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बुंदेलखंड लाइव: चंदेरी साड़ियां बुनने वाले 5 हजार हैंडलूम लॉकडाउन, 10 हजार से ज्यादा बुनकर बेरोजगार

बुंदेलखंड शैली की चंदेरी साड़ियां हाथ से बनी महीन कारीगरी के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं। दुबई से लेकर अमेरिका तक से डिमांड आती है, लेकिन लॉकडाउन में कारोबारी और बुनकर दोनों परेशान हैं।
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चंदेरी (मध्य प्रदेश)। चंदेरी की मशहूर साड़ियां बुनने वाली भावना कोली के पास दो हैंडलूम हैं,लेकिन आजकल उनमें साड़ियां नहीं बुनी जाती। हथकरघे पर चिप्स के पैकेट टंगे रहते हैं, कमरे की बाकी जगह में परचून का सामान दिखता है। दो महीने से हैंडलूम का काम बंद होने के बाद उन्होंने घर चलाने के लिए अपने जनरल स्टोरी की दुकान को बढ़ा लिया है।

लॉकडाउन के चलते पिछले 02 महीनों में अपनी हाथ से बनी विशेष साड़ियों के लिए विख्यात चंदेरी कस्बे में भावना कोली के हैंडलूम की तरह 5000 के आसपास हैंडलूम बंद हो चुके हैं। जिनके पास पहले का कच्चा माल रखा है उन्हें थोड़ा बहुत काम मिल रहा है। बाकी बुनकर बेरोजगार बैठ हैं। जिन घरों और गलियों से सिर्फ दिन भर खटकों की आवाज आती रहती हैं, वहां अब सन्नाटा रहता है।

घर के बाहर सूप में अनाज साफ करती भावना हैंडलूम के बारे में पूछने पर कहती हैं, “पूरा काम बंद है। बाकी यहां कोई काम नहीं है। बुनकर खाते हैं। हमारे पास दो लूम हैं, मियां बीबी चलाते थे, दिन भर में आधा एक गज साड़ी बुनकर भी 400-500 रुपए कमा लेते थे, लेकिन पिछले तीन हफ्तों से एक पैसे का काम नहीं मिला, अब उधार लेकर खा रहे हैं।”

अपने घर के बाहर बैठीं भावना कोली।

बुंदेलखंड में चंदेरी ही शायद ऐसा कस्बा है जहां से न के बराबर पलायन है। मध्य प्रदेश में अशोक नगर जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर बेतवा नदी के पास पहाड़ी और जंगलों से घिरे इस कस्बे में लगभग हर घर में साड़ियां बुनी जाती हैं। बुंदेलखंड शैली की चंदेरी साड़ियां हाथ से बनी महीन कारीगरी के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं। दुबई से लेकर अमेरिका तक से डिमांड आती है, लेकिन लॉकडाउन में कारोबारी और बुनकर दोनों परेशान हैं।

“चंदेरी में सिर्फ चदेरी साड़ियां बनती है। हमारी समस्या ये है लॉकडाउन के चलते पीछे से रेशम, जरी, ताना जैसा माल नहीं आ पाया। जिसके चलते 5000 के आसपास लूम बंद हो गए। हर लूम में कम से कम दो बुनकर बैठते हैं तो 10000 लोग प्रत्यक्ष रुप से बेरोजगार बैठे हैं।” चंदेरी में थाने के सामने बसे मुहल्ले से कारोबार करने वाले विजय कोली कहते हैं।

इसी मुहल्ले के एक छोटे से घर से हथकरखे की आवाज आ रही थी। 60 साल के मुन्ना लाल अपनी दो बेटियों और एक बेटे के साथ तेजी से कुछ धागे कभी पिरो रहे थे, कभी कुछ धागों के बीच से इधर-उधर फेंक रहे थे।

“बाबूजी ये जंगला साड़ी है। पिछले दो महीने में ये दूसरी साड़ी है। 15-15 दिन लोग से लोग खाली बैठे हैं, क्योंकि हमारे पास रेशम, जरी कुछ नहीं है। हमारे घर में तीन लूम और आठ लोगों का परिवार है। इसी में खाना से लेकर बच्चों की पढ़ाई तक सब चलता था, लेकिन अब सब बंद है। अकेले मेरा ही कम से कब 25 हजार रुपए का नुकसान हो चुका है।” साड़ी का बार्डर दिखाते हुए बुजुर्ग बुनकर मुन्ना लाल कहते हैं।

