गोबर से दीया - उत्तर प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं ने सीखा कैसे गोबर से भी की जा सकती है कमाई

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में लगभग 150 ग्रामीण महिलाएं गाय के गोबर का उपयोग करके आकर्षक इको फ्रेंडली उत्पाद बनाकर बेहतर कमाई कर रही हैं, जिनकी त्योहारी सीजन के दौरान मांग बढ़ जाती है।

Virendra SinghVirendra Singh   27 Oct 2022 9:54 AM GMT

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लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश

25 वर्षीय अनुराधा के दोनों पैर से दिव्यांग हैं, वो पूरी तरह से अपने भाई-भाभी पर निर्भर थीं, बाहर निकलकर काम करना तो दूर की बात थी, लेकिन पिछले तीन महीने से अनुराधा ाय के गोबर से कई तरह के उत्पाद बनाकर हर दिन 300-400 रुपए कमा भी रही हैं।

अनुराधा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "अब घर में बैठे-बैठे गाय के गोबर से हम दीपक बनाते हैं। पिछले 3 महीने से हम दीपक बनाने का काम शुरू किया है। प्रतिदिन 300 से 400 दीपक तैयार कर लेते हैं जिससे हमें 400 रुपए तक मिल जाते हैं जिससे अब जीवन आसान हो रहा है।"

उनके अनुसार, एक स्थानीय स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के साथ काम करना, जो ग्रामीण महिलाओं को गाय के गोबर से विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए प्रशिक्षित करता है, ने उन्हें आत्मनिर्भर होना सिखाया - ऐसा उन्होंने जीवन में पहले कभी नहीं सोचा था। अनुराधा ने कहा, "यह वास्तव में अच्छा लगता है कि मैं अपने परिवार की कमाई में योगदान करने में सक्षम हूं और मुझे अपने जीवन का एक उद्देश्य मिल गया है।"


वर्कशॉप जहां गाय के गोबर के दीयों को रंगा जाता है, पॉलिश किया जाता है और पैक किया जाता है, 'मिशन आजाद हिंद' नाम का एसएचजी द्वारा चलाया जाता है। इसके संस्थापक ने बताया कि 2018 में सिर्फ 10 महिलाओं के साथ समूह का गठन किया गया था और यह वर्तमान में 150 से अधिक महिलाओं को रोजगार देता है।

यूपी की राजधानी लखनऊ से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वर्कशॉप में महिलाएं, ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध गाय के गोबर से बने दीया, मूर्तियों और अगरबत्ती जैसे उत्सव के उत्पादों को पेंट, डेकोरेट और पैकेज करती हैं।

"हमारे सभी उत्पाद गाय के गोबर से बने होते हैं। पहले वही गाय का गोबर, जो गाँवों में बहुत सस्ते दाम पर बेचा जाता था, अब इन महिलाओं के लिए कमाई के अवसर लेकर आया है। वे इसका उपयोग दीया और मूर्ति बनाने के लिए करते हैं जो कि फिर हम यहां वर्कशॉप में पेंट करते हैं, प्रक्रिया करते हैं और सजाते हैं, "स्वयं सहायता समूह के संस्थापक अतुल वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया।

वर्कशॉप में ट्रेनिंग और डोर टू डोर पिकअप

लखीमपुर खीरी के जिला मुख्यालय में स्थित कार्यशाला में रेशु वर्मा ग्रामीण महिलाओं को गोबर से बेचने लायक उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण देती हैं। महिलाएं पानी और गोबर को गोर्गम नाम के एजेंट के साथ मिलाती हैं, जो यह भी सुनिश्चित करता है कि इन दीयों को जलाने पर आग न लगे। बाद में इन दीयों को धूप में सुखाकर जिला मुख्यालय स्थित वर्कशॉप में आपूर्ति की जाती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध गाय के गोबर से बने दीया, मूर्तियों और अगरबत्ती जैसे उत्सव के उत्पादों को पेंट, डेकोरेट और पैकेज करती हैं।

