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मर्सीडीज़ की कीमत के बराबर वाला ट्रैक्टर बना आकर्षण का केंद्र, लेकिन खेती में नहीं इस काम में होता है इस्तेमाल

ज्यादातर ट्रैक्टर की कीमत 5 से 15 लाख रुपए के बीच होती है लेकिन हरियाणा की एक खाप के पास 35 लाख रुपए से ज्यादा का ट्रैक्टर है, वो इसी ट्रैक्टर से किसानों को समर्थन देने पहुंचे हैं, जानिए क्यों खास है ये ट्रैक्टर और क्या होता है इसका इस्तेमाल?
#Tractor

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन कई ऐसी चीजें हैं जो लोगों को ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं। उन्हीं में से एक है 35 लाख से 36 लाख रुपए से ज्यादा की कीमत वाला ट्रैक्टर। इस ट्रैक्टर के मालिक का दावा है कि ऑडी और मर्सिडीज़ से लगभग की बराबर कीमत वाला ये ट्रैक्टर देशभर में इकलौता है। ये ट्रैक्टर खेती के काम नहीं आता है बल्कि इससे एक खास तरह का काम लिया जाता है।

शौक की कोई कीमत नहीं होती है। फिर भी जानकारी के लिए बता रहा हूं अब तक 35 लाख से 36 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। लोग पहले हाथी पालते थे अब हाथी तो पाल नहीं सकते तो हमने ये ट्रैक्टर रखा है- ओम प्रधान, जहांगीरपुर,हरियाणा

गुलिया खाप के प्रधान चौधरी सुनील गुलिया ने इस ट्रैक्टर को खास तौर से तैयार कराया है। आगे इसमें वो एक तोप भी लगवाने वाले हैं। फोटो- अरविंद शुक्ला

दिल्ली-हरियाणा के बॉर्डर टिकरी पर, जहां किसानों का एक बड़ा जत्था आंदोलन कर रहा है, यहां खड़ा एक ट्रैक्टर लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। ट्रैक्टर मालिक के अनुसार इस ट्रैक्टर को मॉडिफाई (विशेष रुपए तैयार) किया गया है और इसमें अब तक क़रीब 36 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी समेत दूसरे कई राज्यों के जो किसान टिकरी बॉर्डर पहुंचते हैं वो इस ट्रैक्टर को देखने की कोशिश ज़रूर करते हैं। दिन में कई लोग ट्रैक्टर के साथ अपनी फोटो खिंचवाते, सेल्फी लेते दिख जाएंगे। देखिए वीडियो

इस ट्रैक्टर के मालिक हरियाणा में झज्झर जिले के जहांगीरपुर गांव के चौधरी सुनील गुलिया हैं। सुनील गुलिया, गुलिया खाप 84 के प्रधान भी हैं और ये ट्रैक्टर उन्होंने अपनी खाप को समर्पित किया है। गांव कनेक्शन से खास बातचीत में सुनील गुलिया बताते हैं, “ये ट्रैक्टर किसानों का प्रतीक है, ये ट्रैक्टर किसान आंदोलन में जोश भर रहा है। इस मशीन का हरित क्रांति लाने में बहुत बड़ा योगदान है। हम चाहते हैं, लोग इस ट्रैक्टर को देखें और खेती के लिए प्रेरित हों। इस ट्रैक्टर को हमने अपनी खाप को समर्पित किया है ये हमारी शाही सवारी है।”

ये ट्रैक्टर किसान आंदोलन में जोश भर रहा है। इस मशीन का हरित क्रांति लाने में बहुत बड़ा योगदान है। हम चाहते हैं, लोग इस ट्रैक्टर को देखें और खेती के लिए प्रेरित हों। ये हमारी शाही सवारी है- चौधरी सुनील गुलिया, प्रधान गुलिया खाप 84

भारत में अमूमन इस्तेमाल किए जाने वाले ट्रैक्टर में दो बड़े पहिए पीछे और 2 छोटे पहिए आगे होते हैं। लेकिन इस ट्रैक्टर में 4 काफी बड़े पहिए पीछे लगे हैं जबकि 4 बड़े पहिए आगे लगे हैं। आगे वाले पहिए उतने बड़े हैं जितने सामान्य ट्रैक्टरों में पीछे लगे होते हैं। रंग बिरंगी लाइट, विशेष हार्न, सीट के साथ ही ट्रैक्टर की ट्राली भी बहुत खास है। इसकी ट्राली को भी खास तरह से डिज़ाइन किया गया है, जिसमें सामान्य ट्राली की तरह सामान/बोझ रखने की जगह लग्जरी (आरामदायक) सीटें लगी हैं, जिसके पीछे लिखा है, “सर्व खुलिया खाप, शक्ति वाहन”।

सुनील गुलिया बताते हैं, “इस ट्रैक्टर से खेती नहीं होती, जब खाप का या कोई दूसरा बड़ा आजोयन होता है तो हमारे खाप के वरिष्ठ लोग इस पर बैठकर जाते हैं, ये बस इसी काम के लिए हैं। ये हमारी शान का प्रतीक है। अभी इसमें 36 लाख के रुपए के आसपास लग चुके हैं आगे मैं इसमें और पैसे खर्च करुंगा और एक तोप भी लगवाऊंगा।”

खुलिया खाप के पूर्व प्रधान और सुनील गुलिया के चाचा ओम प्रधान ट्रैक्टर की कीमत के बारे में कहते हैं, “शौक की कोई कीमत नहीं होती है। फिर भी जानकारी के लिए बता रहा हूं अब तक 35 लाख से 36 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। लोग पहले हाथी पालते थे अब हाथी तो पाल नहीं सकते तो हमने ये ट्रैक्टर रखा है।”

किसान आंदोलन के समर्थन में खाप

कृषि क़ानूनों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे किसान संगठनों को कई खापों ने समर्थन दिया है। खाप के जुड़े लोग न सिर्फ प्रदर्शन में पहुंच रहे हैं बल्कि किसानों के लिए खाने-पीने रहने का इंतज़ाम भी कर रहे हैं। गुलिया खाप भी किसानों के समर्थन में है। चौधरी सुनील गुलिया और उनकी खाप से जुड़े कई बड़े नेता टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन का हिस्सा हैं।

किसान आंदोलन को लेकर सुनील गुलिया कहते हैं, “ये टाइम किसानों के रज़ाई में सोने का और खेत में काम करने का है, लेकिन सरकार की नाकामी के चलते वो यहां सर्दी में बैठने को मजबूर हैं, हम चाहते हैं सरकार किसानों की मांग मान लें।”

खाप क्या होती हैं

एक गोत्र या बिरादरी के लोग मिलकर खाप बनाते हैं, जिसमें उस वर्ग से जुड़े गांव उसमें शामिल होते हैं। इन गांवों की संख्या 5 से 25 तक या उससे अधिक भी हो सकती है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में खाप पंचायतें ज्यादा है। जिस इलाके में जिस गोत्र के लोग ज्यादा होते हैं वहां अमूमन उस खाप का प्रभाव ज्यादा रहता है। ज्यादातर बार खाप के पंचों के फैसलों को उस गोत्र या बिरादरी से जुड़े सभी लोग मानते हैं। 

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