बुंदेलखंड की गौर पत्थर कला को राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले शिल्पकार

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रितुरात रजावत, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

महोबा(उत्तर प्रदेश)। यहां के पत्थरों से बनी मूर्तियां देश ही दुनियां में मशहूर हैं, इसके पीछे यहां के कई कलाकारों की सालों की मेहनत है। ऐसे ही एक शिल्पकार हैं कालीचरण विश्वकर्मा।

उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के गौराहरी गाँव के कालीचरण विश्वकर्मा के हाथों की कारीगरी बेजान पत्थरों में जान डाल देती है। वाराणसी से हैंडलूम टेक्नोलॉजी में बीटेक करने वाले कालीदीन को शिल्पकारी का हुनर वैसे तो पुस्तैनी विरासत के रूप में मिला था। लेकिन इस कला में माहरत हासिल करने के लिए कालीदीन ने कारीगरी के साथ साथ पढ़ाई का रास्ता अपनाया। शिल्पकला को रोजगार के रूप में जनपद में स्थापित करने वाले कालीदीन का नाम अब किसी शोहरत का मोहताज नही है।

गौरा पत्थर मंडी के नाम से देश भर में विख्यात गौराहरी गांव के 55 वर्षीय कालीदीन को अपने हुनर के चलते अब तक अनगिनत अवार्ड मिल चुके हैं। लगभग 40 से भी ज्यादा बार सम्मानित होने वाले इस व्यक्ति को उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव समेत राज्यपाल और वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी सम्मान मिल चुका है।

बेटे बहू और पत्नी को भी मिल चुका है सम्मान

कालीदीन विश्वकर्मा के साथ ही उनके बेटे बहू और पत्नी को भी कई अवार्डो से नवाजा जा चुका है। गौरा पत्थर में शिल्पकारी करने वाला ये परिवार अब इसी कला को अपना व्यवसाय भी बना चुका है। गौरा पत्थर से बनाई गई इन कलाकृतियों की कीमत सैकड़ों रुपए से लेकर हजारों में होती है। पत्थरों को तराशकर जान फूकने वाले इस परिवार को इस कारीगरी के चलते न सिर्फ सम्मान मिल रहा है बल्कि अब इस विश्वकर्मा परिवार ने इसे अपना व्यवसाय भी बना लिया है।

लोगों को देते हैं मुफ्त में प्रशिक्षण

ग्रामीण अंचल में रहने वाला ये परिवार अब बेरोजगारों के लिए रोजगार के रास्ते खोल रहा है। शिल्पकारी की ट्रैनिंग देकर अब इस परिवार के सदस्यों द्वारा महिलाओं और पुरुषों को सेल्फ डिपेंट बनाने का काम किया जा रहा है। परिवार के मुखिया कालीदीन का मानना है की बेरोजगारों को शिल्पकला से जुड़ना चाहिए ताकि कारीगरी की इस कला को जीवांत रखा जा सके।

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