भरतपुर(राजस्थान)। जिन किसानों ने पिछले कुछ वर्षों में सरसों की खेती करनी छोड़ दी थी, वैज्ञानिकों के सहयोग से वो फिर से सरसों की खेती तरफ जा रहे हैं।
सीतापुर जिले में राई सरसों के उत्पादन बढ़ाने और प्रसंस्करण का व्यवसाय स्थापित करने के उद्देश्य से किसानों का एक समूह सरसों अनुसंधान निदेशालय भरतपुर में पहुंचा। रूटस और नाबार्ड के सहयोग व कृषि विज्ञान केंद्र 2, सीतापुर के मार्गदर्शन में ओजोन एफपीओ के 25 सदस्यों को तीन दिवसीय प्रशिक्षण और भ्रमण कराया गया। जहां पर किसानों ने राई सरसों की उन्नत प्रजातियां औषधि तेलों की प्रजातियां, प्रबंधन, यांत्रिक विधियां, कटाई और प्रसंस्करण अमाउंट पालन के बारे में विशेष जानकारी मिली।
सीतापुर जिले के विकासखंड हरगांव के किसान ज्ञानेंद्र बताते हैं, “खाद्य तेलों का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव विषय पर जानकारी ने काफी प्रभावित किया सरसों का तेल मानव स्वास्थ्य के लिए अति हितकारी है एवं अन्य पर संस्कृत तेलों में मिलावट होती है पाम आयल का उपयोग मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरा उत्पन्न कर रहा है।”
कृषि विज्ञान केंद्र कटिया सीतापुर के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. डीएस श्रीवास्तव बताते हैं, “कृषि उत्पादन व कृषि की मूल चुनौतियों से निपटने में किसानों का मार्गदर्शन होना अति आवश्यक है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों ने अपार तकनीकिया विकसित की है, यदि किसानों को इसी तरह भ्रमण कराते हुए प्रशिक्षित कराया जाए तो उसके परिणाम बहुत ही सार्थक आएंगे। किसानों की अभिरूचि अनुरूप प्रोत्साहन व निदान से उन्हें प्रेरणा मिलती है।”
खाद्य तेलों के उत्पादन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है। रवि तिलहनी फसलों की बात करें तो राई, सरसों सबसे महत्वपूर्ण फसल है भारत में कुल सरसों के उत्पादन का 47.2 प्रतिशत राजस्थान का है। जबकि उत्तर प्रदेश में यह केवल 9.8 प्रतिशत तक ही सीमित है यदि उत्तर प्रदेश की बात करें तो सबसे अधिक पैदावार 1630 किलो प्रति हेक्टेयर मथुरा जिले की है, जबकि सीतापुर जिले में पैदावार मात्र 813 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।
लहरपुर के किसान सत्येंद्र कुमार ने बताया कि सरसों की फसलों को कम पानी की जरूरत होती है और इसको लगाने से जमीन में छिपे शत्रु कीटों का प्रकोप कम होता है, जिस प्रकार जलवायु परिवर्तन और भूजल में कमी आ रही है उसके तहत सरसों की फसल अति लाभकारी है।
बिसवां विकास खंड के किसान योगेश कुमार बताते हैं कि मधुमक्खी पालन में सरसों का स्थान अति महत्वपूर्ण है मधुमक्खी प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धित उत्पादों की जानकारी पाकर प्रेरणा मिली है अब वह इसे जिले के अन्य किसानों के बीच में साझा करेंगे।
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ आनंद सिंह बताते हैं कि किसानों को यदि संपूर्ण तकनीकी दिखा एवं सिखा दी जाए तो उन्हें उच्च गुणवत्ता पाने से कोई नहीं रोक सकता हमारे किसान इतने सक्षम हैं कि उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता की आवश्यकता नहीं है जरूरत है सिर्फ मार्गदर्शन की।