'हमारी गलती क्या है?' - स्कूल बंद, घर में न इंटरनेट न मोबाइल, गाँव के बच्चे बोर्ड परीक्षाओं को लेकर परेशान

बोर्ड परीक्षाएं मुश्किल से एक महीने दूर हैं लेकिन कोविड-19 ओमीक्रोन वेरियंट के बढ़ते खतरे के कारण स्कूल अभी भी बंद हैं। ग्रामीण छात्र परेशान हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर के पास ऑनलाइन क्लास के लिए न तो स्मार्टफोन है और न ही इंटरनेट। उन्हें डर है कि डिजिटल डिवाइड से उनका भविष्य बर्बाद हो जाएगा।

Virendra SinghVirendra Singh   21 Jan 2022 11:30 AM GMT

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बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाले 17 साल के अमरेंद्र अवस्थी, अपने पिता को रोजी-रोटी के लिए खेतों में मेहनत मजदूरी करते देखकर बड़े हुए हैं। वह विज्ञान विषय से पढ़ाई कर रहे हैं। जीवन में कुछ बनना चाहते हैं ताकि अपने परिवार की मदद कर सकें और गरीबी के दलदल से बाहर निकल सकें। लेकिन दो साल से चली आ रही इस महामारी ने उनके आत्मविश्वास को हिला दिया है।

अमरेंद्र की बोर्ड परीक्षाएं नजदीक हैं, जिसे लेकर वह खासे परेशान हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "पिछला साल बर्बाद हो गया (क्योंकि स्कूल बंद थे) और मेरी पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी। इस साल, ओमीक्रोन ने हम जैसे ग्रामीण छात्रों पर फिर से कहर बरपाया है। हमारा स्कूल ऐसे समय में बंद है जब हमें अपने शिक्षकों की सबसे ज्यादा जरूरत है।"

उन्होंने कहा, "जो परीक्षक मेरी कॉपी जांचेगा, उसे मेरी मुश्किलों के बारे में नहीं पता होगा। मैं जो कुछ भी लिखूंगा, उसके आधार पर ही मेरा मूल्यांकन किया जाएगा। अगर हम शहरी बच्चों की तरह ऑनलाइन कक्षाएं नहीं ले सकते हैं, तो इसमें हमारी क्या गलती है।" अमरेंद्र उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सूरतगंज ब्लॉक के केस रायी गांव के रहने वाले हैं।

शहर में रहने वाले छात्रों के पास ऑनलाइन स्कूली शिक्षा और बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी के लिए स्मार्टफोन और इंटरनेट सुविधा मौजूद है। लेकिनदेश के गांवों में रहने वाले अमरेंद्र जैसे ज्यादातर छात्रों के पास वर्चुअल लर्निंग के लिए न तो फोन है और न ही नेटवर्क।

अमरेंद्र की बोर्ड परीक्षाएं नजदीक हैं, जिसे लेकर वह खासे परेशान हैं।

16 जनवरी को, उत्तर प्रदेश सरकार ने बढ़ते कोविड मामलों के मद्देनजर 16 जनवरी से 23 जनवरी तक स्कूलों को बंद करने की घोषणा की थी। हालांकि 18 महीने तक बंद रहने के बाद, पिछले साल 1 सितंबर को स्कूल फिर से खोले गए थे। लेकिन कोविड-19 के ओमिक्रॉनवेरिएंट के खतरे के कारण देश के कई राज्यों ने शैक्षणिक संस्थानों को फिर से बंद करने का आदेश दे दिया है। दूसरी तरफ देश में 15 साल से अधिक उम्र के बच्चों का टीकाकरण चल रहा है।

बाराबंकी के बेलहारा में रहने वाली 16 साल की मुस्कान जायसवाल 10 वीं कक्षा की छात्रा है। उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा,"मेरा स्कूल सर्दियों की छुट्टियों के चलते 31 दिसंबर से बंद था।16 जनवरी को खुलने वाला था। लेकिन इस कोरोना ने फिर से स्कूल बंद करा दिया।" वह शिकायत करते हुए कहती हैं, "सिर्फ स्कूलों को ही क्यों बंद किया जा रहा है। लोग भीड़-भाड़ वाले बाजारों में घूम रहे हैं, बाहर खाना खा रहे हैं, मौज मस्ती कर रहे हैं। ऐसा लगता है मानों बस स्कूलों का खुलना हीकोरोना का कारण है।"

