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कपाट बंद होने के बाद बद्रीनाथ धाम में क्या होता है ?

badrinath dham

चमोली (उत्तराखंड)। चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम का कपाट विधि-विधान से शीतकाल के लिए बंद हो गया है, अब अगले वर्ष मार्च-अप्रैल में धाम के कपाट फिर खुलेंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं, कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ में क्या होता है? इस अवधि में बद्रीनाथ की पूजा कौन करता है ? बद्रीनाथ में कौन-कौन निवास करता है ? आइए हम आपको इन सवालों के बारे बताते हैं।

इस सीजन में बारह लाख से ज्यादा यात्रियों ने बद्रीनाथ के दर्शन किए। बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल कहते हैं, “ब्रदीनाथ धाम की पूजा करने वाले मुख्य पुजारी को रावल कहते हैं। शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा के मुताबिक़ रावल दक्षिण भारत के ब्राह्मण परिवार से होता है। यात्रा सीज़न में रावल ही बदरीनाथ की पूजा करते हैं। उनके अलावा कोई अन्य व्यक्ति बद्रीनाथ की मूर्ति को छू भी नहीं सकता है। लेकिन कपाट बंद होने के बाद रावल को भी बद्रीनाथ धाम में रुकने की इजाजत नहीं होती। अन्य भक्तों की तरह वे भी वापस लौट आते हैं। मान्यता है कि इसके बाद देवर्षि नारद और अन्य देवता बदरीनाथ की पूजा-अर्चना का जिम्मा संभालते हैं।”

कपाट बंद होने के दिन बद्रीनाथ मंदिर को हज़ारों फूलों से सजाया जाता है। मुख्य पुजारी रावल पूरे गर्भग्रह को भी फूलों से सजाते हैं। पूजा अर्चना के बाद गर्भग्रह में मौजूद उद्धव और कुबेर की मूर्तियों को बाहर लाया जाता है। इसके बाद रावल स्त्री वेश में लक्ष्मी की सखी बनकर लक्ष्मी की मूर्ति को बद्रीनाथ के सानिध्य में रख देते हैं। मान्यता है कि छह महीने तक लक्ष्मी यहीं रहती हैं।

घी में डुबोए कंबल में लिपटी रहती है मूर्ति 

कपाट बंद होने के दिन बद्रीनाथ की मूर्ति को घी में डुबोए गए ऊनी कंबल से लपेटा जाता है। ये ऊनी कंबल भारत के आखिरी गांव माणा की महिलाओं द्वारा बुनकर तैयार किया जाता है। इसे घृत कम्बल कहते हैं। बद्रीनाथ के रावल इस पर घी लगाते हैं और फिर इसे मूर्ति को ओढ़ा देते हैं। इसके बाद हज़ारों श्रद्धालुओं द्वारा की जाने वाली जय-जयकार के बीच बद्रीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। 

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