गाँव कैफ में विशेषज्ञों ने बताया कैसे रोक सकते हैं जंगलों में आग की तबाही?

हर साल जंगल में लगने वाली आग की तबाही आती है, जिससे कई सारे पेड़-पौधे तो जल ही जाते हैं और पशु-पक्षियों को भी मुश्किलें बढ़ जाती हैं। साथ ही पर्यावरण के लिए भी यह खतरनाक होता है। गाँव कैफे के इस स्पेशल एपीसोड में जंगल की आग पर चर्चा की गई, जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी।

गाँव कनेक्शनगाँव कनेक्शन   16 April 2022 10:18 AM GMT

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हर साल जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, वैसे ही जंगलों में आग की घटनाएं भी बढ़ने लगती हैं। इससे जंगल और पर्यावरण को तो नुकसान होता ही है, साथ ही जंगल में रहने वाले पशु-पक्षियों को भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। गाँव कनेक्शन के विशेष लाइव शो गाँव कैफे में जंगल में आग लगने का कारण, नुकसान और तबाही रोकने की तरीकों पर चर्चा की गई।

जंगलों में आग लगने मामलों को बारीकी से देखा जाए तो कुछ राज्यों का नाम बार बार सुर्खियों में रहता है जैसे कि ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में यह मामले होते अक्सर देखे जाते हैं। इन्हें हम फारेस्ट फायर के हॉटस्पॉट के रूप में भी चिन्हित कर सकते हैं। आखिर वो कौन से कारण हैं जो इन राज्यों को फॉरेस्ट फायर का हॉटस्पॉट बनाते हैं? इस पर रोशनी डालते हुए दिव्या गुप्ता एनवायरमेंट सोशल साइंटिस्ट दिव्या गुप्ता ने कहा, "जंगलों में आग की खबरें जब हम पढ़ते हैं तो जो पहली बात हमारे मन में चलती है वह ये है कि अभी बस अप्रैल चल रहा है और आगे पूरी गर्मी बाकी है, जब मौसम और गर्म हो जाएगा। अभी तो बस शुरूआत हुई और पूरी गर्मी का मौसम अभी बाकी है। इस बात की कल्पना करना मुश्किल है की आगे के हालात कैसे होंगे। सेंट्रल इंडिया पहले से ही एक सूखा प्रवण क्षेत्र है अगर आप महाराष्ट्र की बात करें तो तापमान कभी कभार 40 के पार भी चला जाता है उसी तरीके से ओडिशा, मध्य प्रदेश ये बहुत गरम इलाके हैं तो इन इलाकों में आग लगना संभव है।"

उन्होंने आगे कहा, "जब भी फोरेस्ट फायर की बात आती है तो हम लोग क्लाइमेट चेंज और तापमान में वृद्धि को इसका कारण बताते है जबकि सिर्फ ये ही चीज़े जिम्मेदार नहीं हैं और भी अन्य फैक्टर्स है। जो आकड़ों पर नजर डालें तो उनसे साफ़ पता चल रहा है की इन मामलों की संख्या बढ़ी है खासकर सेंट्रल इंडिया जो एक सूखा प्रवण क्षेत्र है तो ये बात साफ़ है कि गर्म और शुष्क तापमान जंगलों में आग लगने के मुख्या कारणों में से एक हैं।"


गाँव कैफे के इस एपीसोड में एनवायरमेंट सोशल साइंटिस्ट दिव्या गुप्ता, वाइल्डलाइफ सोसाइटी ऑफ ओडिशा के सचिव बिस्वजीत मोहंती, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के संयुक्त निदेशक समीर कुमार सिंहा, ओडिशा से गाँव कनेक्शन के रिपोर्टर आशीस सेनापति, मध्य प्रदेश से रिपोर्टर अरुण सिंह और दिल्ली से गाँव कनेक्शन की रिपोर्टर सारा खान शामिल हुईं। कार्यक्रम का संचालन गाँव कनेक्शन की डिप्टी मैनेजिंग एडिटर निधि जम्वाल ने किया।

