ये महिलाएं सिर्फ राखी नहीं बाधेंगी बल्कि उसे आजीविका का सहारा भी बनाएंगी

महिलाएं रक्षाबंधन त्योहार में ज्यादातर अपने भाइयों और पतियों पर निर्भर रहती हैं, उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की लगभग 9 हजार ग्रामीण महिलाएं अब न केवल अपने खर्च पर उत्सव का आनंद लेने में सक्षम हैं, बल्कि अपनी घरेलू आय में योगदान करने में सक्षम भी हैं।

Virendra SinghVirendra Singh   9 Aug 2022 11:40 AM GMT

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फतेहपुर, बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के फतेहपुर शहर की रहने वाली 30 वर्षीय मधु वर्मा पैसे कमाने और अपनी घरेलू आय में योगदान करने में सक्षम हैं, अपनी इस कामयाबी पर वह काफी खुश हैं।

मधु वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "पहले मैं घर पर रहती थी और घर का खर्च चलाने के लिए अपने घर की कमाई पर निर्भर थी, लेकिन जब से मैं राखी बनाने वाले स्वयं सहायता समूह में शामिल हुई हूं। मैं एक दिन में 300 रुपये से लेकर 400 रुपये के बीच कमा लेती हूं और यह वास्तव में अच्छा लगता है। मेरे पास अपना पैसा है और इसका इस्तेमाल घर के खर्च वहन करने के लिए करती हूं।"

बाराबंकी के फतेहपुर ब्लॉक में, 9 हजार महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में काम कर रही हैं। इन महिलाओं को जिला प्रशासन की तरफ से ऐसे उत्पाद बनाने के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है, जिनकी त्योहारों के दौरान अधिक मांग होती है। वे दिवाली में दीपक, होली में सूखे रंग [गुलाल] और रक्षाबंधन में राखी बनाती हैं।


फतेहपुर में एनआरएलएम के ब्लॉक मिशन मैनेजर धनंजय सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, "फतेहपुर ब्लॉक में 900 ऐसी स्वयं सहायता समूह हैं जिन्होंने 2020 में अपना संचालन शुरू किया है। राखी बनाने का काम दो महीने से चल रहा है, स्थानीय तौर पर और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर इन राखियों की मांग काफी ज्यादा है। यह राखियां अमेजॉन पर उपलब्ध हैं।"

जय हनुमान स्वयं सहायता समूह की सचिव नेहा वर्मा ने बताया कि हमारे समूह की शुरुआत चार महिला कार्यकर्ताओं से हुई थी, लेकिन अब इस समूह में 15 महिलाएं शामिल हो गई हैं।

वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "इन महिलाओं ने अब तक 50,000 राखियां बनाई हैं और हम मौजूदा रक्षाबंधन के त्योहारी सीजन में अच्छे मुनाफे की उम्मीद कर रहे हैं।"


'मनोबल बूस्टर, सशक्तिकरण'

इस बीच, सुनीता देवी जो तीन बच्चों की मां हैं, ने गाँव कनेक्शन को बताया कि स्वयं सहायता समूह का हिस्सा बनने से उन्हें अपने पन की एहसास होता है और अर्जित लाभ से उन्हें अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा होता है।

उन्होंने बताया, "मेरे पति घर में अकेले कमाने वाले थे लेकिन मैं अब उनकी कमाई में योगदान देती हूं। एक राखी बनाने में 20 रुपये का कच्चा माल इस्तेमाल होता है और 50 रुपये में बिक जाती है। जब से मैंने इसकी शुरुआत की है तब से मैं अपने अंदर अधिक आजादी और आत्मविश्वास महसूस करती हूं।"

समूह की एक अन्य कार्यकर्ता रामवती ने बताया कि त्योहारों के मौसम की शुरुआत उनके लिए चिंताओं से भरी हुई थी क्योंकि त्योहारों का मतलब खर्चों में बढ़ोतरी थी।

उन्होंने खुशी से कहा,"लेकिन अब, हम इन त्योहारों का बेसब्री से इंतजार करते हैं क्योंकि हमारे पास उन्हें पूरे दिल से मनाने के लिए पर्याप्त पैसा है। साथ ही, त्योहारों का मौसम हमारे लिए व्यापार के अवसर लाता है। हम दिवाली के दौरान अगरबत्ती और सुगंधित दीये भी बनाते हैं।"

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