कई माता-पिता ने भी शिकायकती लहजे में अपनी बात रखते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं सही विकल्प नहीं है। इनका भविष्य दांव पर लगा है। क्योंकि इनकी बोर्ड परीक्षाएं नजदीक हैं और इन छात्रों के पास मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं है।

16 साल की मुस्कान जायसवाल 10वीं कक्षा की छात्रा है।

मुस्कान की मां फूल कुमारी जायसवाल ने कहा, "हमारे पास एक फोन है लेकिन नेटवर्क इतना अच्छा नहीं है। यह सब परेशान करता है। मुझे अपनी बेटियों के भविष्य की चिंता है। मुझे डर है कि शहरी बच्चों और मेरी बेटियों के बीच की खाई अब और भी गहरी हो जाएगी।"

अवसर की असमानता के लिए जिम्मेदार डिजिटल डिवाइड

यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेन इंमरजेंसी फंड (यूनिसेफ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्कूल जाने वाले अधिकांश छात्र शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं क्योंकि उनके पास ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंचने के लिए डिजिटल उपकरणों की कमी है।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट ' कोविड-19 एंड स्कूल क्लोजर: वन ईयर ऑफ एज्युकेशन डिस्रप्शन" को 2 मार्च, 2021 को प्रकाशित किया गया था। इसके अनुसार, भारत में केवल 8.5 प्रतिशत छात्रों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है - शिक्षा के उनके संवैधानिक अधिकार तक पहुंचने में यह एकतकनीकी बाधा है।

अमरेंद्र अवस्थी कहते है, "मेरा सपना है कि मुझे एक अच्छी नौकरी मिले ताकि मेरे पिता को इतनी मेहनत न करनी पड़े। वह खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते हैं। स्कूल की फीस दे पाना ही मुश्किल हो जाता है। मैं कैसे उम्मीद कर सकता हूं कि वह मुझे लैपटॉप या स्मार्टफोन खरीद कर दे पाएंगे?

चार भाई-बहनों में सबसे बड़े 17 साल के अमरेंद्रउम्मीद कर रहे थे कि सर्दियों की छुट्टियों के बाद उनका स्कूल फिर से खुल जाएगा और पढ़ाई को लेकर जितनी भी शंकाएं या परेशानी हैं उनका समाधान अपने शिक्षकों से पा लेंगे। लेकिन महामारी के प्रकोप को रोकने के उपाय के रूप में एक बार फिर से स्कूलों को बंद करने की घोषणा कर दी गई। कोविड-19 के ओमीक्रॉनवेरिएंट फैलने से उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है।

यूनिसेफ की रिपोर्ट में भी पढ़ाई को लेकर ग्रामीण छात्रों के इस डर और चिंताको उजागर किया गया था। यूनिसेफकी कार्यकारी निदेशक हेनरीटाफोरने पिछले मार्च में रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था,

"हर एक बीतते दिन के साथ, व्यक्तिगत रूप से स्कूली शिक्षा तक पहुंचने में असमर्थ बच्चे पीछे और पीछे की ओर गिरते जा रहे हैं। सबसे अधिक खामियाजा हाशिए पर पड़े छात्रों को हो रहा है। उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।"

लड़कियों की शिक्षा पर बुरा असर

स्कूलों के बंद होने का सबसे ज्यादा असर लड़कियों पर पड़ रहा है। उनसे हमेशा से यह उम्मीद की जाती रही है कि वे घर पर रहते हुए खाना पकाने और सफाई जैसे घरेलू कामों में अपनी मां की मदद करें। कई परिवार अपनी किशोर बेटियों को स्मार्टफोनदेने में भी सहज नहीं हैं।

मिट्टी के चूल्हे के पास बैठी 17 साल की पुष्पा यादव ने गांव कनेक्शन से कहा कि ऑनलाइन कक्षाएं कभी भी कक्षा में सीखने का विकल्प नहीं हो सकती हैं।