"हमने इन महिलाओं को एक दर्जन से अधिक गाँवों से प्रशिक्षित किया है और अब वे अपने घरों से काम कर रहे हैं और हमें कच्चे उत्पाद भेज रहे हैं जिनकी यहां वर्कशॉप में पॉलिश की जाती है। हम अपने खुद के मजदूरों को गाय-गोबर से बने सामान लेने के लिए भेजते हैं," वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया।

उन्होंने यह भी बताया कि इन उत्पादों की न केवल लखीमपुर खीरी में बल्कि नजदीकी जिलों लखनऊ, सीतापुर में भी काफी मांग है और इन्हें दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों से थोक ऑर्डर भी मिलते हैं।

गाय के गोबर के उत्पादों की मार्केटिंग

इस बीच, व्यापार में बढोत्तरी पर, रेशु वर्मा ने कहा कि एक दीया जो महिलाओं द्वारा बनाया जाता है, समूह द्वारा एक रुपये प्रति दीया की कीमत पर खरीदा जाता है और बाजार में सात रुपये प्रति पीस के हिसाब से बेचा जाता है।

उन्होंने कहा, "हम इन दीयों को एक रसायन से रंगते हैं नहीं तो अगर इसमें तेल की बाती डाली जाती है तो गाय का गोबर जल जाएगा। गोर्गम नामक रसायन यह सुनिश्चित करता है कि इन दीयों में आग न लगे।"

इस दौरान गाय के गोबर से बनी गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों की एक जोड़ी 50 रुपये की कीमत पर बेची जाती हैं, जिसमें इसे बनाने वाली महिला को 10 रुपये दिए जाते हैं, इसे बनाने वाली महिला को 10 रुपये दिए जाते हैं। जबकि इसकी सजावट पर 10 रुपये खर्च किए जाते हैं।


'आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे महिलाओं के कदम'

दो बच्चों की मां और योग्यता से स्नातक किरण देवी ने गाँव कनेक्शन के साथ साझा किया कि कैसे स्वयं सहायता समूह में शामिल होने से पहले वो घर में पड़े-पड़े बोर होती थीं।

फतेहपुर की रहने वाली किरण देवी बताती हैं, "घर में खाना बनाने और बच्चों को स्कूल भेजने के बाद खाली समय में बैठे-बैठे बोर हो जाती थी लेकिन अब घर में बैठकर ही गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां तैयार करती हूं,जिससे हमें अच्छे पैसे मिलते हैं।"

"अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बाद, मेरे पास करने के लिए कुछ भी नहीं बचा था, लेकिन अब दो साल गाय के गोबर से मूर्तियाँ बनाने के बाद, मुझे खुशी है कि मैं घर का खर्च चलाने में अपने पति की मदद कर रही हूँ," फतेहपुर गाँव की निवासी कहा।

इसी तरह, सिंघारी गाँव की ग्रेजुएशन की छात्रा रोली वर्मा ने कहा, "पहले अपनी पढ़ाई के खर्च के लिए मम्मी पापा आया भाई के सहारे थे लेकिन अब पढ़ाई के बाद जो समय निकलता है उससे हम धूप बत्ती और कई तरह के पूजा की सामग्री बनाते हैं जिससे अपनी पढ़ाई का खर्चा तो निकल ही रहा है साथ ही अपने पैसों से मम्मी पापा की भी मदद कर पा रही हूं और ऐसा करके मुझे बहुत अच्छा लगता है।"

सिंघारी गाँव की रहने वाली नीतू कश्यप के घर में दो गाय हैं। "उनके गोबर का इस्तेमाल ज्यादातर खाद या ईंधन के रूप में किया जाता था, लेकिन अब मैं आसानी से दीया और मूर्ति बनाकर एक दिन में 300 रुपये कमा लेती हूं। अच्छी बात यह है कि इस काम में किसी लागत की जरूरत नहीं है और इसमें कोई मशीन भी नहीं लगती है।"

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