोनभद्र (उत्तर प्रदेश)। सोनभद्र की वो महिलाएं जो अभी तक अपने घरों में चूल्हे चौके का काम करती थीं, अब चरखा चलाकर अपने लिए कमाई कर रही हैं। ये महिलाएं घर का काम निपटाने के बाद चरखे पर काम करती औंर और रोजाना 100-150 रुपए कुछ ही घंटों में कमा लेती हैं।


उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती और बदहाल जिले सोनभद्र का बड़ा भाग एक पहाड़ी और दुर्गम है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस जिले के ग्रामीण इलाके गरीबी के सताए हैं।

जिला मुख्यालय राबर्टगंज से 70 किमी दूर दुद्धी कस्बे में बनवासी सेवा आश्रम के छात्रावास परिसर में इस समय 20 महिलाओं को रोजगार का जरिया मिला है। ये महिलाएं खाली समय में चरखे से धागा निकलाने का काम करती हैं।

आश्रम में चरखे से संबंधित कार्य देखने वाले बभनी निवासी हरिप्रसाद पिछले 40 वर्षों से संस्थान से जुड़े हैं। उनके मुताबिक वर्तमान में 20 महिलाओं को यहां रोजगार दिया गया है। "एक महिला एक दिन में करीब 500 ग्राम धागा निकालती है, जिसकी मजदूरी लगभग 100 रुपये होती है। जबकि इन्हें आश्रम की तरफ से 12 फीसदी कल्याण कोष और धागे पर 10 फीसदी छूट दी जाती है।" हरिप्रसाद बताते हैं।

इन महिलाओं के काते गए धागे से संस्था में ही पैंट, शर्ट, साड़ी, गमछा, लुंगी बनाई जाती हैं। जबकि संस्था के दूसरे सेंटर में सिल्क का भी काम होता है। यहां तैयार उत्पादों को बीजपुर, बभनी, खैराही, रेनुकूट, गोबिंदपुर (सोनभद्र) के जरिए बिक्री होती है। जबकि कुछ उत्पाद दूसरे राज्यों को भी भेजे जाते हैं।

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चरखा चलाने वाली जाबर गांव निवासी रजवंती देवी बताती हैं, "हम छः माह से चरखा चला रहे हैं। घर मे खाली समय रहा करता था, इसलिए चरखा चला कर कमाई भी कर लेते हैं और समय भी बित जाता है।" रजवंती के मुताबिक ज्यादा देरतक काम किया तो एक किलो धागा निकाल लेते हैं तो 200 रुपए भी मिल जाते हैं।

  

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