नर्सरी से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का हो रहा मुनाफा

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अरविंद सिंह परमार, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

ललितपुर (उत्तर प्रदेश)। बुंदेलखंड में गाँवों की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से सहारा मिल रहा है, उनकी आर्थिक स्थिती में सुधार आया परिवार की अर्थव्यवस्था में पुरूषों का हाथ बटाने लगी हैं साथ ही साथ उनका आत्म विश्वास बढ़ने लगा। वो सुबह से हंसी खुशी घर का चूल्हा चौका करने के बाद दिन भर नर्सरी पर काम करती उसके बदले उन्हें मनरेगा से मजदूरी भी मिलती है वो समूह में अच्छी खासी बचत करने लगी हैं।

पिछले तीन साल पहले राजीव गांधी आजीविका मिशन से समूह बनाकर खाते का संचालन शुरू किया। इन महिलाओं ने तीन साल बचत कर आपस में लेन देन एक लाख दस हजार की बचत कर चुकी हैं। आपस में साठ हजार का लेन देन करके अपनी जरूरतें पूरी की, लेकिन कोई नया काम शुरू नहीं कर पायी। एक दिन किरण समूह का पैसा निकालने बैंक गयी पैसा नहीं निकला समस्या सुनाने ब्लॉक पहुंची तो वीडियो साहब ने नर्सरी लगाने का सुझाव के साथ सहयोग करने की बात कही।


मनरेगा से समूह को प्रोत्साहन मिला आत्मविश्वास से भरी किरण ने समूह से तैयार नर्सरी दिखाते हुए कहती हैं, "अब तो मनरेगा से 175 रुपए मजदूरी का पैसा मिलने लगा है, महिलाएं घर का कामकाज निपटाने के बाद नर्सरी पर काम करती हैं समूह के खाते में एक लाख दस हजार रूपयों की बचत हैं साठ हजार का लेन देन आपस में कर चुके हैं। नर्सरी के पौधों की बिक्री से जो पैसा आयेगा इससे हमारे समूह की बचत भी बढ़ेगी और सभी महिलाओं का फायदा भी होगा।"

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किरन (36 वर्ष) बुंदेलखंड के अति पिछड़े जिले ललितपुर मुख्यालय से पूर्व दिशा में 27 किलोमीटर दूर महरौनी ब्लॉक की ग्राम पंचायत सिलावन की रहने वाली हैं, ये राधारानी स्वयं सहायता समूह की कोषाध्यक्ष हैं। मनरेगा और एनआरएलएम से कनर्वेजन्स से राधा रानी स्वयं सहायता समूह से नर्सरी तैयार की गई है।


खुशी का इजहार करते हुए किरण बताती हैं, "हम सभी बहुत खुश हैं आधा एकड़ में बनी नर्सरी में पचास हजार पौध लगे हैं, बरसात शुरू होते ही हमारे पौध की बिक्री शुरू हो जायेगी। जो लगभग पाँच लाख तक की बिक्री होने का अनुमान हैं समूह की महिलाओं की इनकम भी बढ़ेगी और बचत भी होगी।"

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ये महिलाएं खेती के काम के साथ मेहनत मजदूरी करने जाती थी, कभी मिलती थी और कभी नहीं। दो पैसों के लिए सब कुछ करते थे। जब से इन महिलाओं ने समूह का काम किया तब से आर्थिक रूप से सशक्त होने लगी। इसी समूह की सदस्य सरोज (40 वर्ष) बताती हैं, "समूह की दसों महिलाएं इस काम से जुड़ी हैं तभी से सभी समस्याएं हल हो रही हैं। समूह से लेखा जोखा और लेनदेन कर रहे हैं बैठक कर समूह का पैसा भी समय से वापिस कर रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई लिखाई कपड़े सभी का खर्च आसानी से चल जाता हैं अब काम को दूसरों के यहां नहीं जाना पड़ता।"


समूह से नर्सरी में तैयार पौध को देखकर महिलाएं खुश हैं इसी समूह की कटू बाई (58 वर्ष) का कहना हैं, "हमारा हाथ टूट गया था फिर भी हम करते रहे एक हाथ से पौध की थैलिया भरते रहे। मनरेगा से मजदूरी मिल रही हैं घर का नमक तेल बच्चों का खर्च चल जाता हैं, पहले दूसरों से पैसा उधार पैसे लेते थे अब समूह के पैसे आने से दूसरों का चुका देते हैं। अब पौधों से बिक्री होगी और पैसा भी मिलेगा। हम सास बहू इसी समूह में हैं।"

समूहों को मजबूत कर महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण करना प्रमुख उद्देश्य है्र महरौनी ब्लाँक के चार गाँवों में समूह तैयार कर नर्सरी लगवाई हैं हर पंचायत में दो दो हजार पौधरोपण का लक्ष्य है। इन्हीं समूह के पौधों से लक्ष्य को पूरा किया जायेगा, जिससे ग्रामीण समूह की महिलाओं की आय बढ़े और वो स्वावलंबी बनने की बात का हवाला देते हुए उमेश कुमार झा अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी (APO)मनरेगा ब्लॉक महरौनी बताते हैं, "इसी तरह के समूह हर पंचायत पर तैयार कर महिलाओं को मजबूत किया जायेगा। हर पंचायत में सिटीजन इनर्फोमेशन वोर्ड बनवाने का काम होगा। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा कार्यो पर इनर्फोमेशन वोर्ड समूह से तैयार किये जाएंगे।"

वो आगे बताते हैं कि समूह से साईन वोर्ड बनवाएंगे और हर पंचायत में सप्लाई कराएंगे ताकि समूहों को सीधा पैसा मिल सके अपने लाभ को आपस में बांट सके। हर पंचायत में नर्सरी की तर्ज पर दो से तीन समूह तैयार करने का लक्ष्य हैं, इस तरह से मनरेगा एवं एनआरएलएम के सहयोग से सम्भव हो पा रहा हैं।

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