गांव तक नहीं पहुंची सरकार की नजर तो आदिवासी महिलाओं ने खुद बना ली सड़क और बोरी बांध

Neetu SinghNeetu Singh   9 Aug 2019 5:27 AM GMT

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लातेहार (झारखंड)। झारखंड का एक गांव इन दिनों चर्चा में है। वजह हैं गांव की महिलाएं, जिन्होंने अपने दम पर ऐसा काम कर दिया है कि अधिकारी उनकी तारीफ कर रहे हैं तो दूसरे गांवों के लोग उनसे प्रेरणा ले रहे हैं। लोग इन्हें महिला मांझी भी कहने लगे हैं।

झारखंड के लातेहार जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर हेसलबार गांव पड़ता है। ये आदिवासी गांव सासंग ग्राम पंचायत का हिस्सा है। इस गांव की सबसे बड़ी समस्या है वो दो बरसाती नदियां जिन्हें पारकर इस गांव तक पहुंचना होता है। बरसात में जब इन नदियों का पानी उफान पर होता है तो यहां के लोग कैद होकर रह जाते हैं। बरसात में नदियों का ये पानी इनके लिए सिर्फ मुसीबत था, क्योंकि इससे न तो ये आवागमन कर पाते और न ही बरसात के बाद कभी इस पानी से सिचाई कर पाते।

लेकिन यहां की महिलाओं ने मिलकर इस मर्ज का इलाज कर दिया। एक नदी पर सीमेंट की बोरियों में मिट्टी भरभर कर चैक डैम बना दिया। अब जंगल से गांव तक पहुंचने का रस्ता भी बन गया है और नदी का पानी सिंचाई के काम आने लगा है। गांव की सैकड़ों बीघा जमीन में फसलें उगने लगी है।

जंगलों से गुजरते हुए अब जब आप हेसलबार पहुंचेंगे तो यहां दूर से ये चैकडैम (बोरी बांध) दिखाई देगा। सर पर पानी लेकर आ रही सुषमा नौनवार (24 वर्ष) से जब गांव कनेक्शन संवाददाता ने बांध के फायदे पूछे तो उनकी खुशी देखने वाली थीं। "ये पुल हम लोगों ने मिलकर बनाया है। हमारे गांव में पानी की बहुत समस्या थी। ज्यादातर खेत खाली पड़े रहते थे। गांव के पुरुष कमाने के लिए महाराष्ट्र समेत दूसरे राज्यों में चले जाते थे। फिर हम लोगों ने मिलकर एक दिन ये बांध बनाने की सोची। और अब गांव की कई समस्याएं दूर हुई हैं।"

इन्हीं महिलाओं ने मिलकर बनाया चेकडैम और सड़क

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गांव के लोगों ने सिर्फ चेकडैम नहीं बनाया बल्कि गांव से स्कूल तक जाने वाली पथरीली ऊबड़-खाबड़ सड़क को भी मिट्टी डालकर बेहतर बना दिया है। सुषमा देवी जहां खड़ी थीं वहां से दूर दिखती सड़क की तरफ इशारा करते हुए वो बोलीं, दो किलोमीटर की इस सड़क पर इतने गड्ढे थे कि लोग गिर जाते थे। अब हमारे बच्चे आसानी से स्कूल पहुंच जाते हैं। हमारा गांव जंगलों से घिरा हुआ है, काफी समय से हम लोग परेशान थे, किसी ने सुध नहीं ली तो हम लोगों ने अपनी मेहनत से ये सब बनाया।"

बोरी बांध पर बैठी महिलाएं

गांव में पत्रकार के आने की ख़बर सुनकर आसपास की 50 से ज्यादा महिलाएं इकट्ठा हो गईं थीं। वो जानना चाहती थीं आखिर उनके बीहड़ और वीरान गांव में नया कौन आया है। गांव की निवासी माथा तोपनों (55 वर्ष) बताती हैं, " पहले तो यहां कोई आता ही नहीं था, लेकिन पुल (चैकडैम) और सड़क बनने के बाद कलेक्टर साहब (जिलाधिकारी) और बीडीओ (प्रखंड विकास अधिकारी) सर कई बार आ चुके हैं। हम लोग बहुत खुश हैं कि हमारे गांव का अब विकास हो रहा है।"

हमारे यहां पानी की बहुत समस्या थी। ज्यादातर खेत खाली पड़े रहते थे। किसी ने सुध नहीं ली तो हम लोगों ने सीमेंट की बोरी में मिट्टी भरकर ये बाँध (चैकडैम) बना लिया। सिंचाई की सुविधा होने से अब हम लोग खेती करने लगे हैं।
सुषमा नौनवार, निवासी, हेसलबार, झारखंड

हेसलबार गांव में करीब 60 आदिवासी परिवार रहते हैं। संसाधनों से जूझते इन लोगों को सरकार से ज्यादा शिकायत नहीं क्योंकि इन्हें अपने काम पर ज्यादा भरोसा है। गांव के लोगों में उम्मीद यहां की महिलाओं के आगे आने से जगी है। गांव की ज्यादातर महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत सखी मंडल से जुड़ी हैं। समूह में बचत के साथ ये महिलाएं सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं, गांव की सड़क और बांध उसी एकजुटता का नतीजा है। पहले जहां गांव के युवा 6 महीने दूसरे प्रदेशों में काम करने जाते थे वहीं अब पलायन कम हुआ है। महिलाएं बकरी पालन, खेती, पशुपालन और वन आधारित कार्य कर रही है।


लातेहार के कलेक्टर राजीव कुमार ने गांव कनेक्शन संवाददाता से फोन पर इस गांव के अनुभव बताए। "मैं तीन बार इस गांव जा चुका हूं। गांव की महिलाओं और लोगों ने जो काम किया है वो काबिले तारीफ है। लातेहार जिले में और भी ऐसे कई गांव हैं जहां के लोगों ने खुद के प्रयासों और श्रमदान से गांवों की सूरत बदली है।"

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कलेक्टर लातेहर बताते हैं, "इस गाँव में एक महिला के पास 75 बकरियां हैं पिछले साल इस महिला ने तीन लाख रुपए की बकरियां बेची थीं। गाँव में रोजगार के आभाव की वजह से इस गाँव के 30-35 वर्ष के सभी युवा छह महीने के लिए कमाने महाराष्ट्र चले जाते थे लेकिन अब ये पलायन पहले से कम हुआ है।"

जीवन फूल आजीविका स्वयं सहायता समूह की एलीजबेद भेंगरा (30 वर्ष) ने कहा, "गांव की कई सस्याएं हम लोगों ने मिलकर सुलझा ली हैं। लेकिन कुछ हमारे हाथ में नहीं हैं। हमारे यहां का सरकारी स्कूल जर्जर पड़ा है। दो नदियों के बीच कोई पुल नहीं है। जिससे बरसात में आने जाने में काफी दिक्कत होती है। अगर स्कूल की हालत सही हो जाए और एक पुल बन जाए तो बहुत अच्छा होगा।"


  

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