डांगी नृत्य के जरिए धरती माता को आभार प्रकट करते हैं गुजरात के आदिवासी
डांगी जनजाति के युवा पुरुष और महिलाएं एक पारंपरिक नृत्य जो गति और कलाबाजी का संयोजन होता है, के जरिए धरती माता को एक आभार प्रकट करते हैं।
गाँव कनेक्शन 27 Jan 2022 12:07 PM GMT
दूसरे आदिवासी समुदायों की तरह, दक्षिण-पूर्व गुजरात में डांग जिले में सह्यादिरी पहाड़ियों के बीच डांगी जनजाति भी प्रकृति के करीब रहती है। पश्चिमी घाट का हिस्सा होने के कारण यह आदिवासी समुदाय पेड़ों, पहाड़ों, झरनों, पक्षियों और जानवरों से घिरा हुआ है।
डांगी नृत्य, उनका आनंदमय नृत्य प्रकृति को उनकी श्रद्धांजलि है धरती माता (धरती माता) को - आदिवासियों के अनुसार वो उनकी रक्षा करती हैं।
पुरुषों और महिलाओं दोनों मिलकर इस ऊर्जा भरे लोक नृत्य को करते हैं। गांव कनेक्शन ने हाल ही में डांग जिले की यात्रा की और अहवा तालुका के धवलीदौद गांव में डांगी नृत्य के प्रदर्शन में भाग लिया।
कभी #गुजरात के डांग जाना तो वहां के आदिवासियों की लोक संस्कृति जरूर देखिएगा, आज आपको यहां का एक ऐसा ही लोक नृत्य दिखा रहे हैं, ढोलक की थाप और शहनाई की धुन पर किए जाने वाले #FolkDance को देखकर आपके भी पैर थिरकने लगेंगे।
— GaonConnection (@GaonConnection) December 6, 2021
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पीले रंग के कपड़ों से सजे बारह युवा कलाकर शामिल हुए। जब सूरज की रौशनी भी कम पड़ने लगी, लेकिन इन लोक कलाकारों की ऊर्जा कम ही नहीं हुई, संगीत की धुन पर वो झूमते रहे, उनके तीन साथी द्वारा ढोलक बजाते रहे और दो शहनाई बजाते रहे।
धवलीदौद गांव के एक गांव के बुजुर्ग देवीदास ने गांव कनेक्शन को समझाया, "छोटी शहनाई नारी (महिला) है, बड़ी नर (पुरुष) है।" उन्होंने कहा कि अपनी युवावस्था में वे भी डांगी नृत्य में भाग लेते थे। उन्होंने कहा, "एक और पारंपरिक वाद्य यंत्र है, जो सूखे लौकी और मवेशियों के सींग से बना होता है और डांगी नृत्य के दौरान बजाया जाता है।"
युवाओं ने पीले कुर्ते, धोती और साथ में कमर के एक चारों ओर लाल रंग की पट्टियों को लपेट रख था, जबकि युवा महिलाओं ने पीले रंग की साड़ी और कमर पर घंटी और बालों में फूल लगा रखा था। उनके पैर संगीत के लय के साथ झूम रहे थे।
लोक नृत्य शुरू करने से पहले कलाकारों ने श्रद्धा से धरती को छुआ। देवीदास ने समझाया, "धरती माता हमारी देवी हैं।"
लोक नृत्य करने वाले ये कलाकर एक लय पर झूमते और गोल चक्कर लगाते एक दूसरे के ऊपर पिरामिड बना लेते हैं। वो एक भी धुन या फिर ताल को नहीं भूलते हर एक लय पर कदम से कदम मिलाते जाते हैं।
गाँव बच्चे भी इस लोक नृत्य देखकर झूमने लगे थे, देवीदास ने हंस कर कहा, "यह दिखाता है कि वे मज़े कर रहे हैं और जो कोई भी थका हुआ महसूस कर रहा है वह उत्साहित होकर चिल्लाता है, मानो सारी थकावट भी उसी के साथ चली गई।"
"हम जैसे बड़े होते हैं नृत्य करना शुरू कर देते हैं और अपने चालीसवें साल में भी अच्छा नृत्य करते हैं। हम त्योहारों, शादियों में नृत्य करते हैं और हमने दूसरे प्रदेशों में भी यह नृत्य किया है, "देवीदास ने कहा।
डांगी बच्चे अपने परिवार के बड़े सदस्यों को इतनी सहजता और खुशी के साथ प्रदर्शन करते हुए देखकर नृत्य करते हैं। "कोई भी उन्हें सीखने के लिए मजबूर नहीं करता है, वे स्वाभाविक रूप से ऐसा करते हैं," देवीदास ने गांव कनेक्शन से कहा।
देखते ही देखते नृत्य में तेजी आ गई और एक युवती जिसके सिर पर मुकुट और गले में फूलों की माला था तलवार लहराते हुए ऊपर चली गई। जैसे कि नृत्य से खुश होकर आशिर्वाद देने के लिए देवी आ गईं हों।
इसमें संदेह नहीं कि सब चलाने वाली धरती माता, उन सभी की देवी जो दुनिया चला रही हैं।
पंकजा श्रीनिवासन ने यह लेख लिखा है।
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