चंदेरी साड़ियों के बुनकर मुन्ना लाल।

मुन्ना लाल गर्व से बताते हैं, “उनके दादा, परदादा और उनके दादा भी ये काम करते थे, ये समझ लीजिए की चंदेरी हमारे खून में है। ऐसा नहीं है कि इसमें हमें बहुत पैसे मिल जाते हैं, पूरे साल का एवरेज निकाला है 200 रुपए रोज मिलते हैं,लेकिन अपने कस्बे में मिलते है, घर बैठे मिलते हैं तो काम चलता था।”

साल 2011 की जनगणना के अनुसार 33,081 जनसंख्या वाले चंदेरी में 6 हजार से अधिक हैण्डलूम लगे हैं, इन पर लगभग 15,000 लोग काम करके अपनी आजीविका चला रहे हैं। सरकार ने चंदेरी को बढ़ाने के लिए यहां हैंडलूम पार्क भी खोला है,जहां समूह बनाकर बुनाई होती है, हैंडलूम मार्क में 240 लूम लगे हैं, लेकिन ज्यादातर बंद ही हैं।

चंदेरी में दो तरह के बुनकर और कारोबारी हैं। पहले जो सिर्फ बुनकर जो अपने घरों में 2-3 हैंडलूम लगाते हैं। दूसरे हैं मास्टर बुनकर इन्हें मध्यम वर्ग का कारोबारी कह सकते हैं, इनके पास 50 से 100 हैंडलूप में हैं, इनके पास कई-कई लाख का माल स्टॉक रहता था, ये मांग पर साड़ियां बुनवाते थे, लेकिन लॉकडाउन इतना लंबा खिंच गया कि सब के पास कच्चा माल नहीं है।

बुनकर केशव कहते हैं, “चंदेरी की साड़ी एक हजार से लेकर 50 हजार तक होती है, ये पूरा बिजनेस मेट्रो सिटी से कनेक्टेड है। लॉकडाउन में मॉल्स बाजार सब बंद है तो काम कैसे हो।”

चंदेरी के बड़े कारोबारी और लेमनट्री कंपी के मालिक रविशंकर कोली चंदेरी के मंडराए इस साए के पीछे के कहानी बताते है।

“चंदेरी से साड़ियां बुनी जरूर जाती हैं लेकिन पूरा कच्चा माल बाहर से आता है। क्वाइल वाला रेशम चीन से आता है, जरी सूरत से आती है, बाना, जिससे बुनाई होती है वो कोयंबटूर और मुंबई से आता है। चीन से माल आना काफी पहले बंद हो गया था, अब समस्या ये है कि कच्चे माल के अभाव में कारीगर के पास काम नहीं है और दो माल बनकर तैयार हो बाहर नहीं जा पा रहा तो कारोबारियों के पास पैसे नहीं।” 35000 की साड़ी की पर हाथ फेरते हुए वो अपनी समस्याएं गिनाते हैं।

चंदेरी के लोगों के मुताबिक रेशम पहले जापान और कोरिया से भी आता था लेकिन वो चटक (टूट) जाता था, इसलिए चीन से कारोबार शुरु हुआ लेकिन चीन पिछले एक वर्ष से माल की आपूर्ति ठीक से नहीं कर पा रहा है।

रविशंकर के मुताबिक पिछले चंदेरी के लिए साल 2019 से मुश्किले चल रही हैं। कच्चे माल का रेट लगभग डेढ़ गुना हो गया है, इसलिए पहले ही माल बेचने में दिक्कत आ रही थी।

बंद पड़े चंदेरी साड़ियों के हैंडलूम।

“चीन में कोरोना जनवरी के आसपास आया, लेकिन वहां प्रोडक्शन काफी पहले से प्रभावित था, इसलिए रेशम जो पहले 3500-3600 रुपए किलो था वो अब 5600 रुपए किलो तक पहुंच गया है। ऐसे ही दूसरी चीजों के भी दाम बढ़े हैं, तो साड़ियां महंगी हो गई, जो बेचना आसान नहीं है। हम लोगो की समस्या सिर्फ चाइना के खुलने से खत्म नहीं होगी, जब कि पूरा इंडिया में काम ठीक से न शुरू हो जाए।”

