उत्तराखंड में जल्द ही बनकर तैयार हो जाएगा, प्रदेश का सबसे लंबा सस्पेंशन पुल 'डोबरा-चांठी'

उत्तराखंड में भारत का सबसे लंबा सस्पेंशन पुल: पिछले कई वर्षों इंतजार कर रहे तीन लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी आसान हो जाएगी, क्योंकि साल 2006 से बन रहा सबसे लंबा सस्पेंशन पुल जल्द ही बनकर तैयार हो जाएगा।

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रोबिन सिंह चौहान, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

टिहरी (उत्तराखंड)। पिछले कई वर्षों इंतजार कर रहे तीन लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी आसान हो जाएगी, क्योंकि साल 2006 से बन रहा सबसे लंबा सस्पेंशन पुल जल्द ही बनकर तैयार हो जाएगा।

उत्तराखंड के टिहरी जिला मुख्यालय को प्रताप नगर ब्लॉक से यह पुल जोड़ता है। टिहरी जिले में टिहरी बांध बनने के बाद लगभग 40 किलोमीटर बड़ी जो झील बनी उसमें इस इलाके को जोड़ने वाले तमाम पुल और रास्ते झील के पानी में डूब गए, जिसके बाद से यह पुल बनाने की मांग की जा रही थी। लेकिन साल 2006 से बन रहा ये पुल अलग-अलग कारणों नहीं बन पाया और 14 साल से ज्यादा हो गए। यह पुल अपने आप में बेहद खास है क्योंकि यह का एकमात्र मोटरेबल झूला पुल है जिसकी लंबाई 440 मीटर के लगभग है इससे बड़ा झूला पुल देश में नहीं है अब यह उम्मीद जगी है कि अगले साल तक मार्च महीने में यह पुल पूरा हो जाएगा।


स्थानीय निवायी आजाद सिंह बिष्ट बताते हैं, "इसे काला पानी कहा जाता था क्योंकि पुल न होने से यहां की जनता बहुत त्रस्त थी, पुल न होने से हमें कोई सुविधा ही नहीं मिल पाती थी, कहीं आने जाने के लिए भी बहुत परेशानी उठानी पड़ती थी। लेकिन अब पुल बन जाने से राहत मिल जाएगी, इससे धन की बचत होगी, समय की भी बचत होगी।"

पुल काम देख रहे पीडब्ल्यूडी के प्रोजेक्ट मैनेजर केएस असवाल बताते हैं, "डिजाइन के हिसाब से ये पुल बहुत खास है, क्योंकि देश में सबसे लंबा सस्पेंशन पुल होगा, बिना विंड और रिवर्स केबल के ये पहला पुल है। जितने पुल आप देखेंगे वो बिना रिवर्स केबल के नहीं होते हैं। लेकिन इस ब्रिज में इस तरह की कोई केबल नहीं है, इसे बनाना हमारे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था, अभी इसकी प्रक्रिया चल ही रही है, मार्च 2020 तक ये बन कर तैयार हो जाएगा।"


बजट के बारे में वो बताते हैं, "इसको बनाने के लिए 89 करोड़ का पास किया गया था, आईआईटी रुड़की ने इसकी लंबाई 396 मीटर निर्धारित की थी बाद में ये 440 मीटर हो गया, जिसके इसकी कॉस्ट बढ़कर लगभग 140 करोड़ रुपए चली गई, इसे वहीं पर रोक दिया गया। बाद में बैलेंस वर्क के लिए फिर 150 करोड़ पास किया गया। इसके तहत अभी काम चल रहा है, साल 2006 में जब ये बनना शुरू हुआ तो इसमें टेक्निकल प्रॉब्लम्स बहुत आयीं हैं 2010 के आसपास, उसके बाद भी काफी दिक्कतें हुईं। उसके बाद बहुत समस्याएं आयीं, एक तो यहां दो बजे के बाद बहुत तेज हवाएं चलती हैं, उस समय लेबर को यहां से उतारना पड़ता है दूसरा टॉवर पर लिमिटेड स्पेस है वहां पर छह बाई चार फीट की जगह इसलिए जब कोई ऊपर काम कर रहा होता है तो नीचे से लोगों को हटाना पड़ता है।

