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एलाेवेरा के साथ सहजन की सहफसली खेती से किसानों को हो रहा फायदा

#Aloe vera

बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। पारंपरिक खेती के दायरे से बाहर निकलकर बाराबंकी के किसानों ने इस बार औषधीय खेती की तरफ रुख किया है और एलोवेरा और सहजन जैसी सहफसली खेती करके मुनाफा कमा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिला मुख्यालय से 38 किमी. उत्तर दिशा में स्थित बेलहरा के प्रगतिशील किसान रमेशचंद्र बताते हैं, “हमने इस बार एलोवेरा और सहजन और अमरूद की सहफसली खेती की है अक्सर एक फसल लेने से नुकसान की ज्यादा संभावना रहती हैं और इस तरह से एक ही खेत में कई फसल करने से हमें नुकसान की कम संभावना रहती हैं और अच्छा मुनाफा होता है अगर एक फसल सही रेट से ना बिकी तो भी दूसरी फसल हमें पैसे दे जाती है।”

रमेश चंद्र आगे बताते हैं, “हमने एक एकड़ खेत में 4-4 मीटर की दूरी पर अमरूद के पौधे लगाए हैं और उसके बीच में एक लाइन सहजन की लड़ाई और इन सब के बीच में जो जगह बची है, उसमें 35 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधे से पौधे और लाइन की दूरी 70 सेंटीमीटर की दूरी पर एलोवेरा की पौध लगाई है और इस तरह हमने एक ही खेत में तीन फसलें ले रहे हैं।”

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रमेश चन्द्रा कहते हैं कि अक्सर मौसम की मार की वजह से फसलें बर्बाद हो जाती हैं, जिससे हम किसानों को बहुत नुकसान होता है इसलिए हमने एक ही खेत में 3 फसल ले रखी अगर एक से नुकसान हो जाएगा तो दूसरा उसकी भरपाई कर देगा अगर दूसरे से नुकसान हो जाएगा तो तीसरा हमें नुकसान से बचा लेगा और ऐसा भी हो सकता है कि तीनों फसलें हमें अच्छा उत्पादन दे जाए।


सीनियर फील्ड ऑफिसर विनय कुमार तिवारी सहजन और एलोवेरा की सहफसली खेती के गणित को समझाते हुए बताते हैं, “एलोवेरा और सहजन की खेती साल के कुछ माह को छोड़ कर पूरे साल की जा सकती है जब ज्यादा अधिक गर्मी पड़ रही हो या अत्यधिक बरसात हो रही हो या फिर अत्यधिक जाड़ा हो रहा हो उस समय हमें इसकी खेती करने से बचना चाहिए। अगर देखा जाए साल के 5 माह 2 माह गर्मी के 2 माह जाड़े की और एक माह बरसात का अगर हम छोड़ दें तो बाकी बचे हर महीने में इसकी खेती की जा सकती है।”

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विनय कुमार तिवारी आगे बताते हैं कि एलोवेरा 6 बाई 8 फिट की दूरी पर इस की पौध को रोपित किया जाता है और एलोवेरा को दो बाई दो की दूरी पर पौधे लगाकर सह फसली खेती लेनी चाहिए इससे होता क्या है कि एलोवेरा की फसल खत्म होने के बाद हम अपने खेत की जुताई भी कर सकते हैं और सहजन के पौधे को हवा भी प्राप्त होती रहती है जिससे सहजन के पौधे का विकास अच्छा होता है।

आगे बताते हैं कि इस समय सबसे बड़ी समस्या छुट्टा जानवरों की है जिससे फसल को काफी नुकसान होता है लेकिन एलोवेरा की फसल को छुट्टा जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। क्योंकि इसमें कांटे होते हैं और इसकी एक बार कटिंग हो जाने के बाद इसमें विशेष प्रकार की खुशबू आती है जो जानवरों को पसंद नहीं होती है, जिससे वह एलोवेरा की खेती को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। दूसरे खेतों में जो दीमक लग जाती हैं वह भी नहीं लगती है। क्योंकि दीमक की जो दवा बनती है वह एलोवेरा के ऊपर की जो सतह है उससे बनती है और जब एलोवेरा खेत में लगा होगा तो दीमक अगर होगी तो हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।

आगे बताते हैं कि एलोवेरा और सहजन दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं एलोवेरा को तेज धूप नहीं चाहिए होती है इसलिए सहजन की पत्तियां इसे धूप से बचाती है और जाड़े के मौसम में जब धूप कम होती हैं उस समय 5 फिट पर से सहजन को काट लिया जाता है और उस समय एलोवेरा को धूप भी मिल जाती है इन दोनों फसलों के लिए लागत सिर्फ एक बार लगती है और एलोवेरा 4 साल से लेकर 7 साल तक लगातार उत्पादन देता रहता है जबकि सहजन करीब 10 साल तक उत्पादन लगातार हर वर्ष बढ़ती दर से देता रहता है

“एक एकड़ क्षेत्रफल में एलोवेरा और सहजन दोनों की लागत करीब 70 हजार के आसपास लगती है। जबकि एक साल के उत्पादन से करीब 300000 से 350000 रुपए तक का मुनाफा होने की संभावना रहती है। और जैसे-जैसे सहजन और एलोवेरा का पौधा प्रतिवर्ष बढ़ता रहेगा वैसे वैसे उत्पादन और मुनाफा भी बढ़ता रहेगा, “विनय आगे बताते हैं। 

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