गाँव कनेक्शन ने पिछले दिनों ऐसी कई खबरें प्रकाशित की हैं, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री उपेन्द्र यादव ने लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया है कि नवंबर 2020 से 2021 तक के आंकड़ों के अनुसार भारत में 345989 फोरेस्ट फायर हुए थे। उसमें से सबसे ज्यादा आग 51951 बार ओडिशा के जंगलों में लगी, उसके बाद मध्य प्रदेश के जंगलों में 47795 बार लगी, उसके बाद छत्तीसगढ़ के जंगलों में 38306 बार और महाराष्ट्र चौथे नंबर पर था जहां 34025 बार आग लगी। इसके साथ ही फोरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के पूरे फोरेस्ट कवर में से 10.86 प्रतिशत क्षेत्रफल फोरेस्ट फायर प्रोन एरिया हैं।

क्लाइमेट चेंज नहीं इंसानी गतिविधियों हैं फॉरेस्ट फायर के एक प्रमुख वजह

जानकारों का मानना हैं कि प्राकृतिक कारण नहीं बल्कि इंसानी गतिविधियां फोरेस्ट फायर का सबसे बड़ा कारण है। जंगलों से होने वाले आर्थिक लाभों से हम सभी वाकिफ हैं, इन जंगलों के पास रहने वाले गाँव के लोग अपनी जीवका के लिए काफ़ी हद तक इन जंगलों पर निर्भर हैं जैसे ओडिशा के जंगलों से महुओं को बीनने वोल लोग इन्हीं जंगलों पर निर्भर हैं। न केवल गाँव वासी कभी कभार जाने अनजाने में पर्यटक भी फॉरेस्ट फायर के लिए जिम्मेदार हैं।

इसी सन्दर्भ में डॉ समीर कुमार सिन्हा जो की जॉइंट डायरेक्टर हैं वाइल्डलाइफ ट्रस्ट इंडिया के ने गाँव कनेक्शन को बताया, "सबसे पहले हमें यह जानना पड़ेगा की आग लगती क्यों है? सबसे ज्यादा फ्यूल और जैव द्रव्यमान (bio mass) जहां पर होगा उन इलाकों में आग लगने की सम्भावना सबसे ज्यादा होती है। अब आग लगाने के लिए पहला तो फ्यूल चाहिए और दूसरा आग लगाने वाला, अब भारत में ऐसा कोई भी इलाका नहीं जहां प्राकृतिक कारणों से आग लग सके कोई न कोई एक माचिस की तीली लगाता है या बीड़ी का एक टुकड़ा फेंकता है जिसकी वजह से आग लगती है।"

डॉ समीर ने आगे कहा, "सेंट्रल इंडिया में शुष्क पर्णपाती वन (dry deciduous forest) हैं, इन जंगलों में फरवरी के अंत से पत्तियां गिरना शुरू होती हैं, फिर वो सूखती हैं और अगर आसान भाषा में समझें तो ये ईंधन का काम करती हैं, जिसमें अगर किसी ने वहां एक माचिस या बीड़ी फेंक दी तो इतना काफी है एक जंगल को जलाने के लिए। हमारे यहां एक कहावत है कि पेट की आग और जंगल की आग अगर एक बार लग जाए तो बुझती नहीं है तो ऐसे ही अगर एक बार जंगल में आग लग जाए तो उसे बुझाना और काबू करना बहुत मुश्किल हो जाता है।"

"अब जो दूसरा कारण है वो है गाँव वाले जो इन जंगलों के पास रहते हैं। हम सभी को पता है कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट और गांव वालों के बीच बहुत अच्छा रिलेशन नहीं है, कभी कभार आपसी दुश्मनी के चलते, कि उसने मुझ पर केस किया अब में जंगल में आग लगा के इससे बदला लूंगा और 25 पैसे की माचिस से पूरे जंगल को आग के हवाले झोंक देता है, "डॉ समीर ने कहा।