बाराबंकी के तड़वा गांव की रहने वाली पुष्पा बारहवीं कक्षा में पढ़ती है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया,"मैं अपने दो भाई-बहनों के साथ स्कूल जाती हूं। जब स्कूल बंद हो जाता है और ऑनलाइन क्लास शुरु हो जाती हैं , तो हम तीनों में से सिर्फ एक को ही पढ़ने को मिलता है। वह भी तब, जब पापा घर पर हों और हमें अपना फोन देने के लिए तैयार हों। "वह आगे कहती हैं, " वैसे तो हम ऑनलाइन कक्षाओं में कुछ भी नहीं सीखते हैं। बस, यह एक तमाशा है। कई बार तो नेटवर्क इतना अच्छा नहीं होता कि हम वीडियोस्ट्रीमिंग या वीडियो कॉल कर सकें।"


इस बीच, बाराबंकी के कैथा गांव में दसवीं कक्षा की छात्रा तारणी श्रीवास्तव ने बताया कि कुछ माता-पिता विश्वास की कमी के चलते अपने बच्चों को फोन देना नहीं चाहते। मां-बाप का ऐसा व्यवहार उनके लिए काफी तनावपूर्ण है।

श्रीवास्तव ने गांव कनेक्शन को बताया, "मेरे माता-पिता मुझे फोन देने में आना-कानी करते हैं। उन्हें लगता है कि हम इसका गलत इस्तेमाल करेंगे। उन्हें समझाना बड़ा मुश्किल काम है। ये सब मेरा मूड खराब कर देते है और मैं परेशान हो जाती हूं। मेरे लिए पढ़ाई पर ध्यान देना मुश्किल हो जाता है।"

बोर्ड के नतीजों को लेकर शिक्षक चिंतित

बाराबंकी के गवर्नमेंट इंटरकॉलेज (जीआईसी) के एक रसायन शास्त्र के शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया कि ऑनलाइन कक्षाओं में छात्रों की उपस्थिति बेहद कम है।

उन्होंने कहा, "19 जनवरी को, मुझे एक ऑनलाइन क्लास लेनी थी। मैंने छात्रों को कक्षा के बारे में पहले ही बता दिया था लेकिन उसके बावजूद 35 में से बस एक छात्र ही ऑनलाइन था। बाद में काफी मशक्कत के बाद ही कुछ और छात्र इसमें शामिल हुए। आप इस तरह से छात्रों को ठीक ढ़ंग से नहीं पढ़ा सकते हैं।"

वह आगे कहते हैं, "हम असहाय महसूस कर रहे हैं। बोर्ड परीक्षाएं काफी नजदीक हैं। मार्च महीने में इनका होना तय है। छात्रों को स्कूल आकर पढ़ाई करने की सख्त जरूरत है। बहुत कम ऑनलाइन क्लासेजऐसी होती हैं जहां बच्चों की पूरी उपस्थिति हो। मैं परीक्षा के परिणामों को लेकर चिंतित हूं।"

बाराबंकीटके परमेश्वर इंटरकॉलेज के प्रिंसिपल वीरेश वर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन कक्षाएं पूरी तरह से असफल रहीं हैं। उन्होंने कहा, "मेरी समझ से तो लगभग 96 प्रतिशत छात्र ऑनलाइन माध्यम से सीखने में सक्षम नहीं हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए खराब कनेक्टिविटी से लेकर फोन की उपलब्धता तक कई मुद्दे हैं।"

गौरतलब है कि सितंबर 2021 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिक्षा विशेषज्ञों से ग्रामीण इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई के विकल्प सुझाने की अपील की थी। वाराणसी में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए, उन्होंने स्वीकार किया था कि मौजूदा कोविड-19 महामारी के कारण स्कूलों और ग्रामीण छात्रों के बीच संपर्क टूट गया है।

इस साल, मार्च में होने वाली बोर्ड परीक्षाओं में अकेले बाराबंकी जिले में 10 वीं और 12 वींके कुल 63,099 छात्र शामिल होंगे।

मूल लेखः- प्रत्यक्ष श्रीवास्तव

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