बुंदेलखंड के इस गाँव में अस्सी प्रतिशत लोग करते हैं बकरी पालन

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अरविंद सिंह परमार

कम्युनिटी जर्नलिस्ट

महरौनी (ललितपुर)। खेती के नुकसान को देखते हुए बुंदेलखंड के किसान बकरी पालन को अपना रहे हैं इससे होने वाले जीविकोपार्जन से परिवार की तमाम जरूरतों का खर्च आसानी से चलता हैं। कर्ज को चुकाने में सहूलियत हुई अब महाजनों के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ते। यहां के लोग बड़े शहरों की ओर पलायन नहीं करते।

पिछले दो दशकों से बुंदेलखंड सूखे की मार की मार झेल रहा था, किसान कर्जदार हुए गाँवों के किसान खेती बाड़ी छोड़ बड़े शहरों की ओर पलायन कर गये धीरे धीरे परिस्थितियां बदली और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के अति पिछड़े ललितपुर जनपद से 45 किमी दूर पूर्व-दक्षिण दिशा में ब्लॉक महरौनी के पचौड़ा गाँव के लोगों में बकरी पालन की ओर रूझान बढ़ा। रूझान बढ़ने से उनकी आय में वृद्धि हुई। इस गाँव के भरत पाल की तरह अस्सी प्रतिशत ग्रामीण बकरी पालन कर रहे हैं। यहां के लोग बकरी पालन की आय से घर कि तमाम जरूरतों सहित बच्चो की पढ़ाई लिखाई खेती बाड़ी आदि का काम आसानी से चल रहे हैं।


"पांच एकड़ में कुछ असंचित भूमि हैं, गुजारा नहीं होता। मेरे पिता बहुत परेशान थे पिता ने पांच-छह बकरियों से शुरूआत की मैंने पढ़ाई छोड़ पिता का सहयोग किया। हमारे भाई बाहर मजदूरी किया करते थे अब सब हाथ बंटाते हैं, बकरी पालन करते हुए 18 साल हो चुके हैं। अब हमारे पास लगभग अस्सी बकरियां हैं। बकरी पालन से साल में एक सवा लाख की आमदनी हो जाती है। सालभर का खर्च बच्चों की पढ़ाई घर कि जरूरतें इसी से पूरी होती हैं। खेती से हो रहे घाटे से परेशान थे लेकिन अब नहीं। " भरतपाल (45 वर्ष) ने बताया।

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भरतपाल का बेटा आर्मी में भी भर्ती हो गया खुशी का जाहिर करते हुए भरतपाल आगे बताते हैं, "यह सब बकरी पालन की देन हैं, हमारी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई यह सब खेती से सम्भव नहीं था।"


दूसरों को भी बकरी पालन करने की सलाह भरतपाल देते हैं वो बताते हैं कि दूसरों को भी बकरी पालन करना चाहिए जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आए गाँव में 80 प्रतिशत लोग बकरी पालन किये हैं मजदूरी खेती से ज्यादा फायदा बकरी पालन से हैं।

19वीं पशुगणना के अनुसार "पूरे भारत में बकरियों की कुल संख्या 135.17 मिलियन है, उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या 42 लाख 42 हजार 904 है।" ललितपुर जिले में करीब 2.5 लाख से अधिक बकरियां हैं।

खेती में लागत ज्यादा और आमदनी कम हैं ऊपर से मौसम परिवर्तन की मार से किसान कर्जदार हुए जरूरत होने पर सेठ-साहूकार भी पैसा नहीं देते! अब इस गाँव के बकरी पालकों के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ता। जरूरत आने पर व्यापारी से तत्काल पैसा मिल जाता हैं।


पचौड़ा गाँव के भागीरथ (42 वर्ष) बताते हैं, "बकरी पालने से फायदा है, जब भी हमें पैसों की जरूरत हैं उसी समय व्यापारी को फोन लगाया और एकाद नग बेच दिया और खेती बाड़ी के खर्च निमंत्रण बच्चों की पढ़ाई लिखाई सभी का इसी से खर्च चलता हैं।"

सूरज ढलते ही जंगलों से बकरियां लेकर घर लौटते हैं। बकरियों के बच्चों को पकड़कर दूध पिलाते हैं देखरेख करते हैं। बाडे की साफ सफाई पर विशेष ध्यान देते हैं, जिससे बकरे-बकरियां स्वस्थ रहे। इसी गाँव की गाँव की जमनाबाई दस वर्षो से बकरी पालन कर रही हैं। बकरियां चरा कर घर लौटी जमनाबाई (52 वर्ष) बताती हैं, "ये तो हमारा रोज का काम हैं, सुबह बाडे की साफ सफाई की बकरे बकरियां निकाली और निकल पड़े पूरे दिन के लिए जंगल में। रोजी रोटी के लिए यह सब करना ही पड़ता है।"

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