चंदेरी की साड़ियां राजा-महराजा के जमाने से परंपरागत रूप में चली आ रही हैं। यहां जो काम होता है वो भारत के किसी कोने में बुनकर भी नहीं कर पाते। चंदेरी के परंरागत बुनकर और कारोबारी विजय कोली बताते हैं, “सबसे पहले हमारे पूर्वज बड़ौदा के राजाओं के लिए सूत से पगडिंयां बनाया करते थे। बाद में उनकी रानियों के कहने पर सूत से साड़ी बनाई गई। फिर बाद में इसमें रेशम से काम शुरू हुआ। पहले पहले एक पिक्चर आई थी पकीजा, उममें मीनाकुमारी जी ने जो गाना गाया था,. इन्ही लोगों ने लै लीना दुप्टटा मेरा, वहां हमारे चंदेरी में बना था। कई फिल्म और सीरियल में चंदेरी पहने लोग दिखे हैं। साल 2011 में आमिर खान और करीना कपूर चंदेरी के पास एक गांव में एक गरीब बुनकर के घर भी आए, उससे हमें बहुत फायदा मिला था।”

चंदेरी से मध्य प्रदेश को भी ब्रांडिग मिली तो चंदरी के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने बुनकर के लिए कई काम भी किए। चंदेरी में 32 करोड़ रुपए की लागत से हैंडलूम पार्क बनाया गया है तो बुनकरों की पानी की समस्या दूर करने के लिए करीब आठ करोड़ रुपए की विशेष पाइप लाइन राजघाट डैम से चंदेरी तक बिछाई गई है।

मध्य प्रदेश हथकरघा निगम के अधिकारी और हैंडलूम पार्क प्रोजेक्ट से शुरू से जुड़े रहे अधिकारी एस के शाक्यवार बताते हैं, “लॉकडाउन से पहले तक चंदेरी में कोई समस्या नहीं थी। बनारस और कांजीवरम की अपेक्षा हमारा कारोबार अच्छा चल रहा था, 3600 परिवारों को प्रत्यक्ष लाभ मिला है। चंदेरी की प्रगति और यहां सुविधाएं मिलने के बाद तो थोड़ा बहुत पलायन होता था वो भी रुक गया है।”

केंद्र सरकार की आईआईएसएस योजना के तहत साल 2008 में हैंडलूम पार्क का प्रोजेक्ट पास हुआ था लेकिन काम शुरू हुआ साल 2017 में, जिसके बाद बजट बढ़ने पर तत्तकालीन सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहयोग से एनटीपीसी ने कंपनी सामाजिक दात्यित के तहत बुनकरों के लिए बड़ी रकम देकर ये पार्क पूरा कराया।

बुनकर और कारोबारी विजय कोली कहते हैं, “10 साल पहले चंदेरी का कारोबार ठप होने लगा था तब भी महराज (ज्योतिरादित्य सिंधिया) ने मदद की थी। उस दौरान तो कई बुनकर काम छोड़कर अहमदाबाद इंदौर दूसरे शहरों को जाने लगे थे, अब अगर सरकार ने फिरएक बाद मदद नहीं की तो हालात वैसे ही बनेंगे।”

चंदेरी साड़ियों के बारे में कहा जाता है कि अगर इसमें एक तिल के बराबर का टीका भी होगा तो आसानी से नजर आएगा। दूसरा इसमें धागे एकदूसरे से ऐसे पुहए होते हैं कि एक साड़ी बनने के बाद उनका सिरा नहीं मिलता।

सिर्फ चंदेरी ही नहीं पूरे देश में बुनकरों की हालत ठीक नहीं है। रवि शंकर कोली बताते हैं, “अभी दो दिन पहले मेरी कांजीवरम में एक लोगों से बात हुई तो रियल जरी में साड़ियां बवनाते हैं, उनके 1500 हैंडलूम हैं, लेकिन पूरा काम दो महीने से बंद है। हमसे कई लोग कह चुके हैं कि पूरा प्रोडक्शन रोक दीजिए क्योंकि सितंबर-अक्टूबर तक तक कोई गुंजाइश नहीं है,इस लॉकआउन में नुकसान उठाए लोग पहले अपना घाटा पूरा करेंगे फिर साड़ियों पर पैसे खर्च करेंगे।”

रविशंकर आगे जोड़ते हैं, “सरकार दो पैकेज जारी कर चुकी है, लेकिन हम लोगों तक कोई मदद नहीं पहुंची। सरकार को चाहिए कि राशन और फौरी राहत की बजाए दीर्घ कालिक योजनाएं लाए ताकी चंदेरी से जुड़े लोग काम करते हुए अपने परिवार पाल सकें।”

गांव कनेक्शन की टीम जब चंदेरी से निकल रही थी तो उसी मुहल्ले के बाद एक पत्थर पर बैठे मिले शाहिद कहते हैं, “पहले जो पैसा था सब खा पी चुके हैं, 10-12 हजार रुपए उधार भी हो गए हैं। अगर कुछ दिन यहां हाल रहे तो यो या तो बुनाई छोड़ देंगे या फिर चंदेरी।”

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