छत्तीसगढ़ के इस गांव में है तीरंदाजी की नर्सरी, निशाना देख आप भी कहेंगे वाह

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संजीव शुक्ला, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के करीब 250 किलोमीटर दूर बिलासपुर जिले के कोटा प्रखंड (ब्लॉक) के शिवतराई गांव को आसपास के कुछ लोग खेल गांव तो कुछ लोग तीरंदाजी की नर्सरी भी कहते हैं। आदिवासी बहुल इस गांव के दर्जनों बच्चे सुबह शाम तीर धनुष लिए घंटों ट्रेनिंग करते हैं। यहां के बच्चों ने प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर कई सिल्वर और ब्राउंज मेडल जीते हैं।

ग्यारह साल के विक्रम राज का पढ़ने में मन नहीं लगता था। गरीब माता-पिता ने उसे कस्बे के करीब रहने वाले वाले मामा के घर पहुंचा दिया लेकिन वहां भी ऐसा ही रहा। लेकिन पिछले दिनों महाराष्ट्र में हुई एक तीरदांजी प्रतियोगिता में उसने दो मेडल जीते। विक्रम का निशाना एकदम सटीक बैठता है। विक्रम जैसे सैकड़ों गरीब बच्चों एक द्रोणाचार्य जो मिल गया है।

इन बच्चों के हुनर को चमकाने और उन्हें खिलाड़ी बनाने का श्रेय कोच इतवारी राज को जाता है। सरकारी कर्मचारी इतवारी राज अपनी तनख्वाह से ये तीरंदाजी कैंप चलाते हैं। इतवारी इन बच्चों से फीस या दूसरे खर्च के नाम पर एक भी रुपया नहीं लेते।

छत्तीसगढ़ के राज शस्त्र बल में कार्यरत इतवारी पिछले ढाई वर्ष से इस गांव में तैनात हैं। उनके खेत के प्रति रुझान को देखते हुए सरकार ने स्थानीय सरकारी स्कूल में तैनात किया था। इतवारी राज बताते हैं, "यहां के लोग पारंपरिक रुप से धनुष चलाते हैं। उन्हें बस सहारा देने की जरुरत है। मैं उसे देखने गया कि देखे कैसे टारगेट होता है। फिर उसी के मुताबिक अपने यहां के बच्चों को ट्रेनिंग देनी शुरु की। हमारे पस बटरेस नहीं था तो सेमल की लकड़ी से बनरेस बनवाए। कंपटीशन कराए जो जीते उन्हें हमने आगे ग्रामीण खेलों में भेजा।"

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खेल में रुचि लेने वाले इतवारी खुद भी पहले कबड्डी कोच थे, लेकिन बाद में उन्हें तीरंदाजी ट्रेनिंग का मौका मिला। जिसमें उन्होंने नया मुकाम छुआ है। आज उनके कैंप में करीब 40 बच्चे हैं। पांच बच्चों को छत्तीसगढ़ सरकार ने खेल के लिए दिए जाने वाला प्रवीरभंज देव पुरस्कार भी दिया है।

लेकिन इससे ज्यादा सरकार को इस कैंप के बच्चों को कुछ नहीं मिला। इतवारी के मुताबिक वो अपने पैसों से बच्चों की ड्रेस, नास्ता, जूते और आर्चरी (तीर कमान) का इंतजाम करते हैं। यहां तक किसी प्रतियोगिता में आने-जाने का खर्च भी वो खुद उठाते हैं। और खिलाड़ियों को विजयी होने पर मिलनी वाली राशि और पदक भी बच्चे को ही देते हैं।

इतवारी राज की बदौलत ही विक्रम राज खेल के साथ पढ़ाई में भी मन लगाने लगा है। अब वो दूसरी क्लास का छात्र है। उसे निशाना लगाते देख इतवारी को यकीन है, ये कलम चलाने से दूर भगाने वाला ये बच्चा तीर कमान से नया मुकाम रचेगा।

  

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