यह पुल टिहरी बांध प्रभावित प्रतापनगर और उत्तरकाशी के गाजणा क्षेत्र की बड़ी आबादी को जोड़ने के लिए बन रहा है। 2006 में पुल का काम शुरू हो गया था। पुल 300 करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया।

प्रतापनगर के विधायक विजय सिंह पंवार बताते हैं, "इस पुल के बन जाने से प्रतापनगर विधानसभा, कुछ हिस्सा गाजना पट्टी का, उत्तर काशी का और दो पट्टी जागनधार की धारमंडल और डूमधार पट्टी। इससे कम से कम तीन लाख से ज्यादा लोगों को फायदा मिलेगा। जब डैम बना तो सबसे बड़ी समस्या यही थी कि डैम तो बन गया लेकिन अब लोग कैसे जाएंगे। हमने इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। अब हमें काला पानी की सजा नहीं भुगतनी पड़ेगी।"

बेहद खास है पुल का डिजाइन


निर्माणाधीन डोबरा-चांटी पुल की कुल लंबाई 725 मीटर है। जिसमें 440 मीटर सस्पेंशन ब्रिज हैं तथा 260 मीटर आरसीसी डोबरा साइड एवं 25 मीटर स्टील गार्डर चांटी साइड है। पुल की कुल चौड़ाई सात मीटर है, जिसमें मोटर मार्ग की चौड़ाई 5.50 (साढ़े पांच) मीटर है, जबकि फुटपाथ की चौड़ाई 0.75 मीटर है। फुटपाथ पुल के दोनों ओर बनाया जा रहा है।

निर्माण कार्य खत्म करने का लक्ष्य मार्च 2020 तक रखा गया है। 14 सालों से बन रहे डोबरा चांठी पुल के पैनलों को जोड़ने में चार महीने का वक्त लगने की संभावना है। इस पुल में करीब सात सौ मीटर कैटवाक का काम हो चुका है।

440 मीटर लंबा डोबरा चांठी पुल भारत का सबसे लम्बा मोटरेवल सिंगल लेन झूला पुल है। ये प्रतापनगर और थौलधार को जोड़ने का काम करेगा।

झील के ऊपर 850 मीटर की ऊंचाई पर मुख्य पुल को जोड़ने के लिए 24 रोप को आर-पार करवाना सबसे बड़ी चुनौती थी। ये काम 5 महीने में पूरा हो पाया।

पुल के बनने से 3 लाख से ज़्यादा की आबादी को जिला मुख्यालय तक आने के लिए 100 किलोमीटर की लंबी दूरी नहीं नापनी पड़ेगी।

पुल के लिए 20-20 टन के 24 रोप लग गए। 5-5 मीटर के फासले पर झील की तरफ क्लैंप, सस्पेंडर का काम भी पूरा हो गया। डोबरा की तरफ 260 मीटर की आरसीसी और चांठी की तरफ 25 मीटर एप्रोच पुल का काम पूरा हो चुका है। इसके साथ ही 58-58 मीटर के चार टॉवर भी यहां तैयार किए गए हैं।

अच्छी बात ये भी है कि यहां 700 मीटर कैटवॉक का काम भी खत्म हो गया है। साल 2012 तक इस पुल पर करीब 1 अरब 32 करोड़ खर्च किए गए थे।

आईआईटी रुड़की और आईआईटी कानपुर द्वारा डोबरा-चांटी का डिजाइन बनाया गया था। इसके बाद विदेशी कंसल्टेंट की मदद से इस पुल पर निर्माण कार्य शुरू किया गया।

मार्च 2020 में पुल का निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा और उसके बाद वाहनों की आवाजाही शुरू कर दी जाएगी।

    

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