डॉ समीर आगे विस्तार से समझाते हैं, "अब ये तो हो गया ह्यूमन डायमेंशन, तीसरा, कभी कभी आप देखेंगे कि जब हम आग का इस्तेमाल ग्रास मैनेजमेंट के लिए करते हैं तो अगर उस जलाने में थोड़ी सी भी देरी हो गयी पैसे की कमी या रिसोर्सेस की कमी की वजह से और घास सूख गई तो ये कंट्रोल फायर अनकंट्रोल फायर बन जाती है जो आगे चल के फॉरेस्ट फायर का कारण बनता है। जब मैं हिमालयन तराई में फॉरेस्ट फायर पर साइंटिफिक वर्क कर रहा था तब हमनें ये देखा की जो भी फॉरेस्ट एरिया जो किसी नाले या रोड से कनेक्टेड है वहा आग पहले जलती है, क्योंकि वो लोगों के आने जाने का रास्ता है, साथ ही हवा का बहाव भी आग के फैलने में मदद करती है"

आग लगने से जंगली जानवर जंगल से बाहर भागते हैं और वो मानव बस्ती की तरफ जाते हैं, जिससे दोनों के बीच टकराव होगा। देखा जाए तो कहीं न कहीं आदमी और जानवर दोनों को नुकसान झेलना पड़ता है। जंगली जानवर और इंसानों के इस संघर्ष के बारे में वाइल्डलाइफ सोसाइटी ऑफ ओडिशा के सचिव बिस्वजीत मोहंती ने कहा, "मैं 100 प्रतिशत इस बात से सहमत हूं, क्योंकि नेचुरल फायर कभी होता ही नहीं हमेशा मैन मेड फायर ही होता है और इसकी एक वजह शिकार भी हैं लोग जानकर जंगल की एक तरफ़ आग लगते हैं ताकि जानवर भाग कर दूसरी तरफ जाएं जहां उनका शिकार किया जा सके।"

फोरेस्ट फायर मैनेजमेंट के लिए जारी होता है बजट फिर कहां पर है समस्या

भारत सरकार सभी राज्य सरकारों को फोरेस्ट फायर मैनेजमेंट के लिए हर साल करोड़ों रूपए का धन राशि प्रदान करती है। उसके बाद भी हाल ही में देखा गया की जंगलों में आग के मामले बढ़ें हैं। अंग्रजों के समय से ही जंगलों को आग से बचाने के लिए गाइडलाइन्स तय की गयी हैं, जिनमे से कुछ हैं फायर ब्रेक लाइन बनाना ताकि अगर जंगल में आग लग भी जाए फिर भी वो दूर तक न पहुंच पाए, लेकिन हमने देखा हाल ही में राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिज़र्व में जहां आग ने 10 किमी का जंगल एरिया जला कर राख कर दिया 4 दिन तक जंगल जलता रहा आगे आग को काबू करने के लिए भारतीय वायु सेना को बुलाना पड़ा।


इस बारे में बिस्वजीत मोहंती ने समझाते हुए कहा, "यहां मेरी समझ कहती है ओडिशा में रिसोर्सेज की कोई कमी नहीं है, जो फण्ड भारत का आता है उसका ज़्यादातर हिस्सा ओडिशा को मिलता है। हर साल लग भाग 500 से 600 करोड़ रुंपए भारत सरकार ओडिशा को देती है, लेकिन जो फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का काम करने का तरीका है वो सही नहीं है। हमको कई साल लग गये एक टोल फ्री नंबर चालू करवाने में जिसके ज़रिये लोग बता सकें कि आग कहां लगी है, जिसके बाद वन विभाग मौके पर पहुंच सके और आग पर काबू पा सके, लेकिन इस चीज़ को लागू करने के लिए उन्हें 5 साल लग गये और पारदर्शिता में कमी भी एक बहुत बड़ा कारण है लोगों को मालूम होना चाहिए की आग क्यों लागी और किस वजह से उस पर काबू नहीं पाया जा सका।"

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