गाँव कैफे में विशेषज्ञों ने बताया क्या लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ने से कम होंगे बाल विवाह?

भारत में आज भी बाल विवाह एक गंभीर मुद्दा है, हर साल न जाने कितनी बच्चियों के खेलने की उम्र में हाथ पीले कर दिए जाते हैं। कुछ महीनों पहले सरकार ने लड़कियों की उम्र को 18 वर्ष से 21 साल कर दिया है, ऐस में क्या अब बाल विवाह पर रोक लगेगी?

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दुनिया भर में सबसे अधिक बाल विवाह भारत में ही होते हैं, ऐसे में जब सरकार ने महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के लिए कानून का बिल पेश किया है तो क्या इससे बाल विवाह पर रोग लग पाएगी?

गाँव कैफे के इस स्पेशल एपीसोड में बाल विवाह के कारण, विवाह की बढ़ाई गई और कैसे लड़कियों को इस दलदल से निकाल सकते हैं? जैसे कई मुद्दों पर देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी।

बाल विवाह से पीड़ित हर तीसरी लड़की भारत से होती है, भारत में लगभग 23 प्रतिशत लड़कियां ऐसी हैं, जिनकी शादी 18 वर्षा से पहले हो जाती है। हालांकि 21 दिसम्बर को बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 को संसद में पेश किया गया है। चर्चा में शामिल हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील आकाश गुप्ता ने कहा, "देखिए ऐसे बहुत से मुद्दे हैं हमारे देश में जो की सामाजिक मुद्दे हैं उन्हें सिर्फ कानूनी प्रक्रिया से नहीं डील किया जा सकता है और समाज का इसमें हिस्सा लेना बहुत महत्वपूर्ण है। मैं जब भी दहेज़ प्रथा या बाल विवाह के बारे में बात करता हूं तो हमेशा ये समझाता हूं लोगों को और खुद भी समझने की कोशिश करता हूं कि क्या सिर्फ एक कानून लागू करने से ये समस्यस खत्म हो जाएगी। संसद ने एक कानून बना दिया अब उस कानून को हम कैसे लागू करते है उस पर निर्भर करता है की हम अपना लक्ष्य हासिल कर पाएंगे या नहीं।"


भारत के वो पांच राज्य जहां बाल विवाह के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। अगर हम आकड़े देखें तो आधे से ज्यादा बाल विवाह के मामले इन पांच राज्यों राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से ही आते हैं। इसके पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारण हैं, जिसकी वजह से इन राज्यों को बाल विवाह के हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित कर सकते हैं इन्हीं कारणों पर बता करते हुए ऑक्सफैम इंडिया में अमिता पित्रे जो कि जेंडर जस्टिस की विशेषज्ञ हैं ने बताया, "मूल कारण बाल विवाह के हैं वो लिंग भेद ( Gender discrimination) और गरीबी है। जहां भी बाल विवाह के मामले सामने आते हैं। वहां ये ही दोनों मुख्य कारण हैं। लेकिन जिन पांच राज्यों का जिक्र किया जाता है, उसमें विकास के सारे इंडीकेटर्स जो हम कहते हैं वो कमज़ोर है और बहुत बड़ी जनसंख्या होने के कारण ये मामले इन राज्यों में ज्यादा उभर के सामने आते हैं।"

"लिंग भेद के कारण हम देखते हैं कि प्राथमिक शिक्षा में लड़कियों का दाखिला लगभग 100 प्रतिशत होता है, लेकिन जैसे लड़कियां बड़ी होती हैं उच्च माध्यमिक स्तर पर उनका ड्रॉपआउट बहुत ज्यादा होता है और इन राज्यों में हमने देखा हैं जिस तरह का सामाजिक सपोर्ट मिलना चाहिए लड़कियों को वो उन्हें नहीं मिलता है, "अमिता ने आगे कहा। "फिर सामजिक कुरीतियां भी जुड़ी हुईं हैं जैसे दहेज़ प्रथा बहुत प्रचलित है, लड़की बड़ी हो जाएगी तो ज्यादा दहेज़ देना पड़ेगा, फिर लड़की अगर पढ़ लिख लेती हैं तो उसके लिए उसे ज्यादा पढ़ा लिखा पति मिलना चाहिए ऐसा लोगों को लगता है।"

कानून बना देने से भी क्यों नहीं रुक रहे बाल विवाह

भारत में बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 प्रभाव में है जो 21 साल से कम उम्र के लड़के और 18 साल से कम उम्र की लड़की के विवाह को प्रतिबंधित करता है और 21 दिसम्बर को बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 को संसद में पेश किया गया जिसके तहत लडकियों की विवाह की उम्र 18 से 21 करने का प्रावधान है लेकिन इन कानूनों के होने के बावजूद बाल विवाह के मामले निरंतर हमारे देश में दिखाई पड़ते हैं।

आकाश गुप्ता इस मुद्दे पर कहते हैं, "संसद ने एक कानून बना दिया अब उस कानून को हम कैसे लागू करते हैं उस पर निर्भर करता है की हम अपना लक्ष्य हासिल कर पाएंगे या नहीं। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं की कानून सिर्फ एक उत्प्रेरक के रूप में काम करता है, लेकिन इस समस्या का समाधान करने के लिए समाज को आगे आने की ज़रुरत है। अब जागरूकता एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।"

बाल विवाह पर अपना अनुभव साझा करते हुए आकाश कहते हैं, " जब भी हमें समय मिलता है, हम गांवों में निरंतर कानूनी सहायता शिविर लगाते रहते हैं। इलाहाबाद से सटा हुआ जिला कौशांबी है, वहां के एक गाँव में जब हम पहुंचे तो हमने देखा कि जो लड़कियां सचमुच पीड़ित हैं वो हमसे बात ही नहीं करना चाहती जो बाल विवाह का शिकार हैं।"

वो आगे कहते हैं, "जो उनसे जुड़े लोग हैं जो बात कर सकते हैं वो भी इसे अपने समाज के सामने प्रमुखता से दिखाना नहीं चाहते और जो बोल रहे हैं वो इन कानूनों से अनभिज्ञ हैं। उनका कहना है की हमारे बच्चे हैं हम जैसे चाहे जब चाहे उनकी शादी करेंगे तुम होते कौन हो हमें रोकने वाले, तो सिर्फ और सिर्फ कानून बना देने से या सिर्फ प्लान बना देने से हम अपना अंतिम लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाएंगे।"

क्यों माता पिता अपनी बेटियों का कर देते हैं बाल विवाह

बाल विवाह एक ऐसा सामाजिक मुद्दा है, जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं और बाल विवाह को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए हमें उसके पीछे के कारणों को समझना पड़ेगा। ये समस्या कितनी गंभीर हैं इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कई बार जब कोई व्यक्ति इस कुरीति तो रोकने आगे आता है लोग उसी पर हमला कर देते हैं, ऐसी ही एक घटना का जिक्र गाँव कैफ़े शो पर अमिता पित्रे ने किया वो बताती हैं, "आपने भवरी देवी की कहानी सुनी होगी वो जब राजस्थान के एक गाँव में बाल विवाह रुकवाने गयी तो वहा पर लोगों ने उसी पर हमला कर दिया। तो इस समस्या की जड़े इतनी गहरी हो उसे युवा खुद अपनी शादी रुकवायेंगे और उन्हें सभी कानून पता होंगे ये सोचना बिलकुल गलत होगा।"


"गरीबी और लिंग भेद के अलावा बाल विवाह की एक बड़ी वजह लड़कियों की सुरक्षा भी है जो की माँ -बाप के ज़ेहन में रहती है। ऐसा नहीं ये कोई काल्पिनिक समस्या है जो लड़की के माता पिता के दिमाग में रहती है। ये एक वास्तविकता है, जिसके लिए जल्द से जल्द कठोर फैसले लेने की जरूरत है।" इसी बात पर अमिता पित्रे कहती है, "सुरक्षा एक वास्तविक मुद्दा है जैसा की हमने हाथरस में देखा और बाकी अन्य जगह भी देखा है। लड़कियों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है ऐसा नही कि ये सिर्फ माँ-बाप के दिमाग पर छाया है। अगर माँ-बाप दोनों को मजदूरी के लिए जाना हैं तो वो लड़की को रखे कहां, लेकिन अगर आपके पास अच्छे रेजिडेंशियल स्कूल हैं तो वहां पर रख सकते हैं। बच्चों को तो माँ-बाप को ऐसा नहीं करने पड़ेगा की हमको मजदूरी करने जाना हैं चलो इनकी शादी कर दो। जैसे बिहार के मुजफ्फरपुर बाल गृह में TISS के एक्टिविज्म और रिसर्च रिपोर्ट में पता चला की वहां यौन शोषण किया जा रहां था। तो सार्वजनिक संस्थाओ को भी विश्वास पैदा करना चाहिए ताकि माँ - बाप को लगे की ऐसी जगह है जहाँ उनके बच्चे सुरक्षित रह सके उनकी शादी कर देना ही एक विकल्प नहीं है।"

मानव तस्करी और बाल विवाह का क्या है संबंध है?

बाल विवाह से जुड़े मानव तस्करी के मामले भी सामने आ रहे हैं। इन मामलों में विक्टिम छोटी लड़कियां होती हैं, जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम होती है और अक्सर ये गरीब तबके से आती हैं, जिसके कारण इनके माँ-बाप को पैसों का लालच देकर तो कभी बिचौलियों द्वारा उन्हें धोखा देकर उनकी लड़कियों की शादी कर दी जाती हैं और कुछ मामलों में लड़की को अगुवा तक कर लिया जाता है और जबरन शादी को अंजाम दिया जाता है। आगे देखा जाता है कि इन लड़कियों के साथ दुष्कर्म , शारीरिक हिंसा और इनका शुषण किया है। सेव द चाइल्ड के डिप्टी डायरेक्टर प्रभात कुमार कहते हैं, "अगर हम लोग NCRB का डाटा भी देखें तो लगभग 4 से 5 प्रतिशत मानव तस्करी के केसेस ऐसे होते हैं। जोकि बाल विवाह के लिए किए जाते है और बहुत सारे ऐसे केसेस रिपोर्ट भी नहीं होते ये तो वो केसेस है जो रिपोर्ट हुए है।"

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