आर्मी का रिटायर जवान जो ओलम्पिक में देश के लिए मेडल जीतना चाहता है

Ankit ChauhanAnkit Chauhan   30 Aug 2019 9:35 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

अरवल्ली (गुजरात)। आर्मी से रिटायर होने के बाद भी इनका जज्बा कम नहीं हुआ है, गुजरात के एकमात्र वर्ल्ड रेस वॉकिंग खिलाड़ी बाबूभाई अब देश के लिए ओलंपिक में गोल्ड लाना चाहते हैं।

गुजरात के अरवल्ली जिले के मालपुर तहसील के अंबावा गाँव के बाबूभाई पणुचा हर दिन आधी रात में उठकर चालीस किमी रेस वॉकिंग की प्रैक्टिस करते हैं, ताकि वो ओलम्पिक में देश के लिए दौड़ सकें। लेकिन आगे के लिए उन्हें सरकार की मदद चाहिए।

अपनी शुरूआत के बारे में बाबूभाई पणुचा बताते हैं, "साल 1995 में मैंने आर्मी ज्वाइन किया था, उसके बाद से मैंने कैंप में हिस्सा लेना शुरू किया, इंडिया के लिए मैंने कई कंपटीशन में भाग लिया।"

वो आगे कहते हैं, "मुझे रिटायर हुए एक साल हो गए हैं, अभी घर पर रहकर ही प्रैक्टिस कर रहा हूं, अभी खेती कर रहा हूं। एक बार फिर मुझे उम्मीद जगी है, साल 2012 में हुए रेस वॉकिंग चैंपियनशिप में मैंने भाग लिया था, उस समय इंडिया की फोर्थ पोजीशन थी, दूसरे नंबर पर यूक्रेन का जो खिलाड़ी था वो डोपिंग में फंस गया है, इससे उनसे सिल्वर मेडल ले लिया गया है, तो तीसरे नंबर के खिलाड़ी को अब सिल्वर मिलेगा और मुझे ब्रॉंज मिल जाएगा।"

वो बताते हैं, "रात के दो बजे उठकर मैं प्रैक्टिस करता हूं, बीस किमी जाता हूं और बीस किमी वापस आता हूं, बुधवार और शनिवार के 30 किमी जाता हूं, बाकि के दिनों में चालीस किमी हर दिन प्रैक्टिस कर हूं।"

बाबुभाई पणुचाने साल 2000 में रेस वोकिंग की शुरुआत की थी ओर काफी मेहतन थी, पर वो सफलता से काफी दूर थे पर उनकी मेहनत रंग लाई ओर साल 2007 में उनको सफलता मिली थी। साल 2007 में कोलकाता में आयोजित राष्ट्रीय रेस वोकिंग में बाबुभाई ने सिल्वर मेडल जीता था। बाबुभाई रुके नहीं और सफलता की सीढ़ी पर चढ़ने के लिए कड़ी मेहनत जारी रखी। वो भारतीय टीम के साथ जुड़े ओर भोपाल में खेले गए सिनियर एथ्लेटिक चैम्पियनशिप में उन्होंने 20 किमी की रेस में नेशनल रिकॉर्ड बनाया।


वो बताते हैं, "2007 में भोपाल में मैंने पहली बार मिलिट्री कैंप भाग लिया था, उसके बाद जमशेदपुर में हुए वर्ल्ड मिलिट्री कैंप में मैंने रिकॉर्ड बनाया। इसके लिए मुझे बेस्ट एथलीट का भी अवार्ड मिला। उसके बाद मैं लंदन कैंप में गया, जिसके लिए मैंने 2007 में ही क्ववालिफाई कर लिया था। उसके बाद 2009 में वर्ल्ड रेस वॉकिंग चैम्पियनशिप में चौथे नंबर पर रहा।"

जमशेदपुर में ओलिम्पिक क्वोलिफाई राउन्ड में उन्हे बड़ी सफलती मिली ओर वो लंदन में तीन महीने के लिए ट्रेनिंग के लिए गए। पर तीसरे राउन्ड में पैर में चोट की वजह से वो बाहर हो गए थे। बाबुभाई कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कक्षा पर खेले गए रेस वॉकिंग में कई खिताब जीते और वर्ल्ड के अखबारो की सुर्खिया भी बने, कई खिताबों से भी नवाजा गया।

मेरा सपना है कि मैं 2020 को होने वाले ओलंपिक में मैं देश के लिए खेल सकूं, चाहता हूं कि सरकार कोई मदद करे सके। जो मैंने दिन रात पसीना बहाया है, जिस तरह मैं इस मुकाम पर पहुंचा हूं।

बाबूभाई कच्चा घर है जहां पर वे उनके मां ओर पिता के साथे उनकी पत्नी और एक बेटा रहते हैं। इतना कुछ हासिल करने के बाद भी उनके पास सिर्फ आर्मी से पेन्शन मिलती है जिसमें से उनके परिवार का गुजारा होता है। आज भी खाना उनके घर चूल्हे पर बनता है ओर कभी कभी वो खुद ही खाना बनाते हैं ओर परिवार के काम में अपना हाथ बढ़ाते हैं। पशुओं को चारा ओर अन्य काम भी बाबुभाई खुद ही करते हैं ताकि घर का गुजारा आसानी से हो सके।

ये भी देखिए : छत्तीसगढ़: बच्‍चों को पढ़ाने के लिए उफनाई नदी पार करते हैं श‍िक्षक


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.