सुभाष पालेकर से जानिए क्यों बदल दिया 'जीरो बजट खेती' का नाम

Mohit SainiMohit Saini   24 Sep 2019 12:40 PM GMT

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देश-विदेश के कृषि विश्वविद्यालयों से लेकर खेत-खलिहानों तक आजकल सुभाष पालेकर की चर्चा होती है। सुभाष पालेकर अपनी जीरो बजट खेती को लेकर हमेशा चर्चा में रहते हैं, जिसका नाम बदलकर अब सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि कर दिया गया।

जीरो बजट खेती के नाम बदलने के बारे में सुभाष पालेकर कहते हैं, "जीरो बजट ही नहीं है तो जीरो बजट किस बात का, अब इसका नाम बदल दिया गया है। इसका नाम बदलकर सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि ( Subhash Palekar Prakritik krishi) कर दिया गया है।"

जैविक खेती के बारे में वो बताते हैं, "जैविक खेती सबसे खतरनाक है, ये एक विदेशी षणयंत्र है, जितनी खतरनाक रासायनिक खेती होती है, उससे कई गुना खतरनाक जैविक खेती होती है। इससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ता है, किसानों की आत्महत्याएं बढ़ती हैं और भूमि की जो उर्वरा शक्ति है वो घटती है।"

"हम देसी बीजों का संकलन कर रहे हैं, जगह-जगह जाकर जहां भी देसी बीज हैं, उन्हें हम इकट्ठा कर रहे हैं, हमारी संस्थाएं लगी हुई हैं। हम उसे मल्टीप्लाई करते हैं और किसानों को उपलब्ध कराते हैं। हमारी विधि से यही फायदा है कि हमारी विधि से खेती करने पर जैविक के मुकाबले ज्यादा उत्पादन मिलता है, "सुभाष पालेकर ने आगे बताया।

शोभित विश्वविद्यालय के कुलपति एपी गर्ग बताते हैं, "जो संकर बीज हैं जो जेनेटिकली स्टेबल नहीं होते हैं, स्टेबिलटी न होने पर वो चार-पांच सालों में उनकी पैदावार खत्म हो जाती है। लेकिन जो देसी बीज सदियों से चले आ रहे हैं उनमें पोषकता भरपूर होती है। उनका उत्पादन भी बहुत अच्छा है बस इतना है कि हम उन्हें अच्छी तरह से ग्रो कराएं, इससे बच्चों में जो कुपोषण की समस्या भी कम हो सकती है, किसानों की आय भी दोगुनी हो सकती है।

सुभाष पालेकर ने बताया कि 15 सालों के गहन अनुसंधान के बाद उन्होंने एक पद्धति विकसित की थी, जिसको शून्य लागत प्राकृतिक कृषि का नाम दिया। इस पद्धति को प्रचार-प्रसार के लिए वह किसानों को प्रशिक्षण देने लगे। उन्होंने बताया कि वह पिछले 20 सालों से लगातार शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की खेती का प्रशिक्षण देने सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गए। आज इस पद्धति को अपनाकर लाखों को बिना लागत के खेती से अपनी आय बढ़ाते हुए मुनाफा कमा रहे हैं।

देश की कृषि में सुभाष पालेकर के इस योगदान को देते हुए साल 2016 में भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री सम्मान से अलंकृत किया। आंध्रप्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार ने उन्हें अपने राज्य का कृषि सलाहकार बनाया है साथ ही एक शून्य लागत प्राकृतिक कृषि विश्वविद्यालय बनाने की भी घोषणा की है।

किसानों के बीच कृषि ऋषि के रूप में पहचाने जाने वाले सुभाष पालेकर का अधिकतर समय किसानों के प्रशिक्षण शिविर में बीतता है। सबसे खास बात यह है कि वह किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। सुभाष पालेकर एक कृषि वैज्ञानिक के साथ ही संपादक भी हैं वह 1996 से लेकर 1998 तक कृषि पत्रिका का संपादन भी कर चुके हैं। साथ ही हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी सहित कई भाषाओं में 15 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। सुभाष पालेकर की तरफ से विकसित भू-पोषक द्रव्य ''जीवामृत '' पर आईआईटी दिल्ली के छात्र शोध भी कर रहे हैं। सुभाष पालेकर को सुनकर और यू-ट्यूब पर उनके वीडियो देखकर बड़ी संख्या में युवा अपना करियर छोड़कर खेती करने की तरफ लौट रहे हैं।

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