कभी साइकिल से दूध बेचने वाले राजेंद्र, आज साल में करते हैं 15 करोड़ के दूध का व्यापार

Divendra SinghDivendra Singh   4 Feb 2020 10:49 AM GMT

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उमरगा, उस्मानाबाद (महाराष्ट्र)। कभी अपनी एक भैंस का दूध साइकिल से बेचने वाले राजेंद्र दत्तत्रवे आज महाराष्ट्र ही नहीं कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में भी दूध सप्लाई करते हैं। आज राजेंद्र का सालाना कारोबार 15-16 करोड़ तक पहुंच गया है।

राजेंद्र महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के उस्मानाबाद जिले में उमरगा के रहने वाले हैं, जहां पर किसान पानी की कमी से खेती नहीं कर पाते हैं। वहीं राजेंद्र ने दिखा दिया की खेती नहीं तो पशुपालन से कमाई कर सकते हैं। राजेंद्र दत्तत्रवे से आसपास के 15 हजार से ज्यादा पशुपालक जुड़े हुए हैं। राजेंद्र बताते हैं, "करीब 15 साल पहले मेरे पास एक भैंस थी, जिसका दो-चार लीटर दूध मैं साइकिल से लेकर उमरगा जाता था, जब दूध के व्यापार में मुझे मुनाफा दिखा तो एक-एक करके कई गाय और भैंस खरीद ली, जिससे सौ लीटर तक दूध उत्पादन होने लगा।"


धीरे-धीरे दूध के व्यवसाय में राजेंद्र को फायदा दिखने लगा, दूसरे पशुपालकों को भी जोड़ना शुरू किया। वो बताते हैं, "अपनी डेयरी का दूध बेचने के साथ ही मैं सरकारी डेयरी के साथ जुड़ा 2002 से 2005 से सरकारी डेयरी को दूध देने के बाद एक प्राइवेट डेयरी से जुड़ गया, वहां से जुड़ने के बाद बाहर दूध बेचने का तरीका भी पता चला। कि कैसे हम दूसरे राज्यों तक अपना दूध पहुंचा सकते हैं।

उस्मानाबाद महाराष्ट्र का एक ऐसा जिला है जो कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों से भी जुड़ा हुआ है। इसका फायदा राजेंद्र ने उठाया। वो बताते हैं, "बाद में थोड़ा-थोड़ा करके दूध उत्पादन बढ़ने लगा, फिर दूसरे पशुपालकों को भी जोड़ा, आज हमारे ज्यादातर गाँवों में कलेक्शन सेंटर बने हुए हैं। जहां पर पशुपालक अपना दूध जमा करते हैं, और वहां से गाड़ियों से दूध हमारे मेन सेंटर पर आता है।"


अभी राजेंद्र के पास एक भी गाय या भैंस नहीं है, उन्होंने अपनी सभी गाय-भैंसों को अपने से जुड़े पशुपालकों को दे दी है। आज उनके साथ पंद्रह हजार किसान जुड़े हुए हैं। वो बताते हैं, "पंद्रह हजार किसानों के यहां से दूध हमारे यहां आता है, जिसको हम चिलिंग सेंटर पर इकट्ठा करते हैं और उसकी पैकिंग करके बाजार तक पहुंचाते हैं।"

राजेंद्र के सेंटर पर ज्यादातर गाय का ही दूध आता है। "हमारे यहां ज्यादातर दूध गायों का ही आता है और उन पशुपालकों के पास भी महाराष्ट्र की देसी नस्ल की ही गाएं हैं, कुछ ऐसे भी पशुपालक हैं, जिनके पास भैंस भी हैं, तो कुछ हिस्सा भैंस का भी है। जिससे हम अलग-अलग पैकेट में पैक करते हैं, "राजेंद्र ने आगे बताया।

राजेंद्र ने खुद तो काम शुरू ही किया, पशुपालकों के अलावा सैकड़ों लोगों को भी रोजगार दिया है। उनके चिलिंग सेंटर पर 50 से ज्यादा लोग काम करते हैं जिन्हें रोजगार मिला हुआ है।

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