गोबर से बनी लकड़ियों से पर्यावरण शुद्ध होगा और होगी अच्छी कमाई

Diti BajpaiDiti Bajpai   6 March 2019 10:29 AM GMT

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सरोजनी नगर (लखनऊ)। अभी तक आपने गोबर से बनी खाद और उपलों के बारे में ही सुना होगा लेकिन उत्तर प्रदेश की एक गोशाला में गोबर की लकड़ी तैयार की जा रही हैं। इससे लकड़ी की खपत तो कम होगी साथ ही गोबर का धुंआ पर्यावरण के लिए कम नुकसानदायक भी होगा।

यूपी के लखनऊ जिला मुख्यालय से 20 कि. मी. दूर सरोजनी नगर ब्लॉक के नादरगंज में 240 एकड़ में कान्हा उपवन गोशाला बनी हुई है। इस गोशाला में 11 हज़ार ज्यादा से आवारा गोवंश है। इस गोशाला की देखरेख कर रहे प्रंबधक यतींद्र त्रिवेदी ने बताते हैं, "आवारा गोवंश से आमदनी करने के लिए इनके गोबर का उपयोग बहुत जरुरी था। अभी पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में गोशाला में गोबर से लकड़ी बनाने का काम शुरू किया गया है। धीरे-धीरे प्रदेश के सभी गोशालाओं में इसकी शुरूआत होगी। ''

पशुपालन विभाग द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक 31 जनवरी वर्ष 2019 तक पूरे प्रदेश में निराश्रित पशुओं की संख्या सात लाख 33 हज़ार 606 है। इनके गोबर के इस्तेमाल से निराश्रित गोवंश से निजात तो मिलेगी साथ ही गोबर की इन लकड़ियों से अच्छी कमाई भी की जा सकती है।

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कान्हा उपवन गोशाला में पिछले एक महीने से गोबर से लकड़ी बनाने का काम किया जा रहा है। इस गोशाला को रोल मॉडल बनाकर प्रदेश की सभी गोवंश आश्रय स्थल में लकड़ियों को बनाने का काम किया जाएगा। "इस गोशाला का संचालन नगर निगम करता है तो शुरू में गाय के गोबर से तैयार 'लकड़ी' का इस्तेमाल लखनऊ नगर निगम बैकुंठ धाम में होने वाले शवों के अंतिम संस्कार में किया जाएगा।'' यतींद्र ने बताया। मौजूदा समय बैकुंठ धाम में शवों के अंतिम संस्कार में करीब 500 कुंतल लकड़ी की खपत प्रतिदिन होती है। गोबर से तैयार 'लकड़ी' के इस्तेमाल से यह खपत तीन सौ किलो तक रह जाएगी।

इस मशीन के ज़रिए गोबर से लकड़ियां बनाई जाती हैं। फोटो- दिति बाजपेयी

गोशाला में गोबर से लकड़ियां बनाने के लिए मशीन भी लगाई गई है। इस मशीन की कीमत जीएसटी मिलाकर 47 हज़ार रूपए है। मशीन से लकड़ियां तैयार होने की प्रक्रिया के बारे में यतींद्र गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "सबसे पहले गोबर को मशीन में डाला जाता है। उसके बाद दो से ढ़ाई सेकेंड में दो फीट की गोबर से बनी लकड़ी निकल आती है। इसके आकार को घटा-बढ़ा भी सकते हैं।''

इस लकड़ी की चौड़ाई ढाई इंच होती है और इसके बीच में एक होल भी रहता है, जिससे यह आसानी से जल जाती है। इन लकड़ियों का इस्तेमाल ईंट भट्ठों में भी किया जा सकता है। पंजाब हरियाणा जैसे कई राज्यों में गोबर से बनी लकड़ी का प्रयोग किया जा रहा है। गोबर की लकड़ियों के इस्तेमाल के बारे में त्रिवेदी बताते हैं, ''जहां गोशालाएं नगर निगम से संबंधित होती वहां पर तो इन लड़कियों बेचने में दिक्कत नहीं होगी। अगर कोई गाँव में इस मशीन से लकड़ी तैयार करता है तो ईट्ट भट्ठों इनको बेच सकता है क्योंकि प्रदेश के लगभग सभी ईट्ट भट्ठों में लकड़ी और भूसे का प्रयोग होता है।''

फरवरी वर्ष 2019 में विधानसभा में बजट पेश किया गया था, जिसमें आवारा पशुओं की समस्या को देखते हुए गांवों में गोवंश के रख-रखाव पर 247 करोड़ और शहरों में कान्हा गोशाला के लिए 200 करोड़ जारी करने की घोषणा की गई थी।

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अपनी बात को जारी रखते हुए यतींद्र आगे बताते हैं, "अभी ईट्ट भट्ठों में भूसे का प्रयोग किया जाता है, जिसकी वजह से पशुपालकों को भूसा मंहगे दामों पर मिलता है। तो अगर गोबर से बनी लकड़ी का उपयोग होगा तो पशुओं का भूसा भी सस्ता होगा, पर्यावरण भी शुद्व होगा और साथ ही अच्छी कमाई भी की जा सकेगी। गोबर की लकड़ियों को ऑक्सीजन की मात्रा भी वातावरण में बढ़ेगी।"

गोबर से तैयार हो चुकीं लकड़ियां। फोटो- दिति बाजपेयी

आठ रूपए किलो में बिकेगी गोबर से बनी यह लकड़ियां-

''शुरू में नगर निगम के श्मशान घाट में इन लकड़ियों को 8 रूपए में बेचा जाएगा। अभी श्मशान में लकड़ियों का रेट 10 रूपए है। बारिश यह रेट और बढ़ जाता है क्योंकि लकड़ियां गीली हो जाती है और उपलब्धता भी कम हो जाती है।'' यतींद्र ने बताया, "अगर शव को जलाने के लिए गोबर की लकड़ियों को बना रहे है तो इसमें हम रार और कपूर डाल देते हैं। यह वातावरण को शुद्ध करता है और अगर ईट्ट भट्ठे के लिए तैयार कर रहे हैं तो इसमें लकड़ी का बुरादा या कोयले का बुरादा भी मिलाया जा सकता है।''

इन लकड़ियों से कर सकते हैं अच्छी कमाई-

इस मशीन को कोई भी गोशाला खरीद सकती है और अच्छी कमाई कर सकती है। ''अगर किसी गोशाला में अगर 700 से 800 गोवंश है तो उसके लिए एक मशीन पर्याप्त है। इस मशीन में पूरा गोबर प्रयोग में आ जाएगा। एक आदमी गोबर डालने के लिए चाहिए होता है और एक से दो आदमी कंडा जो निकल रहा है उसको रखने के लिए चाहिए होता है। इन लकड़ियों से एक से ढेड़ लाख तक की आमदनी की जा सकती है